नागेश्वर काका.. – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: स्नेहा का मन दो दिन से बहुत बेचैन लग  रहा था.. रात में भी नींद खुल गई लगा कोई बहुत याद कर रहा है बुला रहा है..

ऑफिस के दौरे पर संजय अपने साथ स्नेहा को भी हैदराबाद लेते आए थे..

  थोड़ा आउटिंग हो जाएगी..

और सुबह मनहूस खबर आ गई की  नागेश्वर काका नही रहे… स्नेहा फोन पर हीं जोर जोर से रोने लगी.. संजय कांफ्रेंस में चले गए थे… गेस्ट हाउस में अकेली स्नेहा जी भर के रोयी… नागेश्वर काका एक ऐसे इंसान जिनका रिश्तों के प्रति #समर्पण #परवाह एक मिशाल बन गया था मेरे लिए..

शादी कर के ससुराल आई तो नागेश्वर काका को बाबूजी (ससुर जी) के साथ हमेशा देखती.. दोनो नौकरी से रिटायर हो चुके थे.. नागेश्वर काका बाबूजी के बचपन के दोस्त थे.. नौकरी और विभाग अलग होने के बाद भी जमीन एक जगह लिए थे की साथ रहेंगे मकान बनाकर.. छः फिट लंबे गोरे बेहद सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक थे नागेश्वर काका..

कुछ दिनों बाद नोटिस किया जब भी चाय नाश्ता देने जाती या मेरी नजर नागेश्वर काका पर पड़ती एक टक मुझे देखते पाती.. बहुत बुरा लगता..

एक दिन घर के सभी लोग एक गृहप्रवेश में गए थे मेरी तबियत ठीक नहीं थी इसलिए नहीं जा पाई.. जाते जाते नागेश्वर काका की ड्यूटी लगा गए.. मेरा ख्याल रखने के लिए.. मैं भी उनकी हरकत से भरी बैठी थी..

नागेश्वर काका आए मुझे आवाज दिया बिट्टू ये नया नाम सुन बाहर आई और थोड़ा बेरुखी से पूछा किसे बुला रहे हैं? उन्होंने कहा तुझे.. पास जा कर पूछा बोलिए.. नागेश्वर काका सामने रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया.. आंखे भरी हुई थी.. मुझसे पूछा मेरी बातों को सुनने के लिए थोड़ा वक्त दोगी.. मैने सहमति में सिर हिला दिया..

उन्होंने कहना शुरू किया ..

राजस्व विभाग के एक बहुत बड़े साहब के बंगले पर मेरी नियुक्ति थी.. सुरक्षा कर्मी के रूप में.. घरेलू काम भी कर देता था.. साहब की पत्नी बहुत खूबसूरत थी.. शादी के दस साल हो चुके थे पर संतान सुख से वंचित थी.. पूजा पाठ ज्योतिष डॉक्टर सब जगह किस्मत आजमा चुकी थी… साहब और मेमसाहेब में बेइंतहा मोहब्बत था..

एक दिन मैं मेमसाहब के साथ मंदिर गया था ड्राइवर की जगह पर मेमसाब मुझे ले गई.. पूजा के बाद एक पेड़ के नीचे बैठकर मेरे सामने दोनो हाथ जोड़कर रोते हुए कहने लगी  मेरी सहायता कीजिए.. मैं अवाक ! बोलिए मुझसे जो बन पड़ेगा करूंगा…मेम साहब कहने लगी साहेब की रिपोर्ट में डॉक्टर ने आठ साल पहले हीं लिख कर दे दिया था कि ये कभी पिता नही बन सकते.. एक नही चार चार डॉक्टर की रिपोर्ट में यही आया.. मैने सारे रिपोर्ट जला दिए.. क्योंकि मैं इनको टूटने देना नही चाहती थी.. इन्हे बच्चों से बहुत लगाव है.. इनके एक दोस्त ने दिल्ली बुलाया है चेकअप के लिए वहां इन्हे सबकुछ पता चल जायेगा और ये जीते जी मर जायेंगे जो मैं देख नही पाऊंगी… आप मुझे मां बनने में मदद कीजिए.. ये पाप नही होगा किसी की जिंदगी बचाने के लिए किया गया मेरा ये# समर्पण #गुनाह  नही है..और बहुत सोचने के बाद मैने उनकी बात मान ली..

