परिवार ही पूंजी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

श्रुति की बड़ी दीदी श्रेया की शादी थी पिछले सप्ताह।श्रुति रीना की सबसे पक्की सहेली थी।सुमि ने फोन पर बताया था निधि को”मम्मी,श्रुति की दीदी की शादी पक्की हो गई है।मीनाक्षी आंटी(श्रुति की मम्मी)आप को फोन लगाई थी,और आपने उठाया नहीं।एक बार फोन कर लीजिएगा।”

निधि को वास्तव में आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी हुई।अभी तो कुछ दिनों पहले श्रुति के पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई थी।लिवर से संबंधित बीमारी थी,तब फोन किया था मीनाक्षी जी को।पिछले बीस सालों से जानती थी निधि श्रुति के परिवार को।एक तो श्रुति उसकी छात्रा,उस पर बेटी की सबसे अच्छी सहेली। बारहवीं में टॉप किया था उसने (गणित संकाय में),तब सुमि विशाखापट्टनम में थी।तब से अब तक एक वही सुमि की सहेली रही।निधि को श्रुति के परिवार वाले बहुत मानते थे।

बेटी के साथ कभी -कभार जब भी उनके घर गई,बैठक में चार -पांच महिलाएं,सिर में पल्लू लिए मिलने आतीं थीं।दूसरे कमरे में घर के पुरुष होते थे।मीनाक्षी जी सबसे छोटी बहू थीं,उस ठाकुर खानदान की।श्रुति के दादाजी अपने जमाने के नामी वकील थे।असीमित संपत्ति,जमीन के मालिक थे वो।चार बेटों में बंटी होगी संपत्ति।अब श्रुति के सबसे बड़े पापा नहीं रहे।बाकी तीनों भाईयों की बेटियां ही थीं।केवल बड़े पापा के ही दो बेटे थे,जो पारिवारिक व्यापार(जमीन के सौदे से संबंधित)देखते थे।श्रुति की बड़ी मम्मी ही मुखिया थीं अब घर की।तीनों देवरानियां -देवर उनका बहुत सम्मान करते थे।

जब भी मीनाक्षी जी को देखा,उनका चेहरा बुझा -बुझा ही दिखा।खुलकर कभी कुछ बोला नहीं उन्होंने,पर पति की नशे की लत और परिवार के प्रति उदासीनता उनके दुख का कारण थी।दोनों बेटियां (श्रुति और श्रेया )पढ़ने में तेज थीं।श्रेया बी टेक कर के नौकरी करने लगी,तब मीनाक्षी जी के चेहरे में थोड़ा संतोष दिखा।श्रेया ने भी मास्टर पूरा कर लिया था।

जब भी श्रेया आती,उसे घर तक छोड़ने दो दादा में कोई ना कोई आता।उन्हें अकेले घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।खाना भी संयुक्त रूप से बनता था।सुमि अक्सर कहती”मम्मी,श्रुति लोग कैसे एडजस्ट कर लेतें हैं।हर काम बड़ी मम्मी या दादा से पूछकर करना पड़ता है।मीनाक्षी आंटी कैसे मैनेज करती होंगीं,रसोई का इतना सारा काम।हमेशा दूसरों पर निर्भर रहना कितना कष्टकर होता है,श्रुति को देखकर समझ में आता है।हम लोग तो कल्पना भी नहीं कर सकते।आप बीच-बीच में आंटी से बात कर लिया कीजिए।”

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निधि के पति इकलौते थे।घर में बच्चे दादा -दादी के साथ तो रहे,पर ताऊ या चाचा ना होने के कारण घर पर एकक्षत्र राज्य सुमि के पति का ही था।निधि को भी सास ने पूरी आजादी दी थी,नौकरी करने की। मीनाक्षी जी को देखकर सच में बहुत बुरा लगता था।उनके पति निर्विकार भाव से घर में ही पड़े रहते थे।दोनों बेटियां भी पापा के ज्यादा समीप नहीं थीं।बड़ी बेटी के नौकरी लगने पर मीनाक्षी जी ने साफ-साफ कह दिया था”यह उम्मीद बिल्कुल मत करना कि ,तुम्हें घर से बाहर नौकरी करने देंगे दादा लोग।बेकार की जिद पकड़ कर मत बैठना।घर पर बैठ कर कब आगे की पढ़ाई कर लो।”

