निसंतान होना अभिशाप नही है – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

ये शुभ दिन है बड़ा प्यारा, बधाई हो बधाई.. जीवन का हर लम्हा सुखदाई, बधाई हो बधाई… गीतों की भरमार करके किन्नरों ने तो आज भारती जी के घर की रौनक ही बढ़ा दी। खुशियों पर चार चाँद ही लगा दिये गाते गाते एक किन्नर बोली देखो अम्मा निराश नहीं करना आज हमें, बड़ी उम्मीद रखते हम आपसे भगवान बनाये रखे आपका घर बार जुग जुग जीवें आप के लाल.. 

हाँ, हाँ क्यों नहीं अच्छा सा आशीर्वाद दे जाओ मेरे पोते को…ॽ कमी कोई न रखूंगी मुंह मांगा दूंगी अरी चाँद सा लल्ला आया मेरे घर में बरसों की मुराद पूरी हुई बड़ी बहु से उम्मीद की थी उसके तो दो बेटियां ही हुई हैं मै तो तरस गई थी

पोते का मुंह देखने के लिए सोच रही कहीं पोते का मुंह देखे बिना ही न चल दूं भारती जी खुशी से चहकती हुई बोली अरी अम्मा ऐसा क्यों बोलती हो…ॽ अभी तो नाते पोतों की शादी का शगुन भी देना आपने हमको, खूब जियों सो बरस जीयें अम्मा किन्नर हाथ मटकाते ठुमके लगाते ढोलकी पर एक थाप लगाते हुए बोली। 

भारती जी की बहु निशा कल ही अस्पताल से आई बेटे को जन्म दिया उसने सासूमां ससूर जी ननद देवर जेठ जेठानी सबने मिलकर उसके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी सभी बहुत खुश थे आखिर हों भी क्यों नहीं ॽ कोई बुआ बना कोई चाचा कोई ताई ताऊ तो कोई दादा दादी ऊपर से किन्नरों ने आकर घर की रौनक ही बड़ा दी । 

नामकरण संस्कार की जोरों शोरों से तैयारी होने लगी किसे बुलाना है किसे नहीं बुलाना है। क्या खाने में बनेगा ? रिश्ते दारों के रहने की व्यवस्था कौन घर में रहेगा किस किस की व्यवस्था बाहर की जायेगी वगैरा वगैरा सभी कामों में सासूमां का फैसला ही प्रमुख था किसी की हिम्मत नहीं उनकी बात नकार दे…

खूबसूरत रिश्ता – संगीता अग्रवाल

निशा की सीजेरियन डिलीवरी तो सात दिन अस्पताल में रहना पड़ा डाक्टर ने जांच कर सुनिश्चित किया था भारी वजन न उठाने की सलाह दे छुट्टी दी गई उसे। अपनी बड़ी बहन की रह रह कर याद आ रही आज पास होती तो उसका दुख दर्द कम होता उसकी दीदी हैं ही ऐसी एकदम सरल व्यवहार निष्कपट सोच ममता का भण्डार उनका प्यार उसके कष्ट उसके आधे दर्द को कम कर देता अपने पन को तरसती निशा ने अस्पताल में सासूमां से बोला-

दीदी को बुला लेती हूँ लेकिन सासूमां ने झिड़क दिया दिमाग सही है तुम्हारा वो क्या करेगी यहां आकर, 

उसका भला यहाँ क्या काम…ॽ 

वो मनहूस की छाया डालेंगी मेरे पोते पर,

 वो निपूती, निसंतान मनूहसियत ही फैला सकती है…. उसने बड़े बच्चे जने है जो तुझको सलाह मशवरा देगी… 

अरे हम है तो यहां, सासूमां के दो टूक जवाब से निशा कि दिल टूट जाता है । शरीर की पीड़ा और ज्यादा कष्ट देने लगती है शरीर में कांटे से चूभने लगते हैं …

 काश ये सासूमां समझ पाती भले ही ससूराल पक्ष कोई कमी न रखे मगर ऐसे वक्त में मायके का एक सदस्य भी एक अजीब सुकून दे जाता है दिल में ,उनका प्यार आक्सीजन का काम करता है। इन ससुराल वालों का दिल इतना पत्थर क्यों होता है क्यों बहु की पीड़ा का अहसास नहीं होता इनको उसकी आँखों में आँसूओं की धारा बहने लगती है….ॽ

और तो कोई था नहीं मायके में जिससे अपना दुख दर्द बाँट सकती माँ बाऊजी पिछले दो बर्ष में चल बसे हम दो ही बहने थी दीदी बड़ी थी शादी भी जल्दी कम उम्र में ही कर दी थी बस एक ही दुख उनकी जिंदगी में वो निस्संतान थी और यही कारण उसकी सासूमां उनको बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं । उसका मन कहता क्या निस्संतान होना अभिशाप है ॽ ये दुनिया कब किसी औरत के दर्द उसकी पीड़ा को समझेगी ।

रिश्ता गुलाब सा – सीमा वर्मा

घर में नामकरण संस्कार में आने वालों की लिस्ट में दीदी का नाम न देखकर निशा सासूमां से दीदी को निमंत्रण देने की इच्छा जाहिर करती है। वो कहती मैं चाहती हूँ मेरी दीदी इस खुशी के मौके पर शामिल हों ।

लेकिन सासूमां उसको कहती हैं वो यहां आकर क्या करेगी वो निस्संतान उसको बुलाकर हमने अपशगुन नहीं करवाना अपने घर में। निशा बहुत समझाती उसकी बड़ी बहन उसके लिए माता-पिता की तरह है लेकिन सासूमां नहीं मानतीं निशा के लिए तो उसकी दीदी श्रेष्ठ है उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। मन में निराशा घर बना लेती है।

