“बदलाव की लहर”  – कविता भड़ाना

दोपहर के समय मोहल्ले की सारी महिलाएं गप्पे मारती हुई ठेले वाले को घेर कर सब्जियों की खरीददारी में व्यस्त थीं की तभी सुभद्रा जी के घर का मुख्य द्वार खुला और देखा उनकी छोटी बहु गाड़ी बाहर निकाल रही हैं साथ ही सुभद्रा जी और उनकी बड़ी बहु भी गाड़ी मैं बैठ उड़नछू हों गईं।

ये देख सभी महिलाओं की बातों का केंद्र सुभद्रा जी का परिवार बन गया।

अब जैसा की आमतौर पर अक्सर देखा जाता है की महिलाएं बहुत भोली होती है, बिलकुल खुली किताब की तरह, अपनी परेशानियां, दुःख सुख सब आपस में सांझा कर लेती है और अपनी जैसी कोई दुखियारी मिल जाए और वो भी समूह में, फिर तो परेशानियों और दुखों का ऐसा पिटारा खुलता है की पूछो ही मत….

हल मिले ना मिले पर मन जरूर हल्का हो जाता है, किस के घर में क्या चल रहा है, किसकी सास ने बहु को अबला नारी बना रखा है या किसकी बहु ने अपनी सास

  का जीना हराम किया हुआ है, सब पता चल जाता है। हालाकि ये बड़ी गुप्त वार्ता होती है पर फिर भी पता नहीं कैसे नेटवर्क के तार इतने मजबूत होते है की किसने किसकी बुराई की सब गर्म रोटी पर मक्खन की तरह फैल ही जाता है।

ये तो छोटा सा परिचय हुआ हमारी भोली भाली मोहल्ले की महिलाओं का….लेकिन इसी मोहल्ले में एक घर सुभद्रा जी का भी है जो हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। 

सुभद्रा जी स्कूल में शिक्षिका थी तो वैसे ही समय कम होता था उनके पास, दो बेटों की मां और नौकरीपेशा शांत सरल से पतिदेव … ये चार लोगो का ही परिवार था । 

समय के साथ दोनो मिया बीवी नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए है, दोनो को ही बागवानी और पढ़ने लिखने का शौक़ है तो अपना सारा समय कुछ ना कुछ रचनात्मक कार्यों में लगाते रहते है।

सुभद्रा जी मोहल्ले की महिलाओं से हाल चाल पूछने तक ही सीमित रही है, कभी भी उनकी महफिल में समय नही दे पाई तो उनके घर का कुछ भी मसला “गर्म मसाले” की तरह मिला भी नही, बस यही दुख सालता था सबको और थोड़ी जलन सी भी होती की कैसे कोई भी चटकारे वाली  बात इनके घर से नही मिलती।




बेटे भी दोनो बड़े होनहार निकले तो यहां भी हाथ और मुंह (बाते ना बनाने के कारण खाली ही रह गए)… खैर बड़े बेटे की शादी के समय कुछ उम्मीद सी बंधी की बहु के आ जाने पर तो मसाला जरूर मिलेगा, पर शादी के साल भर बाद भी सास बहू का प्यार और तालमेल देखकर फिर से महिलाओं के दिलों पर सांप लोटने लगा।

अब दूसरी बहु भी आ गई लेकिन वही ढाक के तीन पात..

अक्सर शाम को तीनों सास बहुएं घर की छत पर साथ में हंसती खिलखिलाती चाय की चुस्कियों के साथ दिखाई देती, बाजार जाना हो या घूमने जाना हो सब साथ साथ होता

अब तो मोहल्ले की महिलाएं बड़ी हसरत से और ईर्ष्या से देखती की आखिर इस परिवार के इतने सुखी होने का राज क्या है?….

 जल्दी ही ये अवसर भी मिल गया, हुआ ये की पड़ोस के घर में माता की चौकी रखी गई थी, वहां सुभद्रा जी भी आई हुई थी, तो बस सारी महिलाएं उन्हें घेर कर बैठ गई और कह ही डाली अपने दिल की बात, की आखिर ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है।

  एक पल को सुभद्रा जी हंसी, फिर उन्होंने सबके जिज्ञासु चेहरे देख के कहना शुरू किया…  

  “प्यार और तालमेल के साथ संस्कार,मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर और अनुशासन, यदि ये आप अपने व्यवहार में ढाल ले तो पूरे परिवार को एक साथ लेकर चला जा सकता है, ये बात सास बहू और घर के दूसरे सदस्यों पर भी समान रूप से लागू होती है।




  मैने भी अपनी सास के साथ और अब दोनो बहुओं के साथ इन्ही बातों को ध्यान में रखकर सामंजस्य स्थापित किया है, चार बर्तन होते है तो आपस में टकराते भी है पर हम उन्हे उठा कर बाहर तो नही रख देते ना? फिर क्यों घर में होने वाली छोटी छोटी बातों को मिर्च मसाले के साथ बाहर वालो को परोसा जाए।

  बस इन्ही बातों को व्यवहार में रखकर, मैं अपने परिवार को एक रख पा रही हूं, जिसका नतीजा आप सब देख ही रही है।

“परिवार सुख दुख का साथी होता है, पर ना जाने क्यों हम उसे लड़ाई झगडे और क्लेश का अखाड़ा बना लेते है।

अब समय बदलाव का है ,माना हम थोड़े पुराने है पर पढ़े लिखे और आज के समय के साथ कदम से कदम मिला कर भी तो चल ही रहे है ना, तो क्यों नही कुछ हम अपनी मनमर्जिया करे और कुछ बच्चो को भी करने दे”….

“बदलाव ही प्रकृति का नियम है” एक नई शुरुआत करे और बदल डाले ये सास बहु के पुराने बोझिल से समीकरण…..

सभी महिलाओं को गहरे सोच में छोड़कर सुभद्रा जी अपने घर चली आई… 

ये कहानी स्वरचित और अनुभवों पर आधारित है।

आप सब की प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

धन्यवाद “

“बदलाव की लहर”

#परिवार

कविता भड़ाना

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