न्याय – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अनमनी सी मै घर के काम निपटा ही रही थी कि बेल बजी।काम वाली बसंती कयी दिन से नहीं आ रही थी तो मन बहुत खिन्न था।इनको जितना सुविधा दो यह अपने तरीके से बाज नहीं आने वाली।यही सोचती द्वार खोला तो बसंती हांफती हुई खड़ी थी ।पुरे दस दिन के बाद बसंती आज आई थी ।गुस्सा तो मुझे बहुत आया, फिर भी अपने को जब्त कर लिया ।” कयों री,काम छोड़ देने का मन है क्या तेरा, हाँफ क्यो रही है?”

” नहीं दीदी, बताती हूँ, जरा पानी तो पी लूं ” मैंने उसे अन्दर बुलाया ।पानी का गिलास दिया ।वह एक ही सांस में पी गई ।अब थोड़ा सामान्य हुई ।” दीदी आप तो जानती ही हैं कि पति के गुजर जाने के बाद चार घर में चौका बर्तन करके अपना और बेटी बेटे का पेट पाल रही थी ।दुख में कोई आगे नहीं आया ।फिर अचानक गांव से जेठ जी आ गए ।बोले, ” बसंती अब मै आ गया हूँ, तू चिंता मत कर ” ।मैंने सोचा पति के बड़े भाई ही तो हैं ।मैंने उन्हे आदर सम्मान दिया ।

सोचा घर में एक गार्जियन होंगे तो दुनिया बुरी नजर नहीं डालेगी।बेटी दस साल की, और बेटा पाँच साल का था।दोनों का स्कूल में नाम जेठ जी ने लिखा दिया था ।मैं बहुत खुश थी,चलो पिता नहीं है तो क्या, बड़े पापा तो हैं ना ,देख भाल के लिए ।फिर मै आपके यहाँ निश्चिन्त होकर काम करने लगी थी ।

जेठ जी भी राज मिस्री का काम करने लगे ।दोनों बच्चे स्कूल से आकर घर में पढ़ाई करते ।मैं चाहती थी कि वह पढ़ाई करके अपनी जिन्दगी संवार लेंगे ।जेठ जी अपनी कमाई से उनके लिए कपड़े, मिठाई लाते।घर के लिए राशन पानी जुटाते ।मुझे और क्या चाहिए? कभी कभी हमें और बच्चों को घुमाने ले जाते ।

सर्कस ले जाते ।जिन्दगी बस आगे बढ़ने लगी थी ।पति के बड़े भाई हैं तो मेरे भी तो भाई हैं ।मैं अपने को सुरक्षित महसूस करती।दो महीने पहले ही उनकी पत्नी गुजर गयी थी।उन्होंने बताया कि अब गांव में मेरा मन नहीं लगा ।बच्चे हैं नहीं तो क्या करता? अब तुम लोग ही मेरा परिवार हो ।

” वाह! इतने सहृदय भाई, आजकल के जमाने में कहाँ मिलते हैं?” बसंती के बातों में मेरी दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी ।चूंकि मेरे पति की बदली अभी अभी पटना में हो गई थी और मैं काम वाली बाई की तलाश कर रही थी कि अचानक बसंती का आगमन हुआ ।” दीदी, अगर आपको कोई काम वाली चाहिए तो मै ही कर दूँगी ” अन्धा क्या चाहे, दो आँखे! मैंने उसे तुरंत रख लिया ।वह बहुत साफ सुथरी और ढंग की थी।

काम भी अच्छा करने लगी थी ।अभी उसे काम करते एक महीने ही हुए थे कि नागा करने लगी ।मेरी परेशानी बढ़ती तो पति भी गुस्सा करते ” और रखो,बिना सोचे समझे, अरे इनका कोई भरोसा नहीं है ” क्या करती, सबका सुनना पड़ता ।और आज अचानक दस दिन के बाद वह आ गयी ।

बसंती ने आगे कहा कि जेठ जी बहुत अच्छे थे दीदी ।बच्चों को बहुत प्यार करते थे ।घर में जरूरत का पूरा करते और दिन भर काम पर चले जाते ।रात में खाना घर में खाते और फिर कहीं सोने चले जाते कि उनका एक साथी है जो अकेले रहता है उसी के यहाँ सोना चाहता हूँ ।

इससे बढ़कर मेरे लिए और क्या खुशी हो सकती थी।बसंती को गंगा किनारे घुमना बहुत अच्छा लगता था।कहती थी दीदी, बहुत शान्ति मिलती है वहाँ नदी किनारे ।जेठ जी अक्सर बच्चों को और बसंती को वहां घुमाने ले जाते ।बच्चों को नाव पर बैठना बहुत अच्छा लगता ।अभी कुछ दिन पहले जब मैं आपके यहाँ से घर गयी दीदी तो मेरी बच्ची कमरे में फटेहाल वस्त्र में रो रही थी ।मैंने पूछा ” रो क्यों रही है, क्या हुआ?”।

