छोटा सा त्याग – सुभद्रा प्रसाद

 ” दीपक, तुम अपनी गुल्लक क्यों तोड़ रहे हो? ” मम्मी ने अपने ग्यारह वर्ष के बेटे से पूछा |

        “मैं छोटा सा त्याग करना चाहता हूँ |”

        “क्या मतलब? ठीक से बताओ |”

         “मम्मी, आज मेरे दोस्त आनंद का जन्मदिन है |वह अपना जन्मदिन मनाना चाहता है, पर उसके पापा नहीं हैं और उसकी मम्मी के पास पैसे नहीं है  |मैं अपने पैसों से केक, बैलून और चाकलेट खरीद कर शाम को दोस्तों के साथ बगल वाले पार्क में उसका जन्मदिन मनाना चाहता हूँ |

        “बगल वाले पार्क में क्यों, अपने घर के बगीचे मे मनाओ |सिर्फ चाकलेट हीं  क्यों, समोसे और गुलाबजामुन भी ले लो और साथ ही उसके लिए नये कपड़े भी खरीद देती हूँ |चलो बाजार |”

         “सच मम्मी, तुम तो बहुत अच्छी हो |” दीपक खुश होकर मम्मी से लिपट गया -“तुमने तो मेरे त्याग को बड़ा बना दिया |”

त्याग

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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