नरमुंडा की दुनिया   – अनुज सारस्वत

#जादुई_दुनिया

“मेरा तो जीना ही बेकार है,इससे अच्छा तो कही कुएं में डूबकर मर जाऊँ”

जंगल के रास्ते घर जाते हुए खैंचूमल इतना सोच ही रहा था कि उसका पैर एक दलदली जमीन पर पड़ा और उसका सारा शरीर उस जमीन में घुसता चला गया 

“अरे मार दियो रे मार दियो रे ” के करूण  कृदंन से पूरा जंगल हिल गया आखिरकार उस जमीन ने उसको पूरा लील लिया ।

 

कुछ समय बाद खैंचूमल को अपने चेहरे पर गीलापन महसूस हुआ वो भड़-भड़ाकर उठा तो चारों और बैंगनी रंगो से नहाया हुआ एक महल दिखा जिसके आँगन में वो जमीन के निगलने के बाद आकर गिरा था और बेहोश हो गया था।

इतने में फड़-फड़ा हुआ एक पंछी ऊपर से उड़ा ,हँसता हुआ जिसकी शक्ल उल्लू जैसी थी पर चमगादड़ जैसे थे और पूँछ थी लंबी लंगूर जैसी।

 

उसे देखते ही खैंचूमल के प्राण ऊपर को खिच गये ,फिर जो पानी उसके ऊपर गिरा था वो गाढ़ा हो चला था 

“क्या है यह मेरे ऊपर ?”

चिढ़कर बोला वो

तभी उस अजी पक्षी ने यू टर्न लिया और परों के अंदर से बंदर जैसे हाथ निकाल कर नीम की टहनी को अपने दाँतो में डालते हुए, जहरीली मुस्कान के साथ कहा

“यह हमारे शरीर का गंदा द्रव्य है जिससे तुम्हारी मूर्छा खुली”

 डर से कांपते हुए खैंचूमल को गुस्सा आया और बोला 



“अबे सीधे सीधे काये ना कहत ससुर तुम कर दिये हम पर लघुशंका ,देखने में तो कोई जात के पक्षी ना लगत हो ऐसे ही नहाया दिये गंदे पानी में हमें ,हो कौन तुम और हम यहाँ कैसे पहुंचे कौन जगह है यह ,निकालो हमें यहाँ हमारी कटोरी देवी हमाओ इंतजार कर रही होगी भगोने लेके”

तभी वो पक्षी हँसा और बोला 

“एक बार में सारे ही उत्तर नही देंगे हम तुम्हारे ,खुद तुम्हें जानना होगा और हर कदम पर तुम्हें पता लगेगा आगे बढ़ने का रास्ता, बस इतना कहेंगे तुम्हारा स्वागत है नरमुंडा की दुनिया में”

इतना भयानक नाम सुनकर खैंचूमल की आत्मा उसका साथ छोड़कर जाने वाली थी कि हिम्मत करके वो कुछ और पूछता उस पक्षी से वो गायब हो गया ,अब किसी प्रकार आगे बढ़ा वह,बहुत भूख लगी थी उसे ,उसे अपनी कटोरी देवी के बनाये हुए पकवान याद आने लगे ,पूड़ी हलवा,रायता, बूंदी के लड्डू जो आज उसने खैंचूमल की सालगिरह के उपलक्ष्य में बनाये थे।

वो यह सोच ही रहा था कि एक पेड़ पर जुगनूचमकने लगे और डालों पर जो वो सोच रहा था वही भोज लटक रहे थे अब तो खैंचूमल में शक्ति का संचार हुआ चढ़ने लगा पेड़ पर।

तभी पेड़ चलने लगा और खैंचूमल छिपकली की भाँति चिपक गया पेड़ के तने से और 

“सटाक सटाक की आवाज गूंजने लगी “

जो कि पेड़ की टहनियां हाथ बनकर खैंचूमल की पीठ को सेंक रही थी,और वो बोलता जा रहा था 

“हमने कौन सा पाप किये थे जो यह सजा मिली ,हाय मार दियो रे “

 फिर एक जगह जाकर पेड़ रूक गया ,खैंचूमल भी छिटक कर कराहता हुआ जमीन पर गिरा लेकिन वो जमीन गुदगुदी लगी जिससे उसे बड़ा आराम से महसूस हुआ तथा कुछ ही समय में वो गुदगुदी जमीन किसी जानवर की पीठ बन चुकी थी और खैंचूमल ऊपर नीचे होता गया,अब तो उसे काटो तो खून नही ।

आधा भैंसा आधा घोड़े के समान वो पशु तीन सींग वाला था ,खैंचूमल हिलने के कारण उसकी पूंछ पकड़कर लटका था तभी एक तीव्र प्रकाश उत्पन्न हुआ छत्तीस नर कंकालों वाले एक पचास फुट के राक्षस का जो डरावनी अट्टहास कर रहा था और हँसते हुए बोला 



“अहम नरमुंडास्मि”

“कौन आया है काल के गाल में मेरी जादुई दुनिया में मानव , यह मेरा क्षेत्र है”

