पापा कब आओगे? (भाग-2)   : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा।चार लोगों का सुखी परिवार था सुबोध मीना, ख्याति और यश। सुबोध का एक दोस्त था शिव जिसका विवाह नीरू से होने वाला था। एक दिन अचानक सुबोध ना जाने कहां गायब हो जाता है मीना और बच्चे परेशान हैं। अब आगे 

दोपहर में शिव आया। ख्याति उसकी टांगों से लिपट गई और रोकर बोली-“चाचू पापा कब आएंगे? मम्मी भी बताती नहीं और रोती रहती है।” 

शिव का हृदय बच्चों की तड़प देखकर रो उठा। ख्याति जब भी स्कूल से आती है पापा की फोटो लेकर, उससे बातें करती और पूछती”पापा कब आओगे?”दिन पर दिन बीतते गए, पुलिस को भी कोई सुराग नहीं मिल पाया। ना सुबोध का कोई पता चला और ना स्कूटर का। दिन बीते, सप्ताह बीते, महीने और साल पर साल बीतते गए, पर सुबोध नहीं मिला। 

बीते दिनों में मीना ने बहुत मुश्किलों का सामना किया। दुकान संभालने के साथ-साथ उसने बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ना शुरू कर दी थी। 

ख्याति और यश को हौसला देने के लिए वह उनके सामने अपने आंसू पी जाती थी पर अकेले में रो पड़ती थी। बच्चे जब अपने साथियों को अपने पापा के साथ घूमते या बात करते देखते तो उदास हो जाते। “बच्चों, आप लोग पढ़ लिखकर पापा का नाम रोशन करो। 1 दिन जब पापा लौट कर आएंगे तब आप लोगों को देखकर बहुत खुश होंगे। साथ ही साथ भगवान से प्रार्थना करते रहोगी हमारे पापा जहां भी हो, सुरक्षित हों और एक दिन हमें मिल जाएं। भगवान बच्चों की प्रार्थना जरूर सुनते हैं।” 

अकेले में मीना अपनी सहनशक्ति खो बैठती और कहती-“कहां हो तुम सुबोध, ऐसे अचानक कहां चले गए?” 

18 वर्ष बीत गए। ख्याति अब टीचर बन चुकी है और यश इंजीनियरिंग कर रहा है शिव का विवाह नीरू से हो चुका है और उसका एक पुत्र है राघव, जो कि लगभग 16 साल का है। 

अब हम चलते हैं दिल्ली क्योंकि हमारी कहानी वहीं पर आगे बढ़ती है। दिल्ली का एक व्यस्त बाजार। सुबह का समय है जिस समय बाजार खुलता है। एक टीवी की दुकान के बाहर बहुत शोर और गहमागहमी । तभी वहां एक व्यक्ति अपने बेटे के साथ पहुंचता है ये शिव था और उसके साथ उसका बेटा राघव। यह लोग अपने किसी काम से दिल्ली आए थे। यह दोनों उसे दुकान के अंदर गए और दुकान के मालिक से पूछा-“भाई साहब बुरा ना माने तो एक बात पूछूं?” 

यह इतना शोर कैसा, कुछ हुआ है क्या?” 

दुकानदार अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसने बताया ” कुछ दिनों पहले एक बाबा हम लोगों की दुकान के आगे आकर बैठ जाता था और रात को दुकान के बंद शटर के सामने छोटी सीढी पर सो जाता था। यहां आस-पास के दुकानदारों ने किसी ने भी अपनी दुकान के सामने उसे बैठने और सोने की अनुमति नहीं दी और उसे दुतकार कर  भगा दिया। मुझे न जाने क्या  सूझा मैंने सोचा चलो सोता रहे, इसमें अपना क्या जाता है। फिर एक दिन उसे बुखार आ गया तो मैं दवाई ले दी। उस बाबा ने उस बात को एहसान समझ कर उस एहसान को उतारने के लिए कल रात अपनी जान जोखिम में डाल दी। रात को चोर मेरी दुकान का ताला खोलने की कोशिश कर रहे थे। चौकीदार का कोई अता-पता न था। एक ताला तो उन्होंने खोल लिया था, तब खटपट से इस आदमी की नींद खुल गई और उसने चुपचाप दबे पांव उठकर पीछे से चोर को धर दबोचा और जोर-जोर से चिल्ला कर चौकीदार को बुलाने लगा। जब तक चौकीदार आता तब तक दूसरे चोर ने अपने साथी को छोड़ने के लिए कहा, छोड़ दे इसे वरना तेरा सिर फोड़ दूंगा। लेकिन बाबा ने चौकीदार के आने तक उसे चोर को नहीं छोड़ा और दूसरे छोर ने बाबा के सिर पर एक पत्थर दे मारा।सिर से खून निकलने के बावजूद वह आदमी डटा रहा। चौकीदार के साथ दो-चार आदमी और भी आए और उन्होंने मिलकर दोनों चोरों को पकड़ लिया। बाबा को अस्पताल भिजवा दिया है। जाते-जाते उनकी जेब से यह पर्स गिर गया।” 

दुकानदार के हाथ से शिव ने वह पर्स ले लिया और उसे खोलकर देखने लगा। अंदर की तस्वीर देखकर वह चौंक गया। यह तो सुबोध के परिवार की तस्वीर है, इतने वर्षों में यह बहुत धुंधली हो गई है लेकिन मैं इसे पहचान ना सकूं ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन यह वालेट बाबा के पास कहां से आया। उसने दुकानदार से पूछा-“वह बाबा कौन से अस्पताल में है?” 

दुकानदार ने कहा-“चलिए मैं भी चलता हूं, मुझे भी उससे मिलकर उसका धन्यवाद करना है और हाल-चाल पूछना है।” 

शिव,राघव और दुकानदार तीनों ऑटो में अस्पताल पहुंच गए। 

उबड खाबड़ गंदे से बाल, लंबी सी काली सफेद दाढ़ी, एक कमजोर सा आदमी सर पर चोट खाए बेड पर लेटा हुआ था। शिव ने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने बताया कि घाव गहरा है लेकिन डर वाली कोई बात नहीं। क्रमशः 

(जल्दी ही तीसरा और अंतिम भाग) 

कौन था यह बाबा और इसके पास सुबोध के परिवार की तस्वीर कहां से आई, आखिर सुबोध है कहां) 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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