अपेक्षा के विपरीत दोनों दादा ने अपनी जिम्मेदारी पर श्रेया को आगे पढ़ने और फिर नौकरी करने की इजाजत दे दी।छोटी बहन की नौकरी भी बैंगलुरू में लग गई।दोनों बहनों के ऑफिस अलग थे,पर घर एक ही था।श्रुति और श्रेया की कमाई ना तो बड़ी मम्मी ने किसी को लेने दी,और ना ही घर भेजने की बात कही।दोनों बहनों ने अब अपने पैसे बचाने शुरू कर दिए,कि भविष्य में कभी जरूरत पड़े तो मम्मी -पापा के लिए घर ले देंगें।शादी के खर्च भी बहुत होंगे।पापा के पास कुछ बचाया हुआ है नहीं,और कुछ ना करने से कोई देगा भी नहीं।

इसी बीच श्रुति के पापा गंभीर रूप से बीमार पड़े,तो श्रुति ने बताया सुमि को”हैदराबाद जाना पड़ सकता है, मम्मी आएंगी पापा को लेकर। टिकट देखना होगा।”सुमि ने भरोसा दिलाया कि वह भी साथ चलेगी।

निधि अवाक रह गई जब पता चला कि बड़े दादा ने साफ कह दिया”चाचा सा को हम लेकर जाएंगे बाई रोड।इतनी बड़ी गाड़ी है,आराम से जाएंगे।साथ में छोटा भी चलेगा।चाची सा या बच्चों को जाने की जरूरत नहीं।”उस दिन श्रुति बहुत रोई थी सुमि के पास”सुमि,हम हमेशा दाद सा से डरते रहे,मन में शंका रखते रहें कि हम उनकी सगी बहन नहीं।पापा भी सब लुटा चुके।आज देख पापा को सगे बेटे बनकर ले जा रहें हैं।हमें आने से मना किया है।”यह सिलसिला लगभग साल भर चला।यहां घर की चारों औरतें पूजा-पाठ करवातीं,और वहां दोनों बेटे चाचा को लेकर हर पंद्रह दिन में हैदराबाद पहुंच जाते। परिणाम स्वरूप अब श्रुति के पापा पहले से बहुत अच्छे हैं।

अब बात चलने लगी बड़े दादा के शादी की।इस पीढ़ी की पहले बेटे की शादी। बड़े-बड़े घरों से रिश्ते आ रहे थे।एक रिश्ता तो मीनाक्षी जी के मायके की तरफ से था। उन्होंने समझाया शादी करने को।बड़े दादा ने गंभीर आवाज में कहा”चाची सा,शादी की उम्र तब होती है,जब ब्याह योग्य बेटी विदा हो जाएं।श्रेया की होगी पहले तब हमारी होगी।पूरा घर चुप हो गया।अब मीनाक्षी जी की चिंता भी बड़ गई।जैसे रईस हैं ये बच्चे खुद ,बहन के लिए वैसा ही ढूंढ़ेंगे।दहेज कहां से दे पाऊंगी मैं।

दो हार के अलावा तो कुछ बचा नहीं ख़ुद की शादी का।श्रेया ने मां से कहा था”मम्मी, मैंने और श्रुति ने दो साल से अपनी सैलरी से कुछ-कुछ बचाया है।तुम्हें देंगे,तुम बड़ी मम्मी को दे देना।काम आएंगे हमारी शादी में।बस मम्मी दादा सा को बोलना नौकरी वाला लड़का ढूंढ़े।ठकुरैसी का कोई भरोसा नहीं।आज है तो कल नहीं।मेरी एक और इच्छा है मम्मी कि मेरी शादी मेरे पूर्वजों के घर से ही होगी।मंडप घर के आंगन में ही होगा।”मां -बेटी दोनों को पता नहीं चला कि ऋषि (बड़े)दादा ये सब सुन लिए थे बाहर दरवाजे से।

