अपना कोना – उमा वर्मा

मेरे जाने की खबर सुनते ही बेटा और बहू निकल पड़े हैं ।शाम की फ्लाइट पकड़ने के लिए ।कैब में मै भी उनके पास आकर बैठ गयी हूँ, लेकिन उन्हे  कुछ पता नहीं है ।मैं सबकुछ देख सुन रही हूँ लेकिन वे मुझे न देख रहे हैं न महसूस कर पा रहे हैं ।नियति का कैसा यह खेल है ।तुरंत हम पहुंच चुके हैं ।जहाज उड़ने लगा है ।आसमान में बादल का नजारा बहुत सुन्दर लग रहा है ।मै भी तो अब इन्ही बादलों में खो जाने  वाली हूँ ।लेकिन अभी थोड़ा वक्त है ।अभी घर में सब की क्रिया, प्रतिक्रिया देखना है ।बेटा बहू चुप हैं ।शायद मेरे ही बारे में सोच रहे हैं ।मै इनके साथ साथ चल रही हूँ ।दो घंटे बीत गए ।जहाज लैंड कर रहा है ।उतरते ही टैक्सी मिल गई ।मुझे तो अब कही आने जाने में समय नहीं लगता लेकिन जो संसार में है उनके नियम जरा हट के है ।मैं तो संसार से परे हो गई ।लो ,टैक्सी भी घर आ गई ।मुझे  जमीन पर लिटा दिया गया है ।बर्फ के टुकड़े भी मेरे चारों तरफ से लगाया गया है ।गर्मी है ना ।मेरा शरीर खराब न हो ।इसलिए ।शरीर तो खराब हो ही गया ।इन लोगो को समझ नहीं आ रहा ।घर में बहुत भीड़ है ।मायके और ससुराल वालों की भीड़ ।मेरी माँ भी है ।बेतहाशा रो रही है ।मुझे माँ को रोते हुए देख कर बहुत तकलीफ होती है ।माँ को चुप होने को कह रही हूँ पर वह शायद सुन नहीं पा रही ।वह बार-बार कभी मेरे हाथ को सहला रही है ।कभी मेरे माथे को चूम रही है ।एक माँ के लिए बहुत तकलीफ दायक दृश्य ।मेरे लिए माँ सबसे अच्छी और सबसे प्रिय थी।वह मेरी पक्की दोस्त भी थी ।थी इसलिए की वह तो है, मै नहीं हूँ ।

कैसे जी पायेगी वह मेरे बिना ।कभी इस घर में एक कोने के लिए तरस गयी थी आज पूरा घर मेरा है, मेरा ही गुणगान कर रहा है ।दुनिया का रंग ढंग अजीब सा है ।जीते रहो तो कोई कद्र नहीं, खत्म हो गये तो सब से अच्छे ।हाँ तीन तल्ले का मकान है है मेरा ,बहुत सुन्दर, बड़ा सा ।शादी ठीक करने गये थे बाबूजी तो बहुत खुश हो गये ।बेटी बहुत बड़े घर में जा रही है ।धूम धाम से शादी हो गई थी ।औकात के मुताबिक ।लेकिन मायके का औकात कम बताया गया ।फिर भी सबकुछ ठीक ही लगा ।पति बहुत सीधे सादे थे।घर में एक कमरा सजाया गया था मेरे लिए ।अच्छा लगा ।मैंने अपना सामान जमा दिया उस कमरे में ।उस कमरे की मै मालकिन थी।समय पंख लगाकर भाग रहा था पर जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं था ।फिर कुछ दिन के बाद मुझे दूसरे कमरे में जाने को कहा गया ।मैंने अपना कमरा बदल लिया ।मुझे लगा पूरा घर मेरा है ।एक कमरे में मै।एक कमरे में मेरा सामान, अलमारी, कपड़े ।मुझे तो खुश होना चाहिए ।पर पता नहीं क्यों खुशी भागती चली गई ।थोड़े दिन के बाद फिर बैठक में  मुझे भेज दिया गया ।अब बहुत दिक्कत होती जब कोई बाहर के लोग आ जाते और मुझे अपने कपड़े पहनने में परेशानी होती ।फिर भी मैं चुप रहती ।फिर एक बेटे की माँ भी बन गई थी ।परिवार में बहुत खुशी मनाई गई ।यह अलग बात है कि बेटे का जन्म मायके में हुआ ।समय तो हमेशा भागता रहा है ।भाग रहा था ।सरपट।घर का काम, बच्चे की देख भाल, अपनी पढ़ाई भी तो पूरी करनी थी ।सब करती रही ।अपने नसीब होते हैं ।खुश रहना चाहिए ।माँ ने विदा करते समय यही मंत्र दिया था ।उसी को निभा रही थी ।खुशी खुशी ।लेकिन ईश्वर को खुशी कहाँ मंजूर थी।पति एक बीमारी में चल बसे थे ।मेरे सामने दुख का पहाड़ टूट पड़ा था ।कैसे जियेगी? कैसे बेटे की परवरिश करेगी? मायके में पिता नहीं थे।माँ का सहारा तो था लेकिन मानसिक रूप से ।आर्थिक रूप से माँ भी कमजोर थी।लेकिन मेरे लिए यह भी बहुत बड़ी बात थी कि माँ हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती रही ।उस हौसले ने मुझे जीवन जीने की राह दिखाई ।मैंने कमर कस लिया ।बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए ।कुछ अपने पैसे, कुछ लोन से ।उसे आगे बढ़ाने में अपना दुख भूल गयी ।बेटा पढ़ाई  करके इन्जीनियर बन गया था ।मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ।मेरा और मेरे पति का सपना पूरा होने जा रहा है ।अब उसकी शादी हो जाये।बस अपनी जिम्मेदारी पूरी करके चली जाउंगी ।लड़का कहीँ नौकरी पर लग जाए तो रिश्ते आने लगते हैं ।फिर एक जगह रिश्ता पसंद आ गया ।लड़की सुन्दर, शिक्षित थी।




