दादी, मैं भी चलूँगी आपके मायके – मीनाक्षी सिंह

दादी ,मैं भी चलूँगी आपके साथ आपके मायके ! आप कभी नहीं ले जाती ,इस बार तो मेरी छुट्टी भी हो गयी हैँ स्कूल की ,मुझे नहीं पता ,मैं अबकी बार मम्मी के मायके नहीं जाऊंगी ,वहाँ तो हमेशा जाती हूँ ! 7 साल की दिव्या अपनी दादी से हठ करते हुए बोली ! 

प्रेमलताजी (दादी माँ ) – पहले तू अपनी मम्मी से तो पूँछ ले ,उसे हम पर इतना विश्वास कहाँ ,वो कह दे तो चल तू ! सब बहुत खुश होंगे तुझे देखकर ! इतना प्यार मिलेगा ! 

तभी अन्दर से बल्देवजी (दिव्या के दादू ) ,हाथ में लाठी ,आँखों पे चस्मा लगाये कमरे से बाहर आयें ! ये क्या बातें हो रही हैँ सुबह सुबह  दादी और पोती में ! ज़रा मुझे भी तो बताओ ! 

सुनिये जी ,तुम्हारी बिटिय़ारानी मेरे मायके जाने की ज़िद कर रही हैँ ! मैं तो ख़ुशी ख़ुशी ले जाओ ,पर इसके मम्मी ,पापा जाने दे तब तो ! 

कह तो सही रही हैँ तू  ,एक हम थे ज़िनका हमारे माँ बाप को पता ही नहीं होता था ,कहाँ सोये ,कहाँ उठे ,कहाँ खाया ! इतना विश्वास था उन्हे अपनों पर ! लेकिन आज कल के ज़माने में आया नौकरानी के सहारे छोड़ देंगे अपनी संतान को पर अपने दादा ,दादी पर भी भरोसा नहीं करेंगे ! 

जी सही बोले तुम ,एक बार मेरी अम्मा मुझे 1 महीने के लिए अपनी नंसार लेकर गयी थी ! सबने मुझे बहुत प्यार से रखा वहाँ ! पर एक दिन अचानक खेलते खेलते मुझे चोट लग गयी ! तुरंत अम्मा के भईया मुझे शहर लेकर गए ! मुझे चार टांके आयें ! वो ग्लानि से भर गए थे ! मेरा अब पहले से भी ज्यादा ख्याल रखते थे! गेंहू की कटाई का समय था फिर भी मुझे और अम्मा को करने घर आयें ! बहुत सारे कपड़े,खिलोंने  और भी ना जाने क्या क्या दिलाया मुझे ! पापा से आकर बोले – छोटे ,अबकी बार एक गलती हो गयी ,पता नहीं हमारी लाडो को कैसे चोट लग गयी ! पापा बोले -मामा जी ,हमें तो कबका पता हैँ ,बच्चें खेलते हैँ तो लगती ही रहती हैँ ,लगने को तो यहाँ भी लग सकती है ! आप खाम्खां परेशान हुए ,आपका काम धन्धे का बख्त हैँ ,मुझसे कह देते मैं ले आता अम्मा लाडो को ! 

बच्चों से ज्यादा ज़रूरी कुछ नहीं बेटा ! उसके बाद भी माँ पापा ने मुझे कहीं भी भेजने में हीचक नहीं की ! रिश्ते में हर जगह कई कई दिन बस से सफर कर रहकर आती थी मैं ! अम्मा बाबा की गोद माँ की गोद से कम ना लगती ! और ये हमारी दिव्या दिन में एक दो घंटे तो रह लेगी हमारे पास पर फिर मम्मी के पास ही भागती हैँ !




इसमें दिव्या की गलती नहीं समझी ,जब हमारे पास ज्यादा समय गुजारने ही नहीं देंगे इसके माँ बाप ,हमारी खांसी ,हमारी आयें दिन होने वाली छोटी मोटी बिमारी कहीं इन्हे ना लग जायें ,इस डर से भेजते ही नहीं ! एक हम अपने अम्मा बाबा से चिपककर सोते थे! ज़माना बदल  गया है ,अब वो क्या कहते हैँ सब हायज़िनिक हो गए हैँ ,हम तो जैसे हमेशा नाली में लोटते थे ! 

प्रेमलताजी ठहाके मारकर अपना पेट पकड़कर हंसने लगी ! 

अब हंसती ही रहोगी य़ा अपने गांव भी जाओगी ! तुम चली जाओगी तो मेरा मन तो अकेले लगेगा नहीं इस बंद कमरे में ! 

तो तुम भी चलो साथ ,किसने मना किया हैँ ,खूब आवभगत होगी ,दमाद जो ठहरे !

तुम भी क्या आज मजाक के मूड में हो ! कभी रुका हूँ अपनी ससुराल एक दिन से ज्यादा जो अब बुढ़ापे में  रुकुंगा ! तुझे बस में बैठाकर गांव निकल जाऊंगा ! तू जब आयेगी तभी आऊंगा ! 

आप लोग अपनी ही बातें करते रहोगे दादू दादी य़ा मेरा भी कुछ सोचोगे ! मैं चल रही हूँ ना दादी ?? 

हाँ दिव्या ,तुम जा रही हो अपनी दादी की नंसार उनके साथ ! पीछे से दिव्या के पापा और मम्मी की एक साथ आवाज आयी जो काफी देर से दोनों की बातें सुन रहे थे ! 

इसी बहाने नानी  के घर के अलावा अपने घर के और लोगों को जानेंगी ! बहू बोली ! 

पापा आप गांव नहीं ज़ायेंगे ,यहीं रहेंगे ,मुझे शतरंज खेलना सीखायेंगे शाम को ! माँ के आने पर हम सब एक साथ गांव चलेंगे ! बेटा बोला ! 

बेटा बहू के मुंह से ऐसी बातें सुन प्रेमलता जी और बल्देवजी गदगद  हो गए ! 

हाँ हाँ ,क्यूँ नहीं ,सब साथ चलेंगे ! 

पापा, मैं बैठा आता हूँ बस में दिव्या और माँ को ! आप गर्मी में परेशान हो ज़ायेंगे ! 

मम्मा ,मेरा बैग जल्दी से तैयार करो कहीं दादी मुझे छोड़कर वो क्या कहते हैँ नांसार ना चली जायें ! 




सभी लोग मासुम दिव्या की बातें सुन ठहाके मारकर हंसने लगे ! 

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

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