सरिता जी मायके आईं थीं। वैसे मायके के नाम पर बड़े भइया का परिवार था, छोटे भाई भाभी ने तो कभी रिश्ता निभाया ही नहीं था। बड़ी भाभी बड़े सरल स्वभाव की थीं, कभी भी मां – बाप की कमी नहीं खलने दिया था उन्होंने। परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखने की पूरी कोशिश करती थीं यहां तक की छोटे भाई के परिवार की दस गलतियां माफ कर के तीज त्यौहार पर आमंत्रित किया करतीं थीं।
उनको दो बेटे थे जिनकी शादी हो चुकी थी।बहूं भी समझदार थीं। घर छोटा था और वो कई बार कहतीं कि आसपास ही कोई घर लेकर बेटे बहू वहीं रहें क्योंकि सोने – उठने बैठने की परेशानी दिखाई देती थी,पर मजाल है की घर छोड़कर कोई जाने को राजी हो। मेरी तो आंखें चकाचौंध हो गई थी। मेरे घर में इसका उल्टा था घर बहुत बड़ा था इसके बावजूद सबको परेशानी थी साथ – साथ रहने में।
बहुत कोशिशों के बाद भी बेटे – बहू को रोक नहीं पाई थी मैं।बेटे का कहना था कि मां!” हम लोग अपनी जिंदगी कब जीएंगे? हम अपने तरीके से उठना – बैठना चाहते हैं।सुबह जल्दी उठो, कोई पार्टी नहीं करो…कितनी बंदिशें हैं यहां। हमारे दोस्त यार खुलकर रह नहीं पाते इस घर में। आखिर सोसायटी से भी तो बना कर रखना होता है। प्रीति के पहनावे पर कितना रोक – टोक करती हैं आप।”
तभी भाभी की बड़ी बहू चाय लेकर आई और बोली ” बुआ जी चाय पी कर नहा धो लीजिए मैंने पूजा की तैयारी कर दी है। मां ने कहा था की आप पूजा पाठ बहुत अच्छे से करती हैं।” मैं तो जैसे तरस सी गई थी इन सब बातों के लिए।
चाय पी कर नहा धोकर मंदिर में आई तो देखा कि भाभी ने कितना अच्छा संस्कार दिया था बहूओं को सचमुच में बड़े सलीके से सब कुछ था।दिन के खाने के समय देखा तो दोनों बहूएं आपसी समझ से कैसे काम कर रही हैं।
बड़ी भाभी को तो कुछ देखने की जरूरत ही नहीं थी। खाना खा कर जब आराम करने गई तो भाभी भी साथ में आकर लेट गई। मुझे बहुत ही जिज्ञासा थी कि आखिर भाभी ने किस तरह इस परिवार को बांध कर रखा है।
भाभी!” एक बात पूछूं?
हां!” दीदी…अब आपको ऐसी भूमिका बनाने की क्या जरूरत पड़ गई है।आप तो मुझसे अपने दिल की कोई भी बात करने में कभी भी संकोच नहीं करतीं थीं” बड़ी भाभी ने कहा। “भाभी आपके परिवार को देखकर दिल खुश हो जाता है।।कितने अच्छे संस्कारों वाली बहूएं मिलीं हैं आपको। सभी यही चाहते हैं कि उनका आंगन हमेशा हंसी – खुशी की गूंज से यूं ही भरा रहे।
आखिर क्या वजह है जो दोनों बहूएं लडती नहीं और आपके इतना कहने पर भी, जबकि घर छोटा है लेकिन कोई जाने को तैयार नहीं है?”
दीदी!” सचमुच में मैं खुशनसीब हूं क्योंकि ” मेरी दोनों बहूएं आपस में बहन जैसी रहती हैं ” लेकिन दीदी इसके लिए पहले हमें समझना होगा कि जिस लड़की को हम बहू बनाकर लातें हैं उसे उसके घर में क्या खुलकर रहने का हक देते हैं? एक लड़की जब अपना मायका छोड़ कर हमारी दुनिया में कदम रखती है तो क्या हम उसका सचमुच में खुले दिल से स्वागत करते हैं?
वो इन्हीं रिश्तों में अपनों को तलाशती है क्या हम सचमुच में अपने बन पाते हैं।बेटी बोल कर जिसे लाते हैं क्या उन्हें बेटी का दर्जा दे पाते हैं कभी। हमें हमारी बेटी के दस नखरे मंजूर हैं पर बहू तो परफेक्ट ही चाहिए” ये सारी बातें समझनी बहुत जरूरी है एक अच्छे परिवार के लिए।
“आपने दोनों बहूओं के संस्कार देखें ये सच है क्योंकि हर मां अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देती ही है, लेकिन जब वो बहू बनकर आती है तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि उसकी खुशियों का ख्याल रखें। उन्हें अपने घर में घर जैसा लगे,इसका ख्याल रखें क्योंकि जब हम मां से सास की भूमिका के प्रवेश कर जाते हैं तभी से समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।
कितनी बार सास ही नहीं चाहती की दोनों बहू मिल जुलकर रहें।” सरिता जी के सामने अपनी गलतियों का पिटारा भी खुलने लगा था उन्हें समझ में आने लगा था कि वो कितना रोक – टोक करती हैं और सचमुच में सास ही बन कर रह गई थी वो भी।
भाभी की बातों ने उन्हें फिर से झकझोरा ” दीदी क्या लेंगी आप शाम की चाय के साथ?
