बुढ़ापे से बड़ी बीमारी नहीं। – स्मिता सिंह चौहान

“तू कुछ कहता क्यों नहीं?बहुत दिन हो गये अब तो,इतने दिन कौन रहता है?अपनी बेटी के ससुराल में।हमारे गले में तो लड़की के घर का पानी भी नही जाता,समधन जी तो ऐसे बैठी है जैसे अब जायेंगी नहीं।”वीना जी ने अपने बेटे सुशील से बोली।

“कैसी बात करती हो मां?अब उनकी तबियत नहीं ठीक है तो वो क्या करें?निशि (पत्नी)के पापा हैं नही।भाई होता वो करता लेकिन वो कनाडा मे जाॅब करता है ,अब ऐसे हालात में अकेला तो नही छोड़ सकते ना।ठीक है ना जैसी आप वैसी वो हैं मेरे लिये।”सुशील ने तार्किक तौर पर अपनी बात रखी।

“अब 2 महीने से यही है ,खर्चा पानी तो देता होगा बहु का भाई या वो भी धर्म खाते में जा रहा है।”कहते हुये अपनी राम नाम की माला घुमाने लगीं।

“मम्मी जी को भेजता तो है,वो अपना खर्चा खुद ही कर रही हैं ,हां दवा पानी का मैं नहीं लेता उनसे।मैं भी तो उनका बेटा हूं जैसे निशी आपकी।”सुशील अखबार पढते हुये बोला,तभी निशी नाश्ते की प्लेट उठाकर जा ही रही थी,तभी वीना जी बोल पड़ीं “निशी,समधन जी सुबह कह रही थीं कि उन्हें अपने घर की बहुत याद आती है।बेटा देखो अपना घर अपना ही होता है,मेरी मानो पूछ लो एक बार सुशील टिकट करा देगा।”

“हां वो तो रोज ही कहती हैं कि घर की याद आ रही है,लेकिन मैं चाहती हूं अभी अभी सर्जरी से ऊबरी हैं ,कमजोरी बहुत है उन्हें, थोड़े दिन बाद चली जायेंगी।वहां तो कोई भी नहीं जो उनकी देखभाल कर दे।”निशी ने सहजता से अपनी मां की स्थिति से अवगत कराते हुये कहा।



“अब तो काफी सुधार है ,क्या है ना।अपने घर में थोड़ा ही सही काम करती रहेंगी तो जल्दी एक्टिव हो जायेंगी।”वीना जी गोल मोल बात करके अपनी मन की बात का इशारा देती हैं।

निशी भी उनकी बात का आशय समझते हुये सुशील की तरफ देखती है।सुशील निशी की बेबसी को उसकी आंखों से महसूस करते हुये बोल पड़ता है “सही है मां ,बड़े पते की बात कही है,आप भी जब पापा के साथ गांव में रहती हो कितनी एक्टिव रहती हो,और यहां लाइट का स्विच ऑफ करने के लिये निशी चाहिये।”

“बताओ जब अपने ही बेटे को मां का बैठना खल रहा हो तो किसी से क्या शिकायत?बुढापे से बड़ी बीमारी नहीं है, तुम भी यहीं से गुजरोगे।गांव में तो मजबूरी हो जाती है ,वरना बुढापे में दो रोटी बैठकर मिल जाये ये तो सभी चाहते हैं।”वीना जी सुशील की तरफ देखकर बोलीं।

“माफ करना मां ,मेरा आपका दिल दुखाने का कोई इरादा नही था ,लेकिन आपको अपनी बात से ही आपका जवाब मिल गया।सोचो बुढापा,बीमारी,ये तो सबका ही एक जैसा है ना।अब ऐसे में औलाद से ही उम्मीदे रखते हैं ,मैं तो कुछ भी नहीं करता आपका सब निशी करती है तो ऐसे मै अगर मम्मी जी की सेवा कर रही है तो गलत क्या है? वो भी तो उनकी बेटी है ,ये घर भी तो निशी का है ना अगर मेरे मां बाप साथ रह सकते हैं तो उसके क्यो नहीं? इस विषय पर इतना भेदभाव नहीं होना चाहिये ना।” सुशील नेअपनी मां को समझाते हुये कहा।

वीनाजी ने सुशील की बात सुनकर खामोशी का आवरण पहन लिया ,वो सुशील की बात समझ पायी या नहीं इसका अनुमान तो मुश्किल था।हां निशी को सुशील की सोच पर गर्व महसूस कर रही थी कि उसे एक ऐसा जीवनसाथी मिला जो समाज की उन पर्यायों से अलग सोच रखता है जहां एक लड़के और लड़की के मां बाप का बुढापा भी अलग अलग होता है।

आपकी दोस्त

 

स्मिता सिंह चौहान

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