पारिवारिक संस्कार –  बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आशा मेरा शरीर टूट रहा है,मेरा सर फटने को है,मैं मरने को हूँ, प्लीज मुझे पुड़िया दे दो।मैं मर जाऊंगा, आशा, प्लीज।

        नहीं, मुकेश धैर्य रखो,तुम्हे कुछ नही होगा।मैं हूँ ना।आत्म शक्ति को समाप्त मत करो मुकेश।

         आशा और मुकेश की शादी को एक वर्ष ही बीता था।मुकेश के परिवार वालो ने आशा का हाथ स्वयं ही मांगा था।अच्छा सम्पन्न परिवार,सुंदर व्यक्तित्व का स्वामी मुकेश,और क्या चाहिये एक लड़की के परिवारवालो को?गरीब परिवार की आशा का अच्छा भाग्य समझ इस रिश्ते की हामी भर दी गयी।दोनो की जोड़ी इतनी सुंदर जम रही थी कि हर कोई प्रशंसा कर रहा था।

       आशा और मुकेश हनीमून के लिये भी मारिसस गये।दोनो बेइंतिहा खुश थे।अत्यधिक खुशी कोई स्थायी थोड़े ही होती है।दोनो के जीवन मे एक भूचाल आ गया।मुकेश को ड्रग लेने की आदत थी,जिसे उसके परिवार वाले जानते थे,पर शादी में इस बात को छुपाया गया।

मुकेश के परिवार का मानना था कि शादी हो जाने पर हो सकता है,मुकेश की ये आदत समाप्त हो जाये।यही कारण था कि उन्होंने सुंदर सलोनी लेकिन गरीब परिवार से संबंधित आशा को चुना।योजना सफल रही और आशा तथा मुकेश की शादी सम्पन्न हो गयी।

       कुछ दिनों से आशा महसूस कर रही थी कि मुकेश कुछ थका सा, खोया खोया सा रहता है।निढाल हो पड़े रहना किसी भी गतिविधि में रुचि न होना मुकेश की चर्या बनती जा रही थी।बस एक बात सकारात्मक थी कि मुकेश आशा के बिना नही रह पाता था।

आशा के बिना वह अपने को निःसहाय सा पाता।आशा अभी तक यह नही समझ पा रही थी कि मुकेश को क्या होता जा रहा है।एक दिन वो जिद करके मुकेश को डॉक्टर के पास ले ही गयी।डॉक्टर के पर्दाफाश से आशा के पैर की जमीन खिसक गयी,

अब जाकर उसे पता चला कि मुकेश पूरी तरह ड्रग का आदि हो चुका है,इसी कारण उसकी यह हालत है।आशा मुकेश को बेहद प्यार करती थी पर मुकेश और उसके पूरे परिवार द्वारा यह छुपाना उसको साल रहा था।

         आशा मां से मिलने के बहाने अपने मायके गयी और पूरी बात अपने माता पिता को बताई कि कैसे मुकेश और उसके परिवार ने उन्हें धोखा दिया है।सुनकर वे भी धक से रह गये।आशा के पिता एक सुलझे इंसान थे,वे जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नही पहुँचना चाहते थे।शांत मष्तिष्क से उन्होंने आशा से ही कहा, बेटा तुम्हारे सामने दो रास्ते है जिनमे से एक रास्ता तुम्हे ही अपने लिये चुनना होगा।

तुम पर कोई प्रेसर नही है।दो चार दिन में खूब सोच विचार कर निर्णय ले सकती हो।तुम्हारे किसी भी निर्णय के साथ हम तुम्हारे साथ है बेटा।आशा टुकुर टुकुर अपने पापा के मुँह को देख रही थी।पापा बोले देखो बेटी एक रास्ता तो ये है कि चूंकि उन्होंने शादी से पहले मुकेश की लत छुपायी थी

जो कोई और भी होता तो वह भी अपनी लत को उजागर थोड़े ही करता,इस आधार पर मुकेश से तुम्हारा तलाक करा लिया जाये और तुम यहाँ हमारे पास वापस आकर अपनी नयी जिंदगी शुरू करो।दूसरा रास्ता कठिन भी है और तुम्हारे लिये परीक्षा का भी है कि

तुम यह सोचकर कि मुकेश को यह लत शादी के बाद भी लग सकती थी तो अब चूंकि वह तुम्हारा पति है इसलिये तुम्हारा दायित्व बनता है कि तुम मुकेश को उस लत से बाहर निकालने में सहायता करो।आशा तुम कौनसा रास्ता चुनती हो स्वतंत्र हो हम तुम्हारे सहयोगी रहेंगे।जो भी मार्ग चुनो उस पर दृढ़ रहना,आत्मविश्वास के साथ रहना।

     असमंजस की स्थिति में आशा वापस मुकेश के पास आ गयी।निर्णय उसे ही करना था।आशा के जाने के बाद मुकेश ने अपने को अकेला पाया तो उसकी हालत बिगड़ने लगी वह बार बार आशा को ही पुकारने लगा।उसके माता पिता मुकेश को संभाल ही नही पा रहे थे।

आशा के आते ही मुकेश उससे चिपट कर रोने लगा मुझे क्यूँ छोड़ कर गयी।आशा को लगा जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से चिपट रहा है।मुकेश के माता पिता कह रहे थे आशा बेटी तुम्हारे साथ अन्याय किया है हमने,पर तुम्हारे परिवार के संस्कार ही हमारे जीवन के आधार बनेंगे।

      पूरा एक वर्ष मुकेश के साथ बिताया है,सुख भोगा है,प्यार पाया है,क्या उसे छोड़ने का निर्णय कर पायेगी वो,सोचते सोचते आशा आँखों के कौर से आंसू बहने लगे।एक झटके में उसने निर्णय ले लिया वह मुकेश को नही छोड़ेगी, बल्कि उसे इस लत से उबारेगी।

        वह समझा बुझाकर मुकेश को नशा मुक्ति केंद्र में लेकर गयी।उनके द्वारा दी दवाई और निर्देश का पूरी तन्मयता से पालन कराने लगी।अब वह मुकेश को एक पल को भी अकेला नही छोड़ती।वह ध्यान रखती कि मुकेश को ड्रग उपलब्ध न हो,

उसके आत्मविश्वास को बनाने का प्रयास करती।मुकेश को जब ड्रग नही मिलती तो वह असामान्य हो जाता पर धैर्य के साथ आशा मुकेश के विश्वास को बनाये रखती कि वह सब कुछ कर सकता है।सात आठ महीनों की तपस्या आखिर रंग लायी, मुकेश सामान्य हो गया,अब उसे ड्रग की आवश्यकता नही थी।

        आज आशा और मुकेश एक बार फिर नयी आशा और विश्वास के साथ मारिसस ही जा रहे थे,नये हनीमून मनाने के लिये।

 बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवं अप्रकाशित

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