उसने जो बताया वह चौंकने वाली बात थी ।” अम्मा, तुम काम पर चली गयी थी, मै तुरंत स्कूल से आकर कपड़े बदलने लगी तो वह भी पीछे पीछे आ गए ।मैं कुछ बोलती इससे पहले उनहोंने मेरा मुँह कसकर बांध दिया और कहा कि किसी को बतायेगी तो तुझे और तेरी अम्मा और भाई को जान से मार दूँगा ।

वह बहुत बुरे हैं अम्मा, बहुत बुरे— उनहोंने मेरे साथ बहुत गलत किया ।” कबसे ऐसा चल रहा है?” मेरे सवाल पर बेटी रोने लगी ।” चार दिन से—“। तुम बताती मुझे? ” मै डर गई थी अम्मा “। बेटी की हालत बदतर थी।मैंने अपने दिमाग से बहुत सोचा ।शान्ति से हल निकालना होगा ।वरना दुनिया हमे ही बदनाम कर देगी ।बच्ची का जीना मुश्किल हो जाएगा ।इस मतलबी रिश्ते को खत्म करना ही होगा ।इस कलंक के धब्बे को मिटा देना चाहिए ।

फिर जेठ जी दूसरे दिन हंसते मुसकुराते आये ।” छीः,कैसा नीच आदमी है यह ” ।लग रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है ।मैंने मन में तय कर लिया ।इसबार गंगा पुल पर घूमने जाना है ।वह सहर्ष तैयार हो गये ।मैंने ऐसा जाहिर किया जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं चला है ।बच्चों को भी साथ ले लिया ,वर्ना दुनिया मुझे ही बदनाम कर देगी ।

हम चारों गंगा पुल पर थे।थोड़ी देर इधर उधर की बातें की ।फिर बेटे से कहा- तुम दोनों पुल के दूसरे तरफ से देखो।रोशनी में जाती हुई नाव कितना सुन्दर लग रहा है ।बच्चे उधर चले गए ।हम और जेठ जी रेलिंग पकड़ कर देखते रहे।रेलिंग एक जगह से टूटा हुआ था ।क्षण भर में मैंने फैसला कर लिया ।रात की रोशनी में गंगा का दिलकश नजारा था।जेठ जी मंत्रमुग्ध देख रहे थे।बस यही अच्छा मौका था।मैंने तुरंत उन्हे धक्का दे दिया ।बच्चे पास आये ।

पूछा- वे कहाँ हैं? मैंने बताया, टूटी हुई रेलिंग पकड़ कर खड़े थे,गिर पड़े नदी में ।मैंने बच्चों को शान्त रहने को कहा ।बेटी शायद कुछ कुछ समझ रही थी, लेकिन चुप रही।अपनी कहानी सुना कर बसंती अब थोड़ा सामान्य हुई ।” अब क्या सोचा है तुमने बसंती?” किसी ने तुम को ऐसा करते देखा तो नहीं ना ? ” दीदी, कोई देखे या नहीं, पर उपर वाला और खुद मै तो देख रही थी न?” अब मै थाने में जाकर अपना गुनाह कबूल करना चाहती हूं ।

अपने बच्चों को आपको सौंप रही हूँ ।बेटी घर का सारा काम कर देगी ।बहुत सलीके वाली है यह।बेटा भी फूल पौधे की देखभाल कर देगा ।आप पर बहुत भरोसा है दीदी ।दुनिया में आपके सिवा मेरा कोई भी नहीं है ।हो सके तो मुझे माफ कर देना ।” हाँ बसंती, तुमने सही किया ऐसे मतलबी और धोखे बाज रिश्ते को खत्म कर देना ही सही था।” तुम ठीक किया ।बच्चों के तरफ से तुम मुझ पर भरोसा रखो।उनकी शिक्षा मेरी जिम्मेदारी बनती है ।

बसंती ने मेरे पैर छू कर विदा लिया ।थोड़ी देर बाद उसके दोनों बच्चे मेरे दरवाजे पर खड़े थे।मैंने अपनी बाहें फैला दी ।दोनों सिमट गये मेरी बाहों में ।अब मैं ही उनकी माँ थी।मुझे बसंती को न्याय दिलाना ही होगा ।यह सोच कर अपनी प्रिय सखी कान्ता को फोन लगाया ।वह एक नामी वकील थी।उसने मुझे आश्वासन दिया कि वह बसंती को न्याय अवश्य दिलायेगी, लेकिन कुछ सजा तो उसे काटनी ही होगी ।मेरा मन अब हल्का हो गया ।फिर सुबह तो जरूर आयेगी ।

उमा वर्मा ।राँची, झारखंड ।स्वरचित ।मौलिक और अप्रसारित ।

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