कहीं हमारी बहू भी इस मौके की तलाश में ना रहे – सविता गोयल

तड़ाक से कांच टूटने की आवाज़ सुनकर दामिनी जी भागती हुई हाॅल में आई , ”  क्या तोड़ दिया बहू ?? ,,

” वो….  मम्मी जी ,  सफाई कर रही थी तो ये फ्लावर पॉट हाथ से छूट गया। ,, थोड़ा घबराते हुए मानसी बोली।

” हे भगवान, कितना सुन्दर पाॅट था … तुम्हें पता है मैंने इसे खुद अपने हाथों से पेंट किया था। कहीं तुमने जान बुझकर तो…..,,  गुस्से में दामिनी जी बोलने हीं वाली थीं कि बाकी के शब्द दबा गईं ।

“साॅरी मम्मी जी, पता नहीं कैसे हाथ से छूट गया, ” उसने बात ना बढ़ाते हुए माफी मांग ली लेकिन दामिनी जी ने फिर भी पूरे दिन उससे बात नहीं की ।

शाम को पति और बेटे के आते हीं सबसे पहले  पाॅट तोड़ने की बात उनसे कही तो मानसी के ससुर जी ने हंसते हुए कहा , ” अरे भाग्यवान,  अब बहू ने जानबूझ कर थोड़े ही तोड़ा होगा .. कांच था …  कभी ना कभी तो टूटना हीं था।”

फिर भी दामिनी जी का मुंह फूला हीं था।

मानसी इस बार जब अपने मायके गई थी तो वहां से अपने पसंद की चादरें और पर्दे लेकर आई थी। एक दिन जब वो घर के पर्दे बदलने लगी तो दामिनी जी बोलीं,” बहू, इस घर में सबकुछ मैं अपनी पसंद से हीं लाती हूं… तुम्हें ये पर्दे लगाना हैं तो अपने कमरे में लगा लो लेकिन यहां के पर्दे बदलने की कोई जरूरत नहीं है।”

मानसी के हाथ वहीं ठहर गए। उसे बहुत बुरा लग रहा था कि जिस ससुराल को वो अपना घर समझती है उस घर में उसे कुछ बदलने का हक भी नहीं है। इसी तरह रसोई में मानसी काम तो करती थी लेकिन अपने हिसाब से चीजें रखने और लाने की आजादी उसे नहीं थी। हर चीज पर दामिनी जी नजर रखती थीं और बात-बात पर टोकती रहती थीं।

एक दिन मानसी बालकनी में रखे हुए गमलों को उठाकर ऊपर रखने लगी तो दामिनी जी ने टोकते हुए कहा ,” बहू ये गमले क्यों हटा रही हो ??”

” मम्मी जी, जब बालकनी में कपड़े धोती हूं तो यहां गमलों के नीचे पानी जमा हो जाता है इसलिए इन्हें ऊपर रख दिया ।”




” नहीं नहीं , इन्हें यहीं रहने दो । मुझे तो कभी कोई दिक्कत नहीं हुई  पता नहीं तुम कैसे काम करती हो ?  ,, दामिनी जी भौंहें सिकोड़ते हुए बोली ।”

मानसी को वापस गमले वहीं रखने पड़े।

घर की दीवारें भी बारिश के मौसम के बाद थोड़ी खराब दिखने लगी थी तो मानसी अपने पति मयंक से बोली, ” क्यों ना घर में नया पेंट करवा लें?? वैसे भी कमरे का ये रंग बहुत फीका लगता है…..”

