कहते हैं ज़िन्दगी में सब कुछ पहले से तय होता है… कब किससे मिलना लिखा.. कब किससे बिछड़ना उपर वाले के पास सब दर्ज होताहै…. कभी कभी ज़िंदगी दामन में इतने दुख भर देती है कि हम उसे अपनी नियति मान मौन रह स्वीकार कर लेते हैं चाहे उसमें ख़ुशी की गुंजाइश ना के बराबर ही क्यों ना हो… ऐसी ही एक कहानी है नित्या की जिसकी ज़िंदगी में बहुत उतार चढ़ाव आए और अब वो ख़ुशरहना चाहती तो है पर समस्या एक ही है वो है उसके बेटे से अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करें तो करें कैसे….वो ये सब सोच ही रही होती है किउसके मोबाइल की घंटी बज जाती है …
“ कैसी हो बेटा….क्या सोचा है आगे…अब कब तक इंतज़ार करती रहेगी… एक ना एक दिन तो तुम्हें कुश को सब सच बताना ही पड़ेगा… आख़िर ये तुम दोनों की पूरी ज़िन्दगी का सवाल है…….”माँ सुनंदा जी ने फिर से वही बात नित्या से कही जो कुछ सालों से कहती आ रही थी
”माँ समझ नहीं आ रहा मैं कुश से कैसे क्या बात करूँ…. मुझे समझ ही नहीं आता मेरी नियति में क्या है … सब ठीक होगा भी और नहीं….जैसे जैसे साल गुजर रहे हैं मेरी ज़िंदगी की जंग भी जारी है और उसके साथ साथ मेरा प्यार भी परवान चढ़ता जा रहा है पर कुश को कहना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है।” परेशान सी नित्या ने कहा
“ देखो बेटा जितना वक़्त गुज़रता जाएगा तेरे लिए कुश को समझाना भी मुश्किल होने लगेगा… कोशिश कर के एक दिन तू उससे अपनी बात कह दे और उसे अच्छी तरह समझा भी देना।”सुनंदा जी ने कहा ….कुछ देर बातचीत कर फ़ोन रख दी
माँ से बात करने के बाद नित्या अपने कमरे में इधर से उधर चक्कर लगा रही थी कि तभी निशांत का फ़ोन आया,“क्या कर रही हो… कुश से बात की तुमने… यार अब मेरे घर वाले भी जोर देकर मुझसे कह रहे हैं शादी करने को…. बोल रहे कब तक यूँ ही अकेले ज़िन्दगी काटोगे…. नित्या से बात कर कुछ फ़ैसला करो… नहीं तो कहीं और बात….मैं शादी करूँगा तो तुमसे ही नित्या… हम दोनों की तकलीफ़ एक जैसी है और विचार भी मिलते तभी तो इतने साल से साथ है…. तुम कुछ कहो तो कुश से मैं बात करूँ… ?”
“ निशांत मुझे समझ ही नहीं आ रहा कैसे कुश से कहूँ….मैं उससे आज कल में बात करने की कोशिश करती हूँ ।”कुछ प्यारी बातें कर नित्या और निशांत ने फ़ोन रख दिया
“ मम्मा आप मेरा होमवर्क कब फ़िनिश करवाओगे …. जब से घर आए हो मुझसे ठीक से बात भी नहीं किया आपने …. बताओ ना मम्मा क्या हुआ ?” तभी कमरे में आकर कुश ने नित्या से कहा
” कुछ नहीं बेटा आज मम्मा ऑफिस में ज़्यादा काम कर के आई ना बस थक गई है…. चलो पहले होमवर्क करते फिर यम्मी डिनर कर एक कहानी सुन कर सो जाएँगे ।” कह नित्या अपने पाँच साल के बेटे का होमवर्क करवाने चल दी
डिनर के बाद जब दोनों सोने गए तो नित्या ने एक कहानी सुनाई जिसमें मम्मी पापा और बेटा है…. पर नित्या ने महसूस किया पापा कीकहानी सुन कर भी कुश ने ना कोई प्रतिक्रिया की ना ही कुछ कहा…. वो फिर कुछ नहीं बोली और उसे सुलाने लगी।
नित्या की आँखों से नींद कोसों दूर थी वो ना जाने कब अपने अतीत में विचरण करने चल दी…..
