मुसीबत – प्राज्ञी खुराना : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : हिमाचल प्रदेश के एक छोटा सा शहर सोलन उसकी हसीन वादियों में एक प्यारा सा परिवार रहता था अशोक जी उनकी धर्मपत्नी अंजू जी और उनके दो  प्यारे-प्यारे बच्चे मानव एवं मानसी। बहुत अच्छे से समय व्यतीत हो रहा था अशोक जी सरकारी विभाग में कार्यरत थे और अंजू जी एक ग्रहणी थी और उनके बच्चे  मानसी  बड़ी थी और मानव छोटा था मानसी कक्षा 12वीं में पढ़ रही थी और मानव उस समय 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था।

फ़रवरी का महिना था इतवार का दिन था ठंड अभी भी अपने शबाब पर थी ।अशोक  जी ने बोला ,”चलो आज बाहर धूप में नाश्ता किया जाए और छुट्टी का मजा लिया जाए “अंजू जी आलू पूरी की सब्जी बनाने की तैयारी में लग गई और अशोक जी चाय का कप और गद्दा लेकर धूप में चले गए ।मानव  और मानसी अपनी पढ़ाई में व्यस्त थे क्योंकि मानसी के बोर्ड थे और मानव के  भी 11वीं के फाइनल परीक्षा आने वाली थी। 

अचानक से मानव के एक दोस्त वैभव की आवाज आई ,” देख मानव ! तेरे पापा को क्या हो रहा है जल्दी आ दौड़ कर ” मानव मानसी अंजू जी सब घबरा के भागे अशोक जी बेहोश ज गड्ढे में पड़े हुए थे उनको  वहां पर गिरे पड़े   देखकर वह घबरा गया  मानव व उसका मित्र वैभव  दोनों दोनों ने अशोक जी को इस गद्दे में उठाया और भागते हुए सीढ़ियां उतरते हुए वह नीचे अस्पताल में पहुंचे उसे इतवार का दिन था कोई सवारी भी उनको नहीं मिल रही थी

वैसे ही दौड़ते भागते उनको लेकर अस्पताल पहुंचे अस्पताल में डॉक्टर ने देखा तो मानव के लिए एक हृदय विधायक क्षण था जब डॉक्टर बोला ,” यह अब यह इस दुनिया में नहीं रहे उनकी सांसे थम गई है” वह नन्हा सा बालक उस समय बिल्कुल निर्जीव सा खड़ा था ।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हो गया अचानक से उसके पापा ऐसे कैसे जा सकते हैं नहीं नहीं उसे विश्वास नहीं हुआ उसने डॉक्टर को बोला ,”नहीं डॉक्टर साहब प्लीज़! प्लीज़! प्लीज़ !प्लीज़!  आप दोबारा चेक करो ना मेरे पापा तो अभी अच्छे थे उनको तो कुछ भी नहीं था वह तो नाश्ता बनवा रहे थे चाय पी थी ऐसे कैसे हो सकता है आप आपसे कुछ जरूर कोई गलती हो रही है

डॉक्टर साहब प्लीज प्लीज प्लीज आप कुछ करो ना डॉक्टर साहब ” बोलते बोलते उसका गला रुंध गयाऔर वह  रोने लगा डॉक्टर ने उसको शांत किया तब उसने एक गहरी सांस ली और अपने दादाजी को उसने फोन मिलाया वह नन्हा सा बच्चा उसे समय इतना समझदार हो गया था उसने अपने दादाजी को बोला ,” बड़े पापा!  पापा की तबीयत बहुत खराब है आप लोग जल्दी से आ जाओ! इतना बोलते ही उसने फोन रख दिया। तब उसके  चाचा उसकी बुआ सब जो है