इतनी गर्जना के बाद वहाँ का नजारा ही बदल गया वो अंधेरा महल खुद का विस्तार करने लगा ,कुछ जेल नजर आने लगीं जिसमें कुछ दो दो फुट के अजीव से प्राणी बंद थे जो चित्कार कर रहे थे ,उधर खैंचूमल गिर पड़ा था और सारा नजारा देखकर भौंचक रह गया ।

खैंचूमल के समझ में कुछ नही आ रहा था और उधर नरमुंडा उसे खोज रहा था ,खैंचूमल खंभों की पीछे दुबका 

तभी खंभा चिल्लाया 

“नरमुंडा स्वामी इधर कोई मानव है”

खैंचूमल ने जमीन पर पड़ी ईंट खंभे में देकर मारी और बोला 

“ससुरे चुगलखोर “

इतने पेडों की टहनियां आकर खैंचूमल को जकड़ने लगी और इतना ऊपर ऊठा दिया जिससे नरमुंडा उसे देख पाये ,लाल रक्त पिपासू आँखे, नुकीले दाँत नरमुंड की माला और छत्तीस सर देखकर खैंचूमल ने धारा प्रवाह कर दिया और डरते हुए बोला 

“हे छत्तीससिरी नरमुंडा महाराज हमें माफ कर दो हमें खुद नही पता हम कैसे आये,हमारी धर्म पत्नी इंतजार कर रही होगी हमारा ,हमें छोड़ दो “

नरमुंडा हंसा और अपने चेलों से खैंचूमल को जेल में डलवा दिया जिसमें वो बौने दो दो फुट के अजीव प्राणी थे खैंचूमल का शरीर भी छोटा होता चला गया ,और उन बोनों ने उसे घेर लिया, खैंचूमल बहुत चीखा चिल्लाया पर किसी ने नही सुनी फिर जेल में सन्नाटा छा गया ,उन बहनों का सरदार खैंचूमल के पास आया और बोला हम सब भी तुम्हारे पास वाले गाँव के लोग हैं ,इस नरमुंडा के तिलिस्म में फँस गये तो यह बना दिया इसने

हमें नही समझ आ रहा कुछ भी “

इधर खैंचूमल परेशान वो सोचने लगा कोई तो रास्ता होगा कुछ तो होगा 

नरमुंडा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गया था ,जमीन के कीड़े कभी बड़े कभी छोटे होकर उनकी जेल की पहरेदारी कर रहे थे ।



 खैंचूमल ने युक्ति निकाली और जेल में पड़े पत्थर बाहर खडे मायावी पहरेदारों पर मारने शुरू कर दिया उसकी देखा देखी सारे कैदियों ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिये अब पहरेदारों की कुछ नही आया समझ वो झुंझला गये और गुस्से में पिंजरा खोल के घुस गये मारने बस फिर क्या था सारे कैदी चढ़ गये उनके ऊपर और पिंजरे में धक्का देकर बंद कर दिये उन सब मायावियों चूंकि पिंजरा तिलिस्मी था उन पहरेदारों को बाहर से खोलना आता था अंदर से नही वह लोग वहीं फँस गये ,खैंचूमल पूरी सेना लेकर महल में भागने लगा तभी उस उल्लू ,चमगादड़ जैसे पक्षी ने सारे लोगों पर चोंच से हमले करने शुरू कर दिये ,पक्षी के शरीर से अनेक पक्षी प्रकट होकर हर बौने को उठाकर ले जाने लगे ,खैंचूमल की दशा आसमान से गिरे खजूर में अटके जैसी हो गयी। उसे कुछ ना सूझा वो बेहोश हो चुका था ,इधर खैंचूमल में कोई हलचल ना होते देख बाकी साथियों ने समझा कोई युक्ति है खैंचूमल की तो वो सब भी मूर्छित होने का ढोंग करने लगे।

 

उस विचित्र पक्षी ने सन्नाटा महसूस किया और देखा कोई हलचल नही है,कहीं सब मर तो नही गये ,जबकि नरमुंडा का आदेश था इक्यावन लोगों की बलि दी जायेगी चार दिन बाद तबतक कोई नही मरना चाहिए। 

यह सोचकर उस विचित्र पक्षी को पसीने आगये तुरंत सारे पक्षियों को इशारा किया और जमीन पर उतर गये सब जामुन की गुठली की तरह लुढ़क कर खैंचूमल के होश में आने का इंतजार करने लगे।

इतने में खैंचूमल के चेहरे पर पानी की बूंदे पड़ी, फिर लोटा भर पानी और किसी औरत के चीखने की आवाज 

“अरे कतई घडिय़ाल हो रखे उठ ही ना रहे जबसे रात को दावत को आये ,और आये भी तीन बजे रात के ऐसी कौन सै तूफान में फँस गये”

आँखे खोली खैंचूमल ने तो कटोरी देवी झाड़ू अस्त्र तैयार करे बैठी थी,खैंचूमल ने सोचा बड़ा भयंकर सपना था ,जैसे तैसे धर्म पत्नी को शांत कराकर खेत पर जाने की तैयारी कर ही रहा था कि पैरों के नीचे उन बौनों का दो फुटिया सरदार खड़ा था।

हीहीहीही 

-अनुज सारस्वत की जादुई कलम से 

(अप्रकाशित, स्वरचित, मौलिक)

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