बीस साल की नित्या की शादी एक औसत परिवार में हुई थी पति पुनीत कभी कभी ठीक से रहता …कभी अजीब अजीब हरकतें करता….शादी के बाद नित्या को देख कर खूब खुश हुआ…. सुन्दर बीबी पाकर वो उसके प्रति कुछ ज़्यादा ही आसक्त हो गया था और इतना पजेसिव था कि जमाने भर का प्यार उसपर लुटाता पर नित्या किसी और मर्द से बात कर ले तो वो हैवान बन जाता… फिर नित्या अपने शरीर पर पड़े दाग धब्बे छिपाने की कोशिश करती में रहती थी…. साल भर बीतते बीतते पता चला नित्या माँ बनने वाली है …. ऐसे पति के साथ रहना उपर से एक शादीशुदा ननद का बीच बीच में दख़लंदाज़ी करना और ससुर की सेवा करना यही उसकी नियति बन गया था।
नित्या किसी तरह अपने दिन गुज़ार रही थी …मायके में भी बस एक माँ थी जो टीचर थी और एक बड़ी बहन जो अपने ससुराल में रहतीथी कुल मिलाकर नित्या के लिए सहारा देने वाला कोई नहीं था….
माँ हमेशा कहा करती थी ,“बेटा मैं तेरे साथ हूँ बस जब सिर से पानी गुजर जाए फिर तू जो फ़ैसला लेना चाहे ले सकती हैं पर अभी तू माँ बनने वाली है मन में किसी भी प्रकार के बुरे ख़्याल ना आने दें… जब तेरा मन करें यहाँ आ जाना।”
नित्या के ससुर बहुत अच्छे थे वो पुनीत को नित्या के साथ दुर्व्यवहार करते देख डाँटा करते थे … पर पुनीत तो ढीठ किसी की सुनता नहीं बस मनमानी करता …
उनकी एक छोटी सी दुकान थी जहाँ पिता और बेटा बारी बारी से बैठा करते थे एक दिन दुकान में ही ससुर को दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे…. पुनीत अब ज़्यादा मनमानी करने लगा था … नित्या पर उसके अत्याचार बढ़ने लगे थे शराब की लत में सब भूल जाता….नित्या अब उसके साथ रहना नहीं चाहती थी…. पर माँ का सोच कर चुपचाप यहीं रहती थी पर कब तक बर्दाश्त करती अब वो कभी कभी पुनीत को करारा जवाब देने लगी थी पर बात और बढ़ जाती ऐसे में नित्या के पास चुप रहने के अलावा कोई चारा न था ।
नौवें महीने में वो अपनी माँ के पास चली गई थी….. पुनीत बच्चे के जन्म पर मिलने आया और नित्या को साथ चलने को कहा ।
नित्या की माँ ने कहा,“ बच्चा अभी छोटा है …नित्या को भी अभी आराम की ज़रूरत है ऐसे में वहाँ जाकर इसको और परेशानी होजाएगी..।”
पुनीत तो सिरफिरा था ही कह दिया,“ चलना है तो अभी चलो नहीं तो रहो अपनी माँ के पास…. वैसे भी तुम अभी मुझे कौन सा सुख देनेवाली हो…।”
नित्या और उसकी माँ ये सुनकर दंग रह गए…. पुनीत के जाने के बाद नित्या एक महीने बाद अपने घर गई पर पुनीत का रूखापन देख उसे यहाँ साथ रहकर बच्चे की परवरिश करना मुश्किल लगने लगा वो पुनीत को बोली,“ मुझे नहीं लगता हम अब साथ रहने को तैयार है…. तुम्हें ना तो मुझसे कोई मतलब है ना बच्चे से…. तुम्हारे साथ रहूँगी तो एक दिन मैं भी पागल हो जाऊँगी…. इससे अच्छा है मैं तुम्हें और इस घर को छोड़ कर चली जाऊँ….।” उस दिन जो नित्या घर छोड़कर निकली फिर पलटकर उधर नहीं गई ना पुनीत ने कभी पता करने की कोशिश की।
नित्या माँ के पास आकर नौकरी के प्रयास करने लगी….. बच्चे की परवरिश अकेले ही कर रही थी बेटा भी बस माँ को देख कर ही बड़ाहो रहा था… दो साल माँ के पास रहकर काम करते करते अब उसे दूसरे शहर में भेज दिया गया…. अब बस उसका मक़सद काम करना और बेटे की अच्छी परवरिश करना ही रह गया था ।
नए शहर में नए लोगों को बीच अकेली माँ को शुरू में थोड़ी दिक़्क़त हो रही थी तो उसकी माँ कुछ दिनों के लिए उसके पास आ गई ।
धीरे-धीरे जब सब सामान्य होने लगा माँ तो वापस चली गई और नित्या बच्चे को वही पास के क्रेच में छोड़ कर काम करती और बीचबीच में बच्चे का हाल पूछा करती।
