पढ़ी लिखी -डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

उमेश ने रुचि से  लव मैरिज की थी, दोनों साथ ही पढ़ते थे कॉलेज में,रुचि बहुत प्रतिभाशाली थी,हमेशा टॉप पर रहती,उमेश से आगे ही रहती हमेशा,दोनो की शुरू से दोस्ती थी और फिर वो प्यार में बदल गई।

रुचि एक अमीर परिवार की   शहरी लड़की  थी,उसके पापा बड़े बिजनेसमैन थे,वो हालांकि उमेश से उसकी शादी कराने के पक्ष में नहीं थे पर बेटी की जिद के आगे उन्हें हार माननी पड़ी।

उमेश,उसके विपरीत गांव की पृष्ठभूमि से था,उसके पिता वहीं गांव मे एक विद्यालय के रिटायर्ड प्रिंसिपल और मां सीधी सादी घरेलू महिला थीं।उमेश के पिता ,काफी उच्च शिक्षित थे और बहुत ही विनम्र व्यक्ति थे जिनकी सब बहुत इज्जत करते।

यूं तो रुचि और उमेश शहर में ही रहते थे क्योंकि दोनो की जॉब शहर में थी,दोनो ही यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स थे पर यदा कदा त्योहारों में घर आते।

रुचि पढ़ाई में जितनी होशियार थी उससे कहीं ज्यादा उसे इस बात का घमंड भी था,हमेशा वो बात बात में वहां लोगों को बताना न भूलती कि वो शहर के प्रतिष्ठित कॉलेज की टॉपर है।

एकाध बार, उसकी किसी बात पर घर में  अपने ससुर से जो खुद केमिस्ट्री से पढ़े थे, बहस हो गई और वो घमंड में भर के बोली,पापा जी! आप मुझसे बहस न करें, मै केमिस्ट्री में पी एच डी, डी लिट हूं,आपकी नॉलेज इतनी अपडेट नहीं है अब,वो पुराने ज़माने की बात थी जब आप पढ़े होंगे।

वो चुप रहे और मुस्कराते हुए वहां से हट गए।

उमेश ,रुचि को कई बार समझाता,पिताजी से तुम ऐसे न हिलगा करो,वो बहुत विद्वान हैं,अपने समय के वो भी टॉपर रहे हैं…पर वो तुम्हारी तरह बड़बोले नहीं हैं बस।

जाओ भी…वो अहंकार से कहती और उसकी एक न सुनती।

एक बार,रुचि को अपने गाइड,सुपरवाइजर प्रोफेसर विज की इच्छानुसार उन्हें अपने गांव(ससुराल) वाले घर बुलाना पड़ा।रुचि की समझ से बाहर था कि वो वहां क्यों आना चाहते थे पर उनकी इच्छा को वो टाल न सकी।

बहुत तैयारियां की थीं रुचि ने उस घर को मॉडर्न तरीके से सजाने,संवारने में।उसके सास ससुर ने जानना चाहा,आखिर ऐसा कौन सा रहा है जिसके लिए ये सब हो रहा है…हम जो भी हैं वो हमारा व्यवहार दिखाता है न की ये सब चीजे…पर उसने उनकी बात ज्यादा नहीं सुनी और पलट कर कहा,आप लोग सोच भी नहीं सकते वो कौन हैं,उन्हें इंटरनेशनली अवार्ड्स मिल चुके हैं…

शाम को उसके मेहमान आए,रुचि उनकी आवभगत में लगी हुई थी,वो चाहती तो नहीं थी कि उसके ससुर मेहमान के सामने आएं पर उमेश के डांटने पर चुप रही।

डॉक्टर विज ने जब उसके ससुर को देखा वो उनके पैरों में झुक गए…प्रिंसिपल सर! आप यहां हैं अभी तक?वो भाव विह्वाल हो उठे।

उन्होंने ध्यान से उसे देखा…तुम अधिराज हो?उसे पहचानते वो बोले।

जी…आपसे ही हमने केमेस्ट्री के सूत्र याद रखने की ट्रिक्स सीखी थीं,देश विदेश के कितने ही टीचर्स से पढ़ लिए पर वो बात जो आपमें थी,आज तक कहीं न देखी।

रुचि अवाक होकर ये सब देख रही थी,उसने कभी अपने ससुर को नहीं समझा और उनसे बहस करती रही,उन्होंने कभी बताया भी नहीं कि उनके स्टूडेंट्स इतनी बड़ी पोस्ट पर हैं।

आज वो कहावत सच सिद्ध हो रही थी,थोथा चना बाजे घना…वो कैसे अपने ज्ञान का पिटारा अपने सिर पर लिए घूमती रही और उसके ससुर इतने ज्ञानी होते हुए भी बिल्कुल शांत,सरल और सौम्य।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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