मॉर्डन होना कपड़ों से नहीं विचारों से होता हैं… – संगीता त्रिपाठी

ऑफिस जाते समय राघव ने रीना से कहा -अगले हफ्ते  गोवा में मेरा चार दिन का सेमीनार हैं ,दो दिन वीकेंड के मिल जायेंगे तो पूरा हफ्ता गोवा में मस्ती ,तुम लोग चलने की तैयारी कर लो। हुर्रे.. तनु और मयंक दोनों उछल पड़े पापा आप ग्रेट हो…।रीना मुस्कुरा कर बोली -ये दल बदलू बच्चे हैं जब कुछ अच्छा खाना हो या शॉपिंग करना हो तो मम्मी ग्रेट हो जाती और घूमना हो तो पापा।सब खिलखिला कर हँस पड़े।

“पर मम्मा गोवा जाने के लिये कुछ शॉपिंग करना तो बनता हैं। कुछ ड्रेस और गॉगल्स ले लेते हैं “तनु बोली।

बड़ी होती बेटी का मन रखने के लिये रीना मान गई। मैं जल्दी काम खत्म करती हूँ फिर मॉल चल कर ख़रीदारी कर लेते हैं। पैकिंग भी तो करनी हैं।

मयंक को शॉपिंग में रूचि नहीं थी। वो अपने दोस्त के घर चला गया। राघव और रीना के दो बच्चे, पंद्रह वर्षीय तनु और तीन साल छोटा,बारह वर्ष का मयंक। पति राघव एक कंपनी में उच्च पद पर थे। रीना के सास -ससुर दूसरे शहर में रहते थे। हर छुट्टी पर सब दादा जी के घर जाते थे। गर्मी में नानी के यहाँ। इस बार दिसंबर में बच्चों का स्कूल दस दिन के लिये बंद था।

काम खत्म कर रीना तनु को लेकर मॉल गई। कपड़ों की शॉप पर कई तरह के मॉर्डन कपड़े देख तनु ने कुछ कपड़े ट्रायल के लिये लिया। ट्रायल रूम में  अपनी ड्रेस पहन कर बाहर आ रीना को दिखा उसकी राय लेती।

तभी उसे अपनी क्लास की फ्रेंड रुमा दिख गई। दोनों एक दूसरे से मिल कर खुश हुये। तनु ने देखा रुमा की मम्मी वेस्टर्न ड्रेस जीन्स और टॉप में बहुत स्मार्ट लग रही थी। कटे बाल और होठों पर सुर्ख लाल लिपस्टिक उन्हें और आकर्षक दिखा रही थी।

तनु ने रीना को देखा ढीली चोटी और साड़ी में उसे आज अपनी मम्मी कहीं कमतर लगी।रुमा की मम्मी बेहद मॉर्डन और रीना उसे कुछ पिछड़ी लग रही थी। तनु का मन बुझ गया। रुमा की मम्मी उसके लिये एक से बढ़ कर एक ड्रेस ट्रायल करवा रही थी जबकि रीना जो तनु ला रही थी उसी पर अपनी राय दे रही थी।



काश मेरी मम्मी भी मॉर्डन होती तो उसको ड्रेस पसंद करवाने में सहायता करती। तनु ने थोड़ा दुख से सोचा। रीना के पास आ तनु ने धीमे स्वर में कहा -मम्मी आप हमेशा साड़ी ही क्यों पहनती हो, आप रुमा की मम्मी की तरह मॉर्डन कपड़े क्यों नहीं पहनती।

तनु की पसंद के कपड़े समेट काउंटर पर पेमेंट करने के लिये जाते, रीना बोली तुम्हारी बात का जवाब मै घर पहुँच कर दूंगी। काउंटर पर रुमा की मम्मी ने तनु के कपड़े देख मुँह बना कर कहा तनु तुम गोवा जा रही तो थोड़ा स्टाइलिश कपड़े लेती तभी तो मॉर्डन दिखती,

कह रुमा के कपड़े दिखा बोली रुमा तो गोवा नहीं जा रही पर मै हमेशा उसके लिये लेटेस्ट स्टाइलिश कपड़े खरीदती हूँ। रुमा ने उदास नजरों से तनु को देखा। तनु को समझ में नहीं आया रुमा उदास क्यों हैं।

