परिवार के संस्कार और सहयोग ही समाज में बदलाव लाने की हिम्मत देते हैं। – सुल्ताना खातून 

“लागा चुनरी में दाग …….” दादी क्या ये पुराने गाने सुन रही हैं, आईए मेरे साथ डांस करें! दिव्या ने दादी को खिचते हुए बोली।

तभी दरवाजा खुला और अमित अंदर आया, पिछे एक काली चादर में धूमिल, डरी सहमी सी खुबसूरत सी लड़की भी थी।

तभी दादी ने ऐनक ठीक करते हुए कहा-

अरे….कोन है यह लड़की? इसकी हालत एसी,,,,   इसे यहाँ क्यों लाए हो…?

मैंने इससे शादी कर लिया है….. अमित ने बम फोड़ा…..

क्या…..? दादी और दिव्या एक दुसरे की ओर देखने लगे।

अमित के पापा  जय कुमार शहर के एक बड़ी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, वह एक सज्जन व्यक्ति थे, आधुनिक सोच रखने के साथ- साथ परम्पराओं में भी धनी थे…. वह शहर में अपनी माँ, पत्नी कविता जी और दो बच्चों अमित और दिव्या के साथ रहते थे….. अमित मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर शहर के एक बड़े हॉस्पिटल में काम कर रहा था,जबकि दिव्या अभी कालेज में थी। कुलमिलाकर प्रोफेसर साहब का परिवार सुसंगठित और आदर्श परिवार था।

आज संडे था, दिव्या देर से सोकर उठी थी, और दादी के साथ मस्ती कर रही थी, कविता जी घर के कामों में व्यस्त थी, प्रोफेसर साहब स्टडी रूम में थे….अमित रात से ड्यूटी पर गया था और अभी तक नहीं लौटा था और जब घर आया तो एक भुचाल लेकर…..

दिव्या तुम इसे अपने कमरे‌ में ले जाओ….अमित दादी के तरफ मुड़ते हुए बोला….और दादी के गोद में सर रखकर कहा,,, दादी मैं आपके सारे सवालों का जबाब दुंगा पर अभी मैं अकेला रहना चाहता हूँ…. कहते हूए अपने कमरे में चला गया। कमरे में आते ही अपने बिस्तर पर गिर गया,बिस्तर पर गिरते ही रात से हो रही घटनाओं के बारे में सोचने लगा…   सुबह 5 बजे वह हॉस्पिटल से निकल आया था, सुबह की ठंडी हवा ने उसे तरोताजा कर दिया घर जाने के बजाय यूंही सड़कों पर फिरने लगा ओर सडक पर दुर निकल आया वह गुनगुनाते हुऐ धीरे धीरे गाड़ी आगे बढ़ा रहा था तभी उसने देखा झाड़ियों से निकलते हुए एक लड़की बदहवास भागते हुए उसके गाड़ी से टकरा गयी…. चूंकि वह पहले से ही ब्रेक पर पैर रख चुका था इसलिए गाड़ी रूक गई थी,,,,, वह जल्दी से गाड़ी से नीचे उतरा…



अरे आपको चोट तो नहीं लगी,,,,, वह नीचे झुक कर पूछ रहा था,,,,, लड़की ने सर उठाया,,,,

काली चादर के बिच मासूम सा मुरझाया चेहरा…..बिखरे बाल…..सुखे होंठ…..आँखे आसुओं से‌ भरी हुई….अमित उसे देखता रह गया,,,,  तभी लड़की उठने की कोशिश करती हई बोली…..प्लीज मुझे मेरे घर छोड़ दीजिये. .. मेरे पिछे कुछ गुंडे लगे हैं। अमित ने जल्दी से गाड़ी का दरवाजा खोल उसे बैठाया और गाड़ी स्टार्ट कर दिया। अमित ने देखा वह डरी-डरी सी सिकुड़ कर बैठी है, उसने एड्रेस पुछा। लड़की ने एड्रेस बताया और खिड़की के बाहर देखने लगी।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद अमित फिर बोला-अगर आप चाहें तो मुझे अपने बारे में बता सकती हैं। लड़की ने उसकी तरफ देखा और फिर रोने लगी….कल सुबह  मुझे कालेज आते हुए अगवा कर लिया गया था….वह बोलकर फिर रोने लगी,,,, फिर….आप यहाँ,,, पूरे दिन मुझे एक गोदाम में रखा,,, मौका मिलते ही मैं भाग निकली,,,, रात भर मैं इन झाड़ियों में छुपी रही,,,, मैंने कालेज के एक अमीर मगर बिगड़े लड़के को इन्कार कर दिया था उसी ने गुंडे भेजे थे मैंने फोन पर हो रही उनकी बातें सुन ली थी,,,,,,,।

अमित ने सोचा कहीं वह फंस न जाए पर लड़की की मासूमियत देखकर सर झटक गया….अब वह शहर के तरफ आ गये थे, लड़की ने जो एड्रेस बताया था, वह एक घनी बस्ती थी लड़की ने हाथ के इशारे से उसे रुकने को कहा….. अमित ने गाड़ी रोक लिया,, पर वह निचे नहीं उतर रही थी, अमित उसकी परेशानी समझ गया और कहा चलिए मैं आपको छोड़ आता हूँ,,,,, उसने उसे गाड़ी से उतरने को कहा,,,,उसके गाड़ी से उतरते ही आस पास से लोग इक्कठा होने लगे,,, शोर सुन कर लड़की के घर वाले भी निकल आए तभी एक औरत ने लडकी को आ

दबोचा लड़की बिलबिला उठी क्यों रे….. अपने आशिक के साथ भागी थी…. यही है तेरा आशिक उस औरत ने चिल्ला कर सारे मोहल्ले वालों को बुला,,,, लिया वहीं किनारे एक औरत दिवार पकड़े रो रही थी वह शायद लड़की की माँ थी।

अमित आगे बढ़ा देखिये ये मूझे सड़क के किनारे,,,,,, वह अभी बोल भी न पाया था कि एक मोटा आदमी आकर लड़की को लातो घुस्सो से मारने लगा,,, अमित ने झपटकर उसे छुड़ाया और बोला इसे क्यों मार रहें हैं यह अगवा हुई थी इसमें इसका क्या कुसूर???