उनके सबके मन में  इक अजीब सी बेचैनी हो रही थी सब के सब जो है सोलन की तरफ चल पड़े जब वहां जाकर पहुंचे सबके आंख में आंसू थे उसने अपनी मम्मी और बहन को भी यही बोला था कि पापा की तबीयत खराब है डॉक्टर सभी इलाज कर रहे हैं जबअपने चाचा को देखा उसने तो उनके गले लगा के जोर जोर से रोने लगा पाल चाचा की आंखो में भी आंसू थे वह भी अपने आप को संभाल नहीं पाए चाचा राजेंद्र ने बड़ी हिम्मत करी और डॉक्टर से बात करी डॉक्टर ने कहा ,

” जब अस्पताल आए तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी इसलिए इनका पोस्टमार्टम करना पड़ेगा” अब क्या कर सकते थे उनका पोस्टमार्टम हुआ पोस्टमार्टम में कुछ भी नहीं निकला बस इतना आया कि दिल का दौरा था और सिर्फ उनके पेट में एक कप चाय मिली जो कि उन्होंने सुबह पी थी अब तैयारी हुई  कि उनको अपने पैतृक गांव लेकर आया जाए वहां से ट्रक में उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव  लाया गया जब उनके पिता श्री विद्यासागर जी ने अपने पुत्र अशोक का  पार्थिव शरीर देखा तो वह तो बिल्कुल निढाल हो गए नियति कि कैसी विडम्बना थी

कि जिस पुत्र को उन्होंने अपने गोद में खिलाया बड़ा किया आज वह उनके सामने निर्जीव सा पड़ा था यह नियति ने कैसा कालचक्र रचा था उनके कुछ समझ में नहीं आया आज पूरा गांव के लोग सब की आंखो मे अश्रुओ से भरे हुए थे क्योंकि अशोक जी का स्वभाव भी है सरल वह  मिलनसार था वे बडे हंसमुख स्वभाव के थे  एक ही मुलाकात में सबको अपना बना लेते थे किसी के मुंह से शब्द नहीं निकल रहा था सब की आंख में आंसू थे सब ने उन्हें अश्रुपूर्ण  विदाई थी

अब मानव के लिए यह एक भारी मुसीबत का समय था।जब तक उसके पापा थे उसको किसी बात की कोई चिंता नहीं थी अब जदो जहद शुरू हुई कि कैसे-कैसे क्या किया जाए तब चाचा राजेंद्र ने बहुत दौड़ भाग करके अपने भाई अशोक जी की जगह मानव को सरकारी नौकरी में लगवाने के लिए हाथ पैर मारने शुरू किया मुसीबत अब यह थी कि मानव अभी सिर्फ 1२वीं में पढ़ रहा था  11वीं की परीक्षा  अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करी और उधर सरकारी नौकरी के लिए कोशिश चल रही थी

इस मुसीबत के समय में इस नौकरी ने दवा की तरह काम किया मानव को अपने पिता की जगह सरकारी नौकरी में जगह मिल गई बस इतना रहा कि उसको अपने पिता का पद नहीं मिला क्योंकि वह भी ग्रेजुएट भी नहीं हुआ था अब यहां से मानव का नया सफर शुरू हुआ एक तरफ उसकी 12वीं की परीक्षाएं थी तो दूसरी तरफ नौकरी मां और बहन का भी ख्याल रखना सारा परिवार उनके दादाजी के पास आकर रहने लगा था दादाजी ने कहा था

अब मैं वहां तुम दोनों को तुम लोगों को अकेले नहीं रहने दूंगा तुम सब हमारे पास रहो लेकिन अशोक जी की मां इस सदमे को सहन नहीं कर पा रही थी वह इन सब चीजों का के लिए अंजू जी को ही जिम्मेवार समझ रही थी और उनको बात-बात में ताने देती थी मानव जो कि एक समय एक नासमझ प्यारा सा शरारती बच्चा था उसको नियति ने एक समझदार और गंभीर इंसान में तब्दील कर दिया उसने ओपन बोर्ड से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया

सुबह से शाम नौकरी उसके बाद पढ़ाई मां और बहन का भी ध्यान रखना दूसरी तरफ मानसी ने भी ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया था ग्रेजुएशन के साथ-साथ उसने सिलाई का काम भी सीखना शुरू कर दिया इस तरह से अशोक जी का पूरा परिवार अपनी मुसीबत से अपने-अपने हिसाब से लड़ने की कोशिश कर रहा था

मानव  अपनी ग्रेजुएशन के साथ-साथ डिपार्टमेंटल एग्जाम की भी तैयारी में लग गया क्योंकि उसको अब अपने आप को साबित करना था धीरे-धीरे धीरे-धीरे समय बीत रहा था मानव की ग्रेजुएशन पूरी हुई और वह खुशी का पल भी आया जब मानव ने अपना डिपार्टमेंटल एग्जाम भी क्लियर कर लिया और उसका प्रमोशन सेक्शन ऑफिसर के पद पर हो गया पूरा परिवार खुशियां मना रहा था सब बहुत खुश थे धीरे-धीरे उनकी गाड़ी पटरी पर आने लगी

अब मानसी की शादी की सबको चिंता होने लगी अशोक जी के एक मित्र थे सोलन में राघव जी सब की खुशी का ठिकाना तब नहीं रहा जब उन्होंने अपने सुपुत्र राकेश के लिए मानसी का हाथ मांग लिया सब अच्छे से हो रहा था और क्योंकि उन्होंने शादी का खर्चा भी आधा बांट लिया था और परिवार को क्या चाहिए था सब के सहयोग से मानसी का विवाह अच्छे से संपन्न हो गया अब मानव की विवाह की भी सबको चिंता होने लगी की मानव का विवाह भी अब हो जाना चाहिए ताकि घर में बहु आए और अंजू जी को संभाल ले मानसी की एक सहेली आरती  जो घर में आती जाती रहती थी

आरती मानव को बहुत पसंद थी  परिवार वालों ने भी इस विवाह को रजा मंदी दे दी दोनों का विवाह हो गया उधर मानव का ट्रांसफर चंडीगढ़ हो गया अंजू जी भी खुशी-खुशी मानव और आरती के साथ चंडीगढ़ शिफ्ट हो मानव के लिए अभी ऐसा लग रहा था परीक्षा की घड़ी और बाकी थी अंजू जी और आरती में आपस में निभ नहीं रही थी आरती अंजू जी की बेज्जती कर देती थी अंजू जी ने पहले तो सहने की कोशिश करें

लेकिन जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उन्होंने मानव से बात करी और प्यार से समझाने की कोशिश भी करें आरती के मायके वाले भी आए आरती की माता राजनीति में दबदबा था तो इस कारण से मानव को थोड़ा झुकना पड़ा अंजू जी अपनी बेटी के पास रहने लगे ताकि मानव और आरती अपना जीवन सुख से बिता सके। लेकिन मानव अब आरती से कुछ कटा कटा सा रहने लगा था आरती को भी इस चीज का एहसास हो रहा था

धीरे-धीरे उसको अपनी गलती का एहसास होने लगा कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है पहले तो उसने मानव से माफी मांगी और फिर दोनों जाकर अंजू जी को वापस चंडीगढ़ अपने घर ले आए आरती ने बोला,” मां मुझे माफ कर दो मैं आपको ठीक से समझ ही नहीं पाई

“अंजू जी ने भी आगे बढ़कर आरती को गले से लगा लिया तभी आरती को अचानक से उल्टी शुरू हो गई और वह बेहोश हो गई जब डॉक्टर को बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि घर में एक नन्हा मेहमान आने वाला है इस तरह से पूरा परिवार अपनी मुसीबत से निकलता हुआ खुशी-खुशी रहने लगा और उनके घर में एक नन्ही परी आई जिसने उनके जीवन आंगन को खुशियों से भर दिया। 

प्राज्ञी खुराना

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