ऑफिस में जितने भी सहकर्मी थे सभी नित्या का काम के प्रति लगन देख कर तारीफ़ करते नहीं थकते थे ।
इसी बीच उसकी मुलाक़ात निशांत से हुई जो ऑफिस में नया नया आया था…. दोनों एक ही टीम में काम करते…. बात बात में ही दोनों को उनके अतीत के बारे में जानकारी मिली …निशांत की भी शादी हो चुकी थी पर पत्नी के साथ बनी नहीं वो हर समय घर में कलह करती रहती थी तो दोनों स्वेच्छा से अलग हो गए ।
नित्या और निशांत कब क़रीब आ गए दोनों को पता ही नहीं चला कुश निशांत से बहुत बार मिल चुका था उसकी तारीफ़ भी करता था पर इससे ज़्यादा कुछ नहीं…नित्या जब भी कुश से हँस कर कहती चलो एक पापा ले आते है तब कुश कहता था ,“ मम्मा मैं हूँ ना पापा की क्या ज़रूरत … जब बड़ा हो जाऊँगा आपका ख़्याल रखूँगा ।” बस नित्या चाह कर भी आगे कुछ कह नहीं पाती थी ।
तभी कुश ने करवट लिया और नित्या के उपर अपना हाथ रखा नित्या सामने घड़ी देखी तो दो बजने वाले थे…. अतीत को झटके सेनिकाल वो सोने का प्रयास करने लगी ।
नित्या चाहकर भी कुश से कुछ नहीं कह पा रही थी….और समय यूँ ही गुजरता जा रहा था….
अब कुश एक सहायिका के साथ घर में रह जाता था… आज स्कूल से घर आकर वो अपना होमवर्क कर रहा था कि डोर बेल सुन वोभागा…. सहायिका दरवाज़ा खोल चुकी थी…. सामने अचेत अवस्था में नित्या को पकड़े हुए निशांत खड़ा था…. कुश यूँ तो निशांत कोपसंद करता था पर अपनी मम्मा के साथ देख उसका हाथ छुड़ाने लगा और नित्या को पकड़ने की कोशिश करने लगा…. पर बच्चा कैसेसँभाल सकता था….
“ बेटा मैं आपकी मम्मा को सहारा दे देता हूँ आप भी इधर से पकड़ लो…।” निशांत ने कहा
घूरते हुए कुश ने निशांत को देखा और सहमति में सिर झुकाए नित्या को पकड़ कमरे में ले गया …… नित्या की सहायिका से पानीमँगवाकर साथ लाई दवाइयाँ नित्या को देने लगा…
“ नित्या आँखें तो खोलों…. किसने कहा तुमसे उपवास रखने को उपर से इतना काम और भाग दौड़ कुछ तो सोचो कुश का ख़्याल कौनरखेगा ।” कहते हुए निशांत की आँखे छलछला आई
कुश जो अपनी माँ के पास चिपक कर बैठा था …देख रहा था निशांत नित्या के लिए कभी जूस ला रहा है तो कभी उसका हाथ पकड़ करउसे सँभाल रहा है बालमन अब समझ रहा था मम्मा के लिए अब कोई और भी चाहिए….. मैं अकेले मम्मा का ध्यान कैसे रख सकता हूँ….रात होने लगी तो निशांत जाने लगा…. नित्या अभी भी ठीक महसूस नहीं कर रही थी पर निशांत को रोक भी नहीं सकती थी…. फिर भी बोली,“ तुम हमारे साथ रूक जाते तो अच्छा होता वो सहायिका तो कब की चली गई होगी…. अगर कुश को या मुझे कुछ ज़रूरत हुई तो फिर तुम्हें फ़ोन करके बुलाना पड़ेगा….।”
“ आप हमारे साथ यही रूक जाओ ना…. मेरी मम्मा को आपकी ज़रूरत है …. ।” कुश ने बहुत प्यार से निशांत से कहा
“ मम्मा हम इन्हें कहानी वाले पापा बना ले….?” कुश ने धीरे से नित्या के कान में कहा
नित्या के चेहरे पर हल्की सी चमक आ गई… वो कहना चाहती थी पर कभी बेटे से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी और आज जब बेटे ने खुद कहा तो उसने भी धीरे से सिर हिलाकर हामी भर दी ।
नित्या की मम्मी जो सब बातें पहले से ही जानती थी उन्हें भी ख़ुशी हुई और निशांत के घर वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि जब बेटा खुश है तो उसकी ख़ुशी में हम भी खुश वाली बात थी।
नियति ने नित्या के जीवन में कड़वाहट की जगह अब ख़ुशियाँ भर दी थी… इस ख़ुशी के लिए वक्त ज़रूर लगा पर आख़िर उसके दामन मेंभी ख़ुशियों ने दस्तक दे ही दिया।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
मौलिक रचना ©️®️
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