एक महीने के अंदर गुजरात में नौकरी करने वाले ठाकुर लड़के का रिश्ता आया श्रेया के लिए।लड़के के माता-पिता नहीं थे।भैया -भाभी दोनों नौकरी करते थे।पिता की संपत्ति दोनों को बराबर मिली थी,जिसमें खेती करवाते थे मजदूरों से।लड़के को देखकर तो मीनाक्षी जी रोने लगीं।इतना सुंदर लड़का , उन्होंने तो कल्पना ही नहीं की थी।बड़ी मम्मी और चाचियों ने कहा भी”ऋषि बेटा,तू तो व्यापारी से ही बहनों का रिश्ता करना चाहता था,फिर यह नौकरी वाला कैसे पसंद आ गया रे।”दादा ने कहा,”आप लोगों का जमाना नहीं है

ख़ुशियों का दामन

अब।बहन इतनी अच्छी पढ़ाई कर नौकरी कर रही है शहर में,तो लड़का भी उसकी पसंद और उसके लायक होना चाहिए ना।”श्रेया दादा से लिपटकर खूब रोई।”दादा ,आपने मेरी बात सुन ली थी ना।आप जहां कहेंगे ,मैं कर लूंगी शादी।आप दुखी या नाराज ना होना।मैं आधुनिक बनकर अपने रीति-रिवाज से मुंह नहीं मोड़ना चाहती।नौकरी की शर्त भी आर्थिक स्थिरता के लिए कहीं ।आपको बुरा तो नहीं लगा ना दादा?”

“पगली,तेरी बात सुनकर तो हमें अहसास हुआ,कि बाप दादा की संपत्ति से बैठे-बैठे खाने से कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता है।नौकरी रहेगी तो रुतबा भी रहेगा।तेरा भी रुतबा रहेगा।हमें तो तेरी खुशी चाहिए बस,और कुछ नहीं।अपने मन की बात घर की बेटी किसी बाहरी को तो नहीं बताएगी ना।अगर वहां से फोन आए तो कभी कभार बात कर लेना।जानना समझना एक दूसरे को।एक दूसरे के परिवारों की मर्यादा जानना जरूरी है शादी के पहले।जा बुद्धू कहीं की रोती क्यों है?”

सगाई का कार्यक्रम बांधवगढ़ रिसोर्ट में हुआ।घर के गिने चुने और परिचितों की उपस्थिति में दोनों पक्षों की सगाई हुई।अब श्रेया को शादी घर से करनी है,इस बात के लिए,घर का जो काम बाद में लगवाना था,तुरंत शुरू करवा दिया दादा ने।सबके कमरे,बैठक, अलग-अलग।सबके कमरे के सामने आंगन।बस बदली नहीं‌ तो रसोई की जगह।और बड़ी हो  गई अब रसोई।सारे उपकरणों से लैस।चिमनी , टाइल्स सब बाहर से मंगवाए गए। राजस्थान से पत्थर लगे घर के पुनरुद्धार में।दो महीनों में प्राचीन बंगला अब एक कोठी दिखने लगा।बहन की शादी होगी यहां से ,मजाक थोड़े है। नक्काशी दीवारों पर परमानेंट करवाई गई।घर‌ बनने के बाद पहचान में नहीं आ रहा था।

शादी के दिन‌ के चार दिन पहले से तैयारी जो शुरू हुई,देखने वाले देखते ही रह गए।घर के सौ मीटर आगे और पीछे तक रंगीन‌ बल्बों से सजावट की गई।घर में सारे रिश्तेदार आ चुके थे।नेंग में रिश्तेदार जो भी सोने -चांदी के गहने दे रहे थे,बड़ी मम्मी संभाल कर रख रहीं थीं।नाश्ता दोनों देवरानियां नाश्ता देख रहीं थीं।हल्दी-मेंहदी की व्यवस्था कोई और देख रहे थे। पार्लर वाली को घर में ही बुलवाया गया था।सभी लोग हैरान परेशान हो इधर से उधर दौड़ रहे थे।बस एक इंसान ऐसा था जो सिर्फ रो रहा था बिना कुछ बोले । मीनाक्षी जी थी वें।बेटियों की फरमाइश पर उन्हें भी पोशाक पहनना पड़ा,जिसमें‌ वो आज बला की सुंदर लग रही थी।आज उनके चेहरे में विषाद की लकीरें‌ नहीं,अपार संतोष का सुख था।बड़े पापा के दोनों‌ बेटों ने राजसी तैयारी करी थी।मीनाक्षी जी सोचने लगी”इतनी अच्छी तैयारी तो वो अकेली कभी कर ही नहीं पाती।