अरे!” कुछ भी नहीं भाभी? आप कहां जा रहीं हैं?
दीदी दोनों बहुओं का बच्चों के साथ आराम करने का वक्त है और मैंने कहा है कि रात के खाने से पहले तुम्हारा अपना समय है…जो करना चाहो करो.. आखिर उनको भी तो मन करता होगा घूमने – टहलने या सोने का। मैं चाय बना कर सबके कमरे में दे देती हूं और एक भी बहू बाहर जाती है तो दूसरी उसकी जिम्मेदारी बड़ी सूझ बूझ से निभाती है।
छोटी बहू का बच्चा अभी छोटा है तो बड़ी बहू सुबह के सारे काम संभालती है और छोटी बहू रात का खाना देख लेती तब बड़ी बहू बच्चे को पढ़ाती है और मैं तो हूं ही दोनों की मदद जरूरत के अनुसार करती हूं।
हालांकि दोनों मुझ पर गुस्सा करतीं हैं पर मेरा मानना है कि जबतक हांथ पैर चले तब तक उपयोगी बन कर रहो। ये घर हमारा है किसी एक पर जिम्मेदारी का बोझ क्यों लादना।” इतने में चाय बन गई और मैं फिर से अतीत में चली गई कि क्या मैंने कभी चाय बना कर बहूओं को दिया था कभी… उफ़ भाभी कितना करती हैं।ऐसी सास के साथ कौन सी बहू नहीं रहना चाहेगी।
मैं भी भाभी के साथ – साथ रसोई घर में आ गई। भाभी ने फ्रीज से सब्जी निकाल कर धो दिया था और हम दोनों सब्जी काटने बैठ गए थे।
“भाभी आपने तो बहुत समझदारी से गृहस्थी चलाई है बहू के रुप में भी और सास के रूप में भी….पर एक मंत्र और भी जानना है कि दोनों बहुओं में झगड़े नहीं होते काम को लेकर”। दीदी” जब छोटी बहू आने वाली थी तभी मैंने बड़ी बहू को बातों – बातों में समझाया था कि ” बेटा तुम अब बड़ी बहू बनने जा रही हो और मेरे बाद तुम्हारी ही जिम्मेदारी है कि कैसे परिवार एक हो कर चले….
क्योंकि रिश्ते में अगर एक भी गांठ पड़ गई फिर वो आसानी से नहीं खुलती है। तुम्हें देवरानी ही नहीं मिल रही बल्कि ससुराल में एक छोटी बहन,एक सखी भी मिल रही है। कभी भी किसी बात में तुलना नहीं करना क्योंकि वक्त के परिवेश में परिस्थितियों के अनुसार चीजें अलग तरीके से होती हैं। अगर तुम खुले दिल से किसी को अपनाओगी तो दूसरे इंसान को भी तुम्हारा प्यार जरुर समझ में आएगा।
” बहुत ही समझदार है आपकी बड़ी बहू.. .. मैंने कहा। हां दीदी…” दोनों समझदार हैं क्योंकि कमियां तो लोग भगवान में भी निकाल लिया करते हैं हम तो इंसान ही हैं।” भाभी के चेहरे की चमक और शुकून साफ – साफ बता रहा था कि रिश्तों में एक हांथ दो तो दूसरे हांथ लो। अगर सिर्फ आप उम्मीद ही करते रहते हैं सामने वाले से तो एक ना एक दिन आपको नाउम्मीद तो होना ही पड़ेगा
और स्वर्ग से कम नहीं था ये घर।काश! भाभी की तरह समझदारी से हर कोई रिश्ता निभाएं तो उस घर के आंगन में साक्षात ईश्वर विराजमान रहते हैं क्योंकि जहां क्लेश होता है वहां सुख शांति कोसों दूर हो जाती हैं।
चार- पांच दिनों में जैसे जिंदगी जी ली थी मैंने और बहुत छोटी – छोटी बातें भाभी से सीखा भी था। मेरे भी छोटे बेटे की शादी होने वाली थी अब मुझे भी इसी तरह समझदारी से अपनी भूमिका निभाना था। बड़ी बहू के साथ जो गलती हुई थी उसे भी सुधारना था। सचमुच में एक नारी के जीवन में दूसरी नारी की भूमिका कितनी मायने रखती है और मैंने भी मन ही मन संकल्प लिया था।
मायके से निकलते समय भाभी ने गोदी डालते हुए कहा ” दीदी ये आपका अपना घर है जब भी दिल करे आ जाइएगा। दोनों बहूओं ने बड़े आदर सम्मान से ख्याल रखा था।खूब सारा आशीर्वाद दिल से दिया था और अपने घर लौट आई थी। भाभी की सीख ने मेरे जहन में जगह बना ली थी।अब मेरी बारी थी अच्छी तरह से परिवार को बांध कर रखने की।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी