“परिचय” -ऋतु अग्रवाल

  मेरी कक्षा में एक लड़की थी। उसका नाम था- प्रतिष्ठा। पढ़ने में बहुत होशियार, समझदार और साथ में व्यवहार कुशल भी थी परंतु उसकी सब काबिलियत पर एक चीज भारी पड़ती। वह था उसका बहुत ही पक्का रंग। कक्षा में सदैव द्वितीय या तृतीय स्थान पर आती। सभी टीचर उससे बहुत खुश रहती थीं। सभी सहपाठियों के साथ भी उसका व्यवहार बहुत अच्छा था। काफी विनम्र थी वो।

     परंतु कभी ना कभी कोई ना कोई उसके रंग को लेकर कोई ना कोई अवांछित टिप्पणी कर देता। इस उम्र में बच्चे अपने व्यक्तित्व को लेकर काफी सचेत हो जाते हैं तो होने वाली टिप्पणियों की वजह से प्रतिष्ठा का मन पढ़ाई में कम लगने लगा। वह हर वक्त उदासीन रहने लगी और किसी तरह गोरा हो जाना उसका मकसद हो गया।

    इसके उपाय वह रात दिन तरह तरह के उपाय करने लगी और पढ़ाई में पिछड़ने लगी। तब मैंने उसकी मम्मी को बुलाकर पूछा कि प्रतिष्ठा को कुछ परेशानी है क्या? तब उन्होंने मुझे सारी बात बताई।

      सुनकर मुझे बहुत अजीब लगा। एक मेधावी छात्रा एक अनर्गल वजह से पढ़ाई में पिछड़ जाए,यह तो बहुत गलत हो जाएगा।

     तब मैंने प्रतिष्ठा को बुलाया और उससे पूछा कि बेटा, यह ब्लैक बोर्ड किस रंग का है? पहले तो उसने मुझे अचरज से देखा और फिर कहा कि काले रंग का। मैंने कहा कि जब मैं इस पर लिखती हूँ तो  आपको समझ में आता है। उसने कहा,”हाँ मैडम! समझ में आता है।


   “क्यों? क्या तुम इसके काले रंग से नफरत नहीं करती?” मैंने पूछा।

     “नहीं मैडम,अगर मैं इससे नफरत करूँगी तो पढूँगी कैसे?”वह बोली।

    “तो फिर तुम अपने रंग से नफरत क्यों करती हो? अपने समय का सदुपयोग अपनी तरक्की में करो।आप अपनी बुद्धि का उपयोग करके अपने आप को स्थापित करो। लोगों की निरर्थक बातों पर ध्यान मत दो।”प्रतिष्ठा को मेरी बात समझ में आ गई।

      वह अपनी हीनभावना से बाहर निकली और धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई की और ध्यान देने लगी। साथ ही वह खेलकूद और वाद-विवाद की विविध प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगी। इससे उसके व्यक्तित्व में और भी निखार आ गया। धीरे-धीरे वह स्कूल में बहुत प्रसिद्ध हो गई और बहुत ही जल्द उसके पास  बहुत सारी ट्राफियों का अंबार लग गया।

    यह देखकर जो लड़कियां उसके रंग रूप को देखकर हँसी उड़ाया करती थी, वह सभी उसकी तारीफ करने लगी। अगर प्रतिष्ठा को सही समय पर सही मार्गदर्शन नहीं मिलता तो एक बच्ची अपने रंग रूप को लेकर  इतनी कान्शियस हो जाती कि अपनी बुद्धिमत्ता का सदुपयोग करने से चूक जाती।

       इसके साथ ही मैं तमाम लोगों  से पूछना चाहती हूं कि क्या केवल गोरापन ही सुंदरता का परिचायक है? और इस गोरे रंग की चाह ने न जाने कितनी लड़कियों को अंधेरे गर्त में ढकेल दिया है।

  स्वरचित

   ऋतु अग्रवाल

   मेरठ

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