माँ की सुगन्ध – दीप्ति सिंह

 पिछले वर्ष माँ की ब्रेस्ट कैंसर से मृत्यु होने के उपरांत सरिता का मन रीता हो गया था मन में सिर्फ  माँ की याद बसी रहती। कितनी अच्छी थी माँ? जब भी सरिता जाती माँ खुशियों की पोटली बाँध देती। सावन की तो बात ही निराली थी सासससुर के जोड़े से लेकर दोनों बच्चों और पति के कपड़े ,सिवई, दाल, चावल ,घेवर के डिब्बे, श्रृंगार का सामान न जाने क्या क्या…

वैसे तो दो भाई भी थे लेकिन आज की भागदौड़ और आधुनिकता के दौर में उन्होंने भी यह रीत बिसरा दी थी।

पहले तो सरिता ने सोचा “क्या भाभियों के मायके से सिंजारा नही आया होगा ?जो उन्हें मेरे सिंजारे की याद नही रही ..” फिर अपने विचारों को दूसरी तरफ मोड़ते हुए मन मे बोली “चलो कोई बात नही जब भी मिलते तो प्यार और सम्मान तो देते ही है।… अब पिताजी क्या जाने इन तीज त्योहारों के बारे में…”

अभी पड़ोसन राधिका अपने सिंजारे में से कुछ मिठाई ले कर आई थी। सिंजारे के बारे में बताने लगी तो सरिता चुपचाप सुनती रही अचानक राधिका पूछ बैठी “सरिता! तुम्हारे मायके में सब ठीक ठाक है …”

” हाँ…”

” तुम्हारे पिताजी?”

” हाँ! वो भी ठीक है …छह साल बाद रिटायर हो जायेंगे।”

 राधिका के जाने के बाद सरिता के फोन पर मैसेज आया कि उसके खाते में रुपये आये है फिर फोन आया; सरिता ने देखा पिताजी का फोन था।

 कुशल क्षेम पूछने के बाद सरिता के पिताजी बोले     ” सरिता !मैने कुछ रुपये भेजे है

” क्यों ?

” अरे वो तुम्हारा सिंजारा है अब तुम अपनी समझ से उन रुपयों से सारा सामान वैसे ही खरीदना जैसा तुम्हारी माँ देती थी। कम पड़े तो बता देना मैं और रुपये डलवा दूँगा…”

 ” नही पिताजी यही बहुत है; लेकिन आप को यह सब याद रहा …” सरिता आश्चर्य से बोली।

” सरिता! तुम्हारी माँ अंतिम समय मे सिर्फ मुझसे यही कह कर गयी थी कि मेरी बेटी के तीज त्यौहार कभी न भूलना  …मैं नही चाहती कि मेरे बाद उसे कोई कमी महसूस हो ….फिर मैं कैसे न भेजता? “

फोन रखने के बाद सरिता ने  मोबाइल में सुरक्षित अपनी मां तथा पिताजी की फोटो को देखा और बोली “माँ ! तुम जब जीवित थी तब तो मेरा ख्याल रखती ही थी लेकिन अब परलोक गमन के बाद भी अपनी सुगंध फैला रही हो ; तुम कितनी प्यारी हो माँ और पिता जी आप भी…”

इतना कह कर सरिता ने बैंक की तरफ कदम बढ़ा दिए अपना सिंजारा खरीदने के लिए…

दीप्ति सिंह (स्वरचित)

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