बारात आने पर ऋषि ने अपने गोद में उठाकर दामाद को मंडप तक पहुंचाया। आर्केस्ट्रा में सितार,बांसुरी और तबले का परफार्मेंस था।हर चीज सलीके से व्यवस्थित थी।लोगों को खाना लेने के लिए उठना नहीं पड़ रहा था।वेटर ही आकर दे जा रहें थे।बेटी के कन्यादान के समय पहली बार मीनाक्षी जी के पति ने पत्नी संग हंसकर फोटो खिंचवाई।कन्यादान के बाद ऋषि को पकड़कर झार-झार रोने लगे थे बड़े चाचा।उनकी आंखों में अपने किए का पछतावा बह रहा था।

मीनाक्षी जी रो रहीं थीं,परिवार की एकता की शक्ति देखकर।हर समय सभी के बीच किसी ना किसी चीज पर बहस होती ही रहती थी,पर आज सब एक माला के मोती की तरह पिरोए दिख रहे थे।बहन को इतने प्यार से विदा किया दादाओं ने ,कि बाराती भी हैरान थे।बंदूक की गोलियां दागकर(जो कि गैर कानूनी है)बहन और दामाद का स्वागत अभिनन्दन किया दादाओं ने।

मेरी किस्मत मैं प्रेम नही ..!! – A Short Love Story in Hindi

मिठाई के स्टाल में शायद लड़के के कोई रिश्तेदार मिठाई ढूंढ़ रहे थे,तब उन्हें मिठाई की दुकान दिखवाई गई।सारे बाराती अभिभूत थे।इतनी शानदार शादी काफी समय बाद हुई थी।मीनाक्षी जी और उनके पति बेटी दामाद के पास बैठे थे।मीनाक्षी जी ने भगवान के घर के मंदिर में जाकर माथा टेका और रोते हुए बोलीं”सारा जीवन मैं रोती रही आपके सामने,कि मेरी बच्चियों का क्या होगा?मुझे एक बेटा क्यों नहीं‌ दिया?मेरे पति को जिम्मेदार क्यों नहीं बनाया?मां‌ आज मैं माफी मांगती हूं आपसे,आपने मुझे इतना अच्छा परिवार दिया।मेरी अकेली की बेटी नहीं है यह।फूफू सा,फूफा सा,बड़ी मम्मी, चाचा-चाची,दोनों बेटे की बेटी बन गई मेरी श्रेया।इतनी सारी मांओं के रहते मैं व्यर्थ ही फिकर करती रही।मुझे माफ़ कर देना प्रभु।यह संयुक्त परिवार ही हमारी पूंजी है।जहां एक की कमी को दूसरे ढंक लेते हैं।मुझे अब आपसे और कुछ नहीं मांगना।”

श्रुति की बहन श्रेया विदाई के समय जब बहुत भावुक होकर रोने लगी तो नए नवेले पति ने कहा “आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।जब आपका मन अपने घर आने का होगा,हम आपको लेकर आएंगे।आप हमारे भाई-भाभी की भी बहन ही बनकर रहेंगीं।”

सुमि ने आज पहली बार संयुक्त परिवार की ताकत देखी थी।जहां बड़े छोटों पर रौब तो जमाते हैं पर अनुशासन जमाने के लिए।अकेली घूमने देना पसंद नहीं,पर साथ में हमेशा अपना समय देतें हैं।

सुमि ने आज कहा मां से”मम्मी,आप ठीक कहती थीं।थोड़ा धीरज रखकर सबसे स्नेह करो तो उसका फल हमेशा मिलता है। संयुक्त परिवार में हर सुख-दुख सांझा हो जातें हैं।मेरी भी शादी संयुक्त परिवार में ही करना। प्लीज़।

शुभ्रा बैनर्जी

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