सुबह की पहली किरण – नीरजा कृष्णा

बेला रातभर तेज बुखार में तपती रही थी। पूरा घर परेशान था , डाक्टर की बताई दवाएं किसी प्रकार दी गई थी पर बुखार कहाँ मान रहा था। इसी तरह पूरी रात बीत गई थी, उसने एक मिनट के लिए भी आँखें नहीं खोली थी।

सुबह वो कसमसाई थी…शायद बुखार की तीव्रता कुछ कम हुई थी…तभी माथे पर कुछ गर्म बूंदों का सा आभास हुआ था। उसने तड़प कर आँखें खोली…सिरहाने राजीव बैठे हुए थे। लगता था ,रात भर इसी तरह बैठे रहे थे,आँखें लाल भभूका हो रही थी। उसका मन गीला हो गया और उसने हड़बड़ा कर उठने की चेष्टा की थी पर कमजोरी से उठ नहीं पाई। बहुत संकोच से सहारा देते हुए वो बोले थे  ,”अभी मत उठिए, रात भर बुखार में तपती रही थीं! रुकिए अभी भाभी को बुलाता हूँ”

कहते हुए वो तीर की तरह कमरे से निकल गए और भरी आँखों से उनको जाते देखते रह गई थी, आज उसका मन हुआ था…दौड़ कर उनका हाथ पकड़ ले और रोक कर कहे,”मत जाइए, मुझे आपकी जरूरत है”

तभी भाभी गरम चाय लेकर आईं और कहने लगीं,

“कल अचानक तुम बेहोश होकर गिर गई थीं। बहुत तेज बुखार था, राजीव भैया रात भर तुम्हारे सिरहाने बैठे रहे”

वो हैरानी से सुन रही थी…धीरे से बोली,”उन्होनें कुछ खाया पिया या नहीं?”

वो हँसी,”तुम्हारी ऐसी हालत में वो एकदम नर्वस हो गए थे। अम्माजी कहती रह गईं पर वो नहीं माने।”


उसके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बह चली थी। वो लेटी लेटी सोचने लगी थी…वो उनको मन से स्वीकार ही नहीं कर पाई थी,

पर उसके मम्मी पापा ने शायद उनकी वो सब खूबियां परख ली थीं जो वो अनाड़ी नहीं समझ पा रही थी। वो सिर्फ़ बाहरी सुंदरता ही देख पा रही थी। विशाल ह्रदय के मालिक राजीव ने उसके मन की परिभाषा पढ़ ली थी। उन दोनों के बीच की दूरियों को घर के सभी लोग फ़ील तो कर रहे थे पर बेबस थे। उनके यहाँ सभी के लिए शाम को गज़रे ज़रूर आते थे पर उसके हिस्से का अछूत की तरह एक तरफ़ पड़ा रहता था। भाभी ने अनेकों बार छेड़ने की कोशिश तो की थी पर उसने बात आगे बढ़ने ही नहीं दी थी। आज नज़रें उठा कर देखा …बेला के फूलों का गज़रा सामने पत्तों में लिपटा पड़ा था…वो धीरे से उठ कर स्नेह से उस पर हाथ फेर ही रही थी…तभी राजीव आ गए,”अब कैसी है आप? ये भाभी ने उपमा भेजी है।”

वो बिलख गई,”आप सब कितने अच्छे हैं, मैं ही पागल थी”

वो चुपचाप देख रहे थे…गजरा उसके हाथों में मचल रहा था…वो बालों में लगाना चाह रही थी पर कमजो़री से निढ़ाल हो गई और काँपते स्वर में बोली,”आप लगा दीजिए ना”

उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो पा रहा था पर उसकी आँखों में बसे  अनुनय को अनदेखा न कर पाए और धीरे से वो गजरा उसके बालों में सजा दिया।

तभी भाभी हँसती हुई कमरे में आईं,”अरे वाह आज तो इस  गज़रे का नाम सार्थक हो गया…हमारी बेला के बालों लग गया।”

सब मुस्कुरा दिए। पूरा कमरा उनके प्यार की खुशबू से महक गया था…एकदम उस गजरे की तरह।

नीरजा कृष्णा

पटना

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