चटपट शादी हो गई ।अरे हाँ, खास बात कहना ही भूल गयी ।घर बड़ा बन गया था ।एक कमरा मुझे भी मिल गया था ।लेकिन अब वह कमरा बेटे बहू को देना था ।नहीं देती तो उसके लिए मुश्किल होती ।वह तो मेरा बेटा ही था ।उसके लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती थी ।सब कुछ अच्छी तरह निभा दिया ।शादी के बाद बेटा पूना चला गया ।पत्नि को लेकर ।उसमें मेरी भी सहमति थी।फोन पर रोज हम घंटो बात किया करते ।मन ही नहीं भरता था ।देखते देखते चार महीने बीत चुके ।मै भी उसके पास जाने की तैयारी कर रही थी ।बहुत दिनों का सपना था ।बेटा बहू के साथ रहने का ।अब समय आ गया है ।बहुत दिन सब कुछ संभाल लिया ।और बेटा भी तो रोज आने के लिए कहता।सोचती कितना अच्छा लगता है सोच कर।मेरा बच्चा बहुत लायक था ।बहुत लगाव था उसे अपनी माँ से ।मै अपना सामान सहेजती रही ।उसके पास जाने को।और एक दिन अचानक सीने में बहुत ज्यादा दर्द उठा ।हाथ में दर्द का रेला सा।मै जोर से चिल्लाने लगी ।घर के लोग आते तबतक मैं जा चुकी थी ।फिर अस्पताल ले जाया गया तो डाक्टर ने पूरी जाँच की और कहा ” खत्म हो गई है ” ।फिर घर में ले आये ।जमीन पर लिटा दिया गया ।और बेटे को सूचित किया गया ।अब मैं बन्धन से मुक्त और आजाद थी।मेरी गति हवा से भी तेज हो गई ।जहां चाहे तुरंत जा सकती थी ।मै बेटे के पास आ गयी थी ।अब माँ  लगातार रो रही है ।मुझे ले जाने की तैयारी होने लगी तो बहुत सारे लोग भी रोने का नाटक करने लगे ।मै अब कुछ नहीं सोचना चाहती ।बेटा बहू तो अपनी गृहस्थी में सब खुश हो जायेगा ।लेकिन बुजुर्ग हो रही, उम्र के आखिरी पड़ाव पर माँ कैसे इस दुख को सह पायेगी? और मेरा कोना मेरे बेटे को शायद मिल जायेगा ।यह मेरे लिए संतोष की बात होगी ।माँ को न सही, बेटा और बहू तो है ना ।मेरी अंतिम यात्रा खत्म होने वाली है ।रहूँगी तो सूक्ष्म रूप से अपनो के बीच ही।यही मेरी आखिरी इच्छा है ।वह लोग भले ही मुझे न देख पाये पर मै उन्हे अपने करीब देखना चाहती हूँ ।” 

उमा वर्मा, नोएडा ।” स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल

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