” ठीक है मैं बात करता हूँ… ” मयंक बोला

जब मयंक ने घर में अपने मम्मी पापा से कहा तो दामिनी जी बोलीं, ” बेटा पेंट तो करवा लो लेकिन रंग यही रहने देना.. ये रंग हीं घर में अच्छा लगता है।”

मयंक ये सुनकर बोला, ” लेकिन मां मानसी को तो गहरा रंग पसंद है, वो बोल भी रही थी कि इस बार अलग रंग करवाएंगे।  ,,

ये सुनते ही दामिनी जी भड़कते हुए बोली, ” बेटा मैं इतने सालों से ये घर संभाल रही हूं और सजा रही हूं।  पहले तो तुमने कभी बहस नहीं की!! बहू के आते हीं तुम भी उसकी जुबान में बातें करने लगे।”

“माँ , ऐसी बात नहीं है लेकिन अब मानसी भी इस घर की सदस्य है… उसेका भी तो मन करता है अपने हिसाब से रहने का   …. जब से मानसी इस घर में आई है अपनी पसंद से चादर भी नहीं बिछा पाती यहाँ तक की सारे कपड़े भी आप हीं पसंद करती हैं । ये आप ठीक नहीं कर रही हैं मां ।”

मयंक तो बोल कर आफिस के लिए निकल गया लेकिन  मयंक का ऐसा बोलना दामिनी जी को अच्छा नहीं लग रहा था.. उन्हें लगने लगा कि बेटा अब सिर्फ बहू की तरफ बोलने लगा है…..माँ की नजर में बेटा जोरू का गुलाम बनता जा रहा था अपनी नाराजगी वो अब मानसी के ऊपर निकाल रही थीं… ।

 मानसी के ससुर जी ये सब देख समझ रहे थे… उन्हें भी दामिनी जी का ये व्यवहार ठीक नहीं लग रहा था… उन्होंने दामिनी जी को अपने पास बैठाया और समझाते हुए बोले,

” पता है भाग्यवान, जब मैं पिछली बार हमारी बेटी उषा के ससुराल गया था तो मैंने क्या देखा ??”




” क्या देखा जी ?? मेरी बेटी तो बहुत सयानी है कितने अच्छे से सारा घर संभालती है।” दामिनी जी गर्व से बोलीं।

” हां भाग्यवान, सचमुच हमारी बेटी बहुत सयानी है तभी तो  सास के बीमार होने के बाद  उषा ने अपने ससुराल का नक्शा हीं बदल दिया … यहाँ तक की अपनी बीमार सास को उनके आगे वाले कमरे से पीछे वाले छोटे कमरे में शिफ्ट कर दिया था ताकि आने जाने वाले लोगों के सामने उसे शर्मिंदा ना होना पड़े …  अब तो हमारी उषा अपनी पसंद के सूट और जींस भी पहनने लगी है । कह रही थी ” बहुत साल तक सास से दब कर रह ली। अब मैं सब कुछ अपनी मर्जी से करती हूं अब मुझे अपनी सास का कोई डर नहीं है । पड़ी रहेगी एक कोने में ।”

पति के मुंह से ये सब सुनकर दामिनी जी हैरान थीं।

वो फिर बोले , ” भाग्यवान  , मैं नहीं चाहता कि हमारी बहू भी ऐसे मौके का इंतजार करे….   मयंक की मां … , बदलाव तो हमेशा से होते रहे हैं और होते रहेंगे… समय रहते इसे स्वीकार करने में ही समझदारी है…..  अब ये घर बहू का भी है इसलिए उसका भी हक बनता है अपनी पसंद से इसे सजाने संवारने का…..  नहीं तो वो भी अपनी भड़ास उस वक्त निकालेगी जब हम अपने बच्चों के अधीन हो जाएंगे ।”

पति की बात दामिनी जी की समझ में आ रही थी.. वो सच हीं कह रहे थे……. यदि बहू की इच्छाओं का वो सम्मान करेंगी तो बेटे बहू की नजरों में उनका सम्मान भी बना रहेगा… और वो किसी मौके की तलाश में नहीं रहेंगे ।

अब दामिनी जी ने हर बात पर बहू को टोकना बंद कर दिया था….. और उसकी इच्छा का भी सम्मान करने लगीं थीं।

मानसी भी अब खुलकर अपनी बात रख सकती थी..  जब घर में सभी खुश रहते हैं  और सब की ख्वाहिशों का सम्मान होता है  तो घर स्वर्ग बन जाता है.,… दिलों के बीच की दूरियां नजदीकियों में बदलने लगी थी ।

दोस्तों, आपको मेरी कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं 

सविता गोयल

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