 पेमेंट कर  तनु रीना के साथ घर आ गई। अपनी चाय बना और तनु को दूध का गिलास पकड़ा बोली -अब मै तुम्हारी बात का जवाब देती हूँ। मै साड़ी इसलिये पहनती हूँ क्योंकि ये पापा को पसंद हैं, मुझे भी डिजाइनर साड़ी पहनना पसंद हैं।

दूसरी बात ऐसा नहीं हैं कि मै मॉर्डन कपड़े नहीं पहनती, पहनती हूँ, पर वही जो मेरे व्यक्तित्व पर सूट करता हैं।मॉर्डन शब्द की परिभाषा जिनको समझ में नहीं आती उन्हे वेस्टर्न कपड़े ही मॉर्डन लगते हैं “जबकि मॉर्डन ड्रेस वो होती हैं जिसे पहन आप  सहज हो, आप पर  फब रहा हो। आपका व्यक्तित्व  उभर रहा हो। आपकी सोच खुली हो, तभी आपका व्यक्तित्व मॉर्डन होगा।



मॉर्डन कपड़े पहनने से कोई मॉर्डन नहीं होता तनु, व्यक्तित्व को मॉर्डन बनाना हैं ना की कपड़ों को। जो भी पहनो पूरे आत्मविश्वास से पहनो।

वो पहनो जो तुम पे सूट कर रहा हो। वो नहीं जो तुम भेड़ -चाल में पहन लेते हो। रही बात तुझे पसंद करने में सहायता करने की, तो बेटा मै चाहती हूँ तू खुद निर्णय ले। आज के ये छोटे निर्णय ही तो तुझे बड़े निर्णय लेने में सहयता करेंगे।

तभी मोबाइल पर रुमा का फोन आया, तनु बात कर के आई तो थोड़ा खुश थी। सॉरी मम्मा, मैंने आपका मन दुखाया..।जानती हो मम्मा रुमा कह रही थी तुम्हारी मम्मा साड़ी में कितनी ग्रेसफुल लग रही थी, कितने अच्छे से उन्हेंने कैरी कर रखा था।

आंटी के बाल कितने सुन्दर हैं, तभी तुम्हारे बाल भी सुन्दर हैं। मैंने बोला -वो तो ठीक हैं, पर तेरी मम्मी भी तो कितनी स्मार्ट  हैं। तुझे ड्रेस पसंद करने में कितनी हेल्प कर रही थी।

 

जानती हो मम्मा रुमा ने क्या कहा, रीना की प्रश्नवाचक दृष्टि देख बोली, o रुमा कह रही थी -तू तो लकी हैं, तेरी मम्मा ने तुझे वही ड्रेस दिलवाये जो तूने पसंद  की थी, मेरी मम्मा तो सब कुछ मेरी पसंद का नहीं अपनी पसंद का लेती हैं। मै, पापा और मेरा भाई, सबको मम्मा अपनी पसंद के कपड़े खरीदती हैं किसी को भी अपनी पसंद का नहीं लेने देती हैं।

कहती हैं, तुम लोगों की चाइस गँवार वाली हैं। और तो और उनको साड़ी  पहननी भी नहीं आती। इसलिये नहीं पहनती, मै तो बड़ी होकर खूब सुन्दर -सुन्दर साड़ी पहना करुँगी, तेरी मम्मी की तरह..।

अब बताओ मम्मी,उसकी मम्मी से अच्छी तो आप हो ना, बेटी की बात सुन रीना हँस पड़ी। बड़े होते बच्चों की अपनी सोच और समीक्षा होती हैं, उनके अपने तर्क और जिज्ञासा होती हैं। तनु को वो मॉर्डन होने की परिभाषा समझा पाई, इसका उसे संतोष हुआ।

किस बात पर मंद -मंद मुस्कुराया जा रहा, कहते हुये राघब अपना बैग रख हाथ -मुँह धोने चले गये. रीना रसोई में आ गई।

एक हफ्ते बाद सब हँसी खुशी गोवा रवाना हो गये। तनु हैरान रह गई जब रीना को कैपरीज और लंबे टॉप में देखा, बालों को समेट कर बना जुडा, रीना को एक अलग अंदाज दे रहा था। तनु अपनी मम्मी को देख मुग्ध हो गई। मेरी मम्मा सबसे बेस्ट….।

दोस्तों आप क्या सोचते हो…., मॉर्डन होना क्या पहनावे पर निर्भर करता या मानसिक विकास पर। क्या साड़ी पहनने वाली स्त्री मॉर्डन नहीं होती। अपनी राय जरूर दें।

 

-संगीता त्रिपाठी

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