 घर में सभी कार्य सम्पन्न हो जाते हैं दो तीन दिन रौनक फिर नित्य दिनचर्या शुरू हो जाती है निशा दीदी को फोन कर अपने बारे में बताती है और बुला न पाने के लिए क्षमा मांगती है। उसकी दीदी कहती हैं निशा तुम परेशान न हों मैं अच्छे से समझ सकती हूँ जब मेरे ससुराल मेरे खुद के घर वालों ने मेरी कद्र नहीं की तो बहार के लोगों के बारे में क्या कहें ॽ 

किसी की गोद भराई, शादी मेंहदी शुभ कार्यों में उसे दूर रखा जाता शामिल होने की परमिशन ही नहीं मिली कभी जाने कितनी प्रार्थनाएं ब्रत उपवास मन्नतें सभी उसने पूरी कर लीं अब मैंने सब छोड़ दिया भगवान को उलाहना देती हूँ..किसे कहूं जाकर अपने दिल का दर्द, हर कोई उससे कटा कटा सा रहता है। अब जब मेरे नसीब में ऊपर वाले ने सन्तान सुख लिखा ही नहीं है… तो इसमें मेरा क्या दोष है भला ॽ समझ नहीं आता क्या निस्संतान होना अभिशाप है..ॽ

महिने भर बाद निशा की दैनिक दिनचर्या पूर्व वत हो जाती है एक दिन वो बच्चे के लिए कुछ सामान खरीदने माॅल जाती है वहां अपनी दीदी को दो छोटे छोटे प्यारी बच्चियों के साथ सामान खरीदते चहलकदमी करते चहकते हुए देखती है। निशा दीदी को पुकारती फिर दोनों काफी हाउस में बैठ बतियाने लगते हैं एक दूसरे के सुख दुख दोनों बच्चों के बारे में बताती है ये करोना महामारी में अपने माता-पिता को खो चुके थे माता-पिता के अतिरिक्त इनका कोई नहीं है इस दुनियां में उनके जाने के बाद अकेले रह गये है। 

मैं इनके माता-पिता से पूर्व परिचित थी बहुत भले इंसान थे बीमारी में मैंने उनको वचन दिया था बच्चों की देखभाल करने का अब वो नहीं रहे तो मैंने इनको गोद ले लिया है और मेरे पति ने भी मेरा पूरा पूरा साथ दिया वो इनको अपने  बच्चों की तरह चाहते हैं । ससूराल वाले नाराज हैं मगर ये हमारा जो रूढ़िवादी समाज है ये हमें किसी भी हालत में सुख से जीने नहीं देता है। 

पवित्र रिश्ता – पुष्पा जोशी

ये हमारे खोखले रीति-रिवाज आडम्बर इंसान को तोड़कर रख देते हैं। 

मैं बहुत परेशान हो गई थी लोगों के ताने सुन-सुन कर और हिम्मत नहीं बची थी मुझमें। अब मैं निस्संतान नहीं हूँ अपनी सासूमां से कहना जाकर जल्दी ही

 “ मैं उनके पोते को देखने आऊंगीं” । 

उनको कहना तुम्हारी बहन ने सुन्दर बगीचा सजा लिया है जिसकी छांव में बैठकर बड़े सुकून का अहसास होता है। भले ही ईश्वर ने मेरी दुआ कुबूल नहीं की नियति ने पहले ही सोच रखा था मुझसे मेरी जिंदगी के सभी रंग छीन लेने का । लेकिन मैं कब हार मानने वाली थी ।

 निशा दीदी को आश्वासन देती है दीदी आपने बहुत अच्छा फैसला लिया मुझे गर्व है आप पर और आपकी सोच पर अपने  को कभी अकेला मत समझना, मैं सदा हर कदम पर आपके साथ रहूंगीं दीदी 

.” अब एक जिम्मेदारी का बोझ आपके कंधे पर आ गया है अब वक्त रोने का नहीं जिम्मेदारी संभालने का है “।

निशा ने उठकर दोनों बच्चियों के सर पर हाथ फेरा बेटा मैं मौसी हूँ तुम्हारी,बच्चियां मुस्कुराने की कोशिश कर रहीं मगर उनकी आँखें आँसूओं से भीग रहीं थी। दोनों हाथों से आँखें पौंछती बड़ी मासूम लग रहीं थी। शायद माता-पिता की याद आ रही उम्र के हिसाब से इतनी जल्दी भूलना संभव नही हो सकता।

निशा ने उनके मासूम चेहरे को बारी बारी से चूम लिया उनके नन्हे हाथों के स्पर्श से उसका दिल भर आया । उसने देखा बड़ी दीदी की आँखों में अथाह स्नेह उमड़ रहा था । दिल में असीम ठंडक महसूस हो रही थी। सब देखकर निशा को बहुत सुकून महसूस होता है।  कोई भी इंसान मनहूस नहीं होता यह समाज का नकारात्मकता भरा दृष्टिकोण जिसमें अपने दोष दूसरों पर डालकर उनको मनहूस साबित करने की कोशिश रहती है। “ मनहूस समझना मन का विकार है एक अंधविश्वास है” । 

संतान रहित होना संतान वान होने की तरह सौभाग्य का चिन्ह है संतान नहीं है तो आत्म उन्नति में अपनी शक्ति लगायें अपने सद्गुण बढायें अपनी धर्म सम्पत्ति बढ़ायें जो बुढ़ापे में आनन्द की पूर्ति सुख देगी । तो यह कहना सही सिद्ध हो जायेगा निस्संतान होना अभिशाप नहीं है।

  लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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