अरे कहा था इस बिगड़ैल को कालेज मे मत पढ़ाओ लेकिन माँ के पास खाने को नहीं पर पढा़एगी वह औरत चिल्ला कर बोली…..,भीड़ से खुसर फुसर भी होने लगी….. अच्छी लड़की थी रात भर गायब थी अब इसे कोई नहीं अपनाएगा,,,,, कोइ कहता पिछे लोण्डे लगा रखे ‌थे,,,, कोई कहता चरित्र हीन है,,,,,, लड़की पूरे ताकत से चिल्लाई- नहीं हूँ मैं चरित्र हीन।

तभी एक मोटी औरत बोली-तो क्यों इसके साथ आई है? अमित भिन्ना गया वह इस मामले में फस चुका था। वह बोला,,,, देखिये मैं केवल इन्हें यहाँ लाया हूँ,,,,मेरा इनसे कोई लेना देना नहीं और आपलोग किस तरह इस लड़की को चरित्र हीन कह रहें हैं। जिन लड़कियों के साथ उनके मर्जी के खिलाफ कुछ गलत होता है क्या वो चरित्र हीन हो जाती हैं,,,,,,आप लोग बताइए लड़की के चरित्र का सम्बन्ध उसके अपने कर्म से होता है या किसी दूसरे के कर्म से…… अरे मियां ये सब कहने की बाते हैं,,, तुम कर लोगे एसी लड़की से शादी? अमित सकपका गया…..मैं यहाँ केवल मदद…..अरे छोड़ो इसे मैं कराएगी अपने लट्टू से‌ इसकी शादी,,,था।सोने में लदी पान चबाती एक औरत  आगे बढ़ी,, साथ में एक लार टपकाता सर हिलाकर दान्त दिखाता एक आदमी था उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं लग रही थी,,,, हां हां,,,, एसा ही होगा नहीं तो कल को यह क्या गुल खिलाएगी,,,, सभी कहने लगे,,,,,

इतने देर में वह इन सब की मेंटालिटी अच्छे से समझ चूका था।

अमित ने उसके माँ के तरफ देखा एक वही सभ्य लग रही थी। लड़की की माँ ने  रोते हुए सबसे नजर बचा कर हाथ जोड़ दिये,,,,

अमित एकदम से बोला- मैं करुँगा इससे

शादी…….

दरवाजा जोर से बजने से उसके सोच का सिलसिला टूट गया,,,,, उसने दरवाजा खोला सामने दिव्या थी,,,,, सब आपको बूला रहे हैं,,, अदालत लग चुकी है,,,,, वैसे भाभी बहुत अच्छी है,,,,, आप तो छुपे रुस्तम निकले भाई,,,,,, तुम चलो मै फ्रेश होकर आता हूँ,,,, उसने दिव्या को चुप कराने के लिये जल्दी से कहा,,,, ओके दिव्या चली गयी।।



अमित फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में आ गया और सर झुका कर चुप चाप बैठ गया,,,,, मैंने तुम लोगों को हर तरह की आजादी दी,,,लेकिन मर्यादा के अन्दर मेरे बच्चे तुम दोनों ने भी मेरा सर कभी झुकने नहीं दिया आज एसी क्या बात हुई जिस हालात में ये लड़की है मुझे नहीं लगता तुम ने सोच समझ कर कुछ किया होगा,,,,,

बताओ क्या बात है,,,? प्रोफेसर जय कुमार की गम्भीर आवाज गूंजी।

अमित ने उसके तरफ देखा वह फ्रेश हो चुकी थी,,, दिव्या ने शायद उसे अपने कपड़े दिए थे,,, वह सर झुकाए चुप चाप बैठी थी,,, उसने पापा के तरफ देखा और सारी बाते बता दी ?

ड्राइंग रुम में सन्नाटा छा गया सब चुप थे,,, अमित उठा और पापा के घुटने के निचे बैठ गया,,,,, पापा आप ही ने हमें सिखाया है,,,,जुल्म होते नहीं देखना है,,,, पापा अगर समाज में बदलाव लाना है तो क्यों न उसकी शुरुआत हम अपने घर से करें,,,  

क्यूंकि समाज में बदलाव लाने की हिम्मत हमे “”””””परिवार”””””   के संस्कार और सहयोग से ही मिलती है, अमित के कहने पर, पापा उठे और उसे गले लगा लिए।

वह दादी के पास गया,,,,, और बोला दादी मैंने गलत किया??? दादी उसके सर पर हाथ रख कर बोली अरे…. गलत,,,,, मैं और कविता तो चिराग लेकर भी इतनी हसीन बहु न ढूंढ़ते!

अमित झेप गया,, उसने भी एसा मासूम हुस्न नहीं देखा था। कुछ था उसमें तभी तो वह उसे अकेला नहीं छोड़ पाया।

अमित बोला- वैसे इसने अपना नाम बताया….सभी हसने लगे वह भी मुस्कुराते हुए सोच रही थी, ये उसकी माँ के दुआओं का असर ही था कि वह इतने अच्छे लोगों में आ गई।।।

और बितते दिनों मे उसने साबित कर दिया के अमित का फैसला गलत नहीं था।।

#परिवार 

स्वरचित 

सुल्ताना खातून 

 

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