परमेश्वर तो दूर पति बन जाओ वही बहुत है – सोनिया निशांत कुशवाहा 

चटाख! राकेश  के मारे हुए चांटे की गूंज अभी भी गूँज रही थी कानों में! बात सिर्फ एक थप्पड़ की नहीं थी , बात सिर्फ शरीर पर लगने वाली चोट की नहीं थी मन घायल हो गया था। आत्मा धिक्कार रही थी कि ऐसे आदमी को ईश्वर समझ कर आज तक मैं व्रत पूजन करती आई हूँ। क्यूँ ऐसे इंसान के लिए गर्भ में संतान लेकर भी मैंने तीज जैसा कठिन व्रत किया, क्यूँ मैं चाहती रही कि ये आदमी सदा सुखी रहे, चिरायु रहे. जबकि उसकी नज़र में मैं एक भेड़-बकरी से अधिक कुछ भी नहीं। यह आदमी जिसको पति से अधिक परमेश्वर की जगह दी उसने मुझे घर में सजने वाले समान से अधिक कुछ समझा ही नहीं। वह समान जिसे वह अपने उपयोग के लिए पसंद करके उचित मूल्य में खरीद कर लाया है, वह समान जिसको वो हर तरह से इस्तेमाल करना चाहता है। वो एक ऐसे पालतू जानवर की भाँति हो गई थी जिसे जहाँ हाँक दो वही चल पड़े और अगर ना चले तो थप्पड़ मारो या हाथ मरोड़ दो क्या फर्क पड़ता है।

शरीर का दर्द तो लगभग ख़त्म हो गया था लेकिन मन की पीड़ा का कोई अंत नहीं था।मेरे बेटे सूरज के सामने मुझपे हाथ उठाया, क्या सम्मान करेगा वो मेरा जब ऐसे ही पिता के हाथों माँ को मार खाता देख बड़ा होगा। लेकिन कर भी क्या सकती हूँ, राकेश  सूरज से बहुत प्यार करते हैं मै बाप को उसके बेटे से अलग नहीं कर सकती। तो क्या भूल जाऊँ इन जख्मों को! भूल जाऊँ इस अपमान को, जिसके कारण हर पल साँस लेना भी दूभर होता है। 

 

माथे पर सिंदूर सजा है, तो चेहरे की रौनक है चार लोग समाज में सम्मान देते हैं मिसेस शर्मा नाम से ही तो मेरी पहचान है छोड़ी हुई औरत की भी कोई ज़िन्दगी होती है। हर आता जाता व्यक्ति चाहे अपना हो या पराया ताने कसने से कोई बाज़ नहीं आता, कब किसकी नीयत खराब हो जाए कौन जाने। दुनिया से दिखावे की इज्जत पाने के लिए हर रोज अपना आत्मसम्मान कुचलवाने को ना जाने कहाँ से हिम्मत आ जाती है। जो भी हो घर की चार दीवारी के भीतर की बात है अंदर चाहे जो भी घट रहा हो इस चारदीवारी के बाहर मैं सिर उठा कर चल तो सकती हूँ।ये ख्याल मन में आते ही राधा को जीने की उम्मीद सी हासिल हो गई। अब तो जब भी राकेश  उस पर हाथ उठाता यही बात सोचकर वो सबकुछ भुलाने की कोशिश करती।


राधा और राकेश  का बेटा सूरज भी अब 5 साल का हो गया था एक दिन खेलते खेलते सूरज राधा के पास आकर बोला, “मम्मा मेरी शादी कब होगी” राधा ने हँस कर पूछा क्यो करनी है तुम्हें शादी? मेरी शादी होगी तो मैं भी अपनी पत्नी को मार पीट कर अपना सब काम कराऊंगा, रोज अच्छा अच्छा खाना बनवाऊंगा, अपना होम वर्क करने को बोलूँगा और जब वो मना करेगी तो उसको खाना तक नहीं दूँगा और मां आपका भी काम सब उसी से करा लेंगे। राधा को तो मानो काटो तो खून नहीं, ये क्या सीखा रही हूँ मैं अपने बच्चे को? इसने अपने मन में बैठा लिया है कि पत्नी पीटने के लिए होती है, मेरा बेटा कभी किसी औरत का सम्मान नहीं करेगा। बच्चे के कोमल मन पर यह क्या लिख दिया मैंने! ख़ुद को कोसती राधा कितनी ही देर सिर पकड़ कर बैठी रही। सूरज के भविष्य के लिए ही आज तक सब सहती रही लेकिन क्या भविष्य होगा मेरे बेटे का, क्या संस्कार मिल रहे हैं उसे?

 

वैचारिक द्वंद चलता रहा और मंथन के बाद जो राधा में बदलाव आए उनसे वह खुद भी हैरान रह गई।अब कोई गलत बाद बर्दाश्त नहीं करेगी उसने ठान लिया था। आदतन राकेश  ने जैसे ही राधा पर हाथ उठाया उसने राकेश  का हाथ पकड़ लिया और झटक कर फोन उठा लिया। राकेश  को अंदर बंद करके उसने अपने मायके फोन लगाया, कुछ ही देर में सभी लोग वहां पहुंच गए। राकेश  शर्म से गड़ा जा रहा था। राधा ने पिछले कुछ सालों की सारी आपबीती कह सुनाई। राधा की बात सुनकर बड़े भैया ने राधा को साथ ले जाने का आश्वासन दिया। लेकिन राकेश  को अपनी भूल पर बेहद शर्मिन्दगी हो रही थी उसने सबके सामने राधा से माफी मांगी और भविष्य में कभी हाथ ना उठाने का भरोसा दिलाया। मुझे लगता था कि पति होने के नाते कभी कभार पत्नी पर हाथ उठाना मेरा हक है लेकिन मैं गलत था मुझे एक मौका और देदो।राकेश  गिडगिडाया। 

राधा ने राकेश  को एकाएक कोई मौका देना उचित नहीं समझा राकेश  को छोड़ वह भाई के साथ चली आई। राधा के जाने के बाद राकेश  को समझ में आया कि एक घर में गृह लक्ष्मी की क्या अहमियत होती है। राकेश  को सच में अपने किए पर पछतावा था बार बार माफ़ी मांगने के बाद राधा ने अंततः एक मौका दिया क्यूँकि वह सिर्फ अपना घर सुधारना चाहती थी तोड़ना नहीं। राकेश  ने भी अपने वादे को सदैव निभाया।

हर समस्या का समाधान संभव है बस थोड़ी हिम्मत की आवश्यकता होती है। झूठे दिखावे की ज़िन्दगी को छोड़ कर आत्मसम्मान से जीवन बिताए। 

 

घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज उठाइए, चुप रहने से कभी किसी का भला नहीं हुआ। 

सोनिया निशांत कुशवाहा 

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