मेम साहब को बेटी हुई… और मेरा ट्रांसफर हो गया.. मैने उसका चेहरा भी नही देखा.…

मेम साहब ने मन्नत मांगी थी उसी मंदिर में जो बच्चा होगा उसके इक्कीसवें साल में इसी मंदिर में लेकर आऊंगी और उसका सालगिरह यहीं मनाऊंगी…

मेरी पत्नी देखने में मेरे विपरीत थी.. दो बच्चे जनमते हीं मर गए.. एक बेटी  है… पहले पत्नी से मैं उसके रूप रंग के कारण दूर दूर हीं रहता था पैसे भेजकर कर्तव्य पूरा कर देता था.. पर इस घटना के बाद अपराधबोध के कारण मैं पत्नी और बेटी की जी जान से परवाह करने लगा.. दोनो निहाल हो उठे… पत्नी दो साल बिछावन पर रही मैने जी जान से उसकी सेवा की.. लकवाग्रस्त पत्नी का बालों में तेल लगाकर कंघी कर देता .. अपने हाथों से  खाना खिलाता , खूब सारी बातें करता .. मैं तन मन और धन से अपनी बेटी और पत्नी के लिए समर्पित था..ये मेरा अपराधबोध था जो मुझे #समर्पण # के राह पर ले आया था…अंत समय में उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा अगले जन्म में भी आप हीं मेरे पति बने…

बेटी की शादी भी हो चुकी है.. अपने घर परिवार में सुखी संपन्न है..

मैं ठीक इक्कीसवीं साल उस मंदिर में छुप के गया शायद अपनी बेटी की एक झलक देख सकूं..

जी भर के देखा दूर से हीं आशीर्वाद दिया.. उसको बिट्टू के नाम से सब बुला रहे थे..उसका चेहरा और तुम्हारा चेहरा हंसी इतना मिलता जुलता है कि मैं आश्चर्य चकित रह गया… तुम्हे मै बिट्टू के नाम से कभी कभी बुलाऊंगा.. और रोने लगे नागेश्वर काका… मेरा मन भी भारी हो गया..

उस दिन से एक गहरा रिश्ता जुड़ गया उनके साथ.. ससुराल में किसी की बातों से या व्यवहार से दुःखी होती तो उनका वात्सल्य और स्नेह से भरे शब्द बहुत सकूं और संबल प्रदान करता… पति से कुछ अनबन होता तो  चेहरा देखते समझ जाते  .. बहुत प्यार से मुझे समझाते , पति की भी  खबर लेते ..दोनों बेटों का नाम उन्होंने ने हीं कौस्तुभ और कार्तिकेय रखा.. बच्चों की परवरिश में अमूल्य योगदान दिया.. विष्णुसहस्त्र नाम का जाप करते प्रतिदिन   दोनो बच्चे गोद में या कंधे पर लटके रहते .. घंटों बच्चों के साथ खेलते और कहते बिट्टू थोड़ा आराम कर ले.. कितना थक जाती है.. मेरे पसंद की खाने की चीजें अक्सर ले कर आते.. बिट्टू जल्दी से खा ले ठंडा हो जायेगा… रिश्तों की गहराई को दिल से कैसे निभाया जाता है  नागेश्वर काका इसके उदाहरण थे.. बीमार  पड़ने पर परेशान हो जाते .. माथे पर स्नेहभरा हाथ रखते तो लगता जैसे जनक का हीं स्पर्श है… रिश्तों के प्रति ऐसा #समर्पण # मिशाल बन गया था मेरे लिए..

अंतिम समय में उनका आशीर्वाद भी नही ले सकी ना अंतिम दर्शन कर पाई..

जिंदगी में कभी भी इस क्षति की भरपाई  भला हो पाएगी.. स्नेहा सुबक पड़ी आप हमारे दिल में जीवन में  इस तरह से रच बस गए हैं बहुत मुश्किल होगा आपके बिना जीना नागेश्वर काका… शत शत नमन पुण्यात्मा को!!

जो हर रिश्ते में खुद को समर्पित कर उसका मान बढ़ाया..

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

        #समर्पण #

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

         Veena singh

 

 

 

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