मेरा परिवार-मेरी दुनिया – निधि जैन

रहें ना रहें हम, महका करेंगे…..रेडियो पर एक प्रोग्राम में गाना चल रहा था, शाम के यही कुछ 4 बज रहे थे,  आरती भी गुनगुनाती हुई चाय बना रही थी, बारिश अपने ज़ोर पर थी,

आज़ चाय के साथ कुछ अच्छा सा बनाओ आरती, रमेश ने रसोई में आते हुए कहा।

हां अब बारिश हो और चाय पकोड़े ना बनें ऐसा कभी हुआ हैं, आरती ने चाय के कप और पकौड़ों वाली प्लेट रमेश को देते हुए कहा।

इतनी बारिश तो कभी नहीं हुई, जितनी आज़ हो रही है, आज़ तो शाम में ही अंधेरा हो गया है, बस रोशनी और पानी आँगन से दिख रहा है, कमरे से आँगन की ओर जाते हुए रमेश की मॉं ने कहा। (घर में चारो तरफ कमरे और बीच में एक आँगन था)

हां मॉं आज तो बारिश कुछ ज़्यादा ही है, चाय लीजिए, आरती ने चाय देते हुए कहा।

रमेश की नौकरी भी साधारण ही थी, जो भी महीने का मिलता, सब मॉं के हाथ में रख देता, और मॉं उसकी होनहार बहु को दे देती, रमेश ने जमा पूंजी से घर बनाया, उसकी ईमानदारी किसी से छुपी नहीं थी, जितना मेहनताना उसे मिलता, उसी में ख़ुश रहता, उसका परिवार उससे पूरी संतुष्ट और ख़ुश रहता था,उसका घ़र, घ़र के सभी सदस्य उसकी दुनिया है, बाकी उसको कुछ अलग चाह कभी थी ही नहीं,  परंतु उसकी ईमानदारी छोटे भाई की पत्नी को बहुत खलती थी, वो हर समय मायके में गरीबी का रोना ही रोती रहती, महेश की सैलेरी जब भी आती, मीना पूरे पैसे घरखर्च के नाम पर महेश से ले लेती, और सारा पैसा इधर-उधर के फ़ालतू खर्च में ख़त्म कर देती, महीना ख़त्म भी न हो पाता, फ़िर महेश से पैसे मांगने लगती, महेश उसकी इस आदत से परेशान हो गया, उसने निश्चय कर लिया कि अब पूरा पैसा मीना को ना देकर घर में भाभी को देगा, ताकि घर ठीक तरह से चल सके।

कुछ दिन में महेश की सैलेरी भी आ गई,

आज़ महेश ऑफिस से भी जल्दी आ गया।

भाभी, भाभी… आवाज़ लगाते हुए महेश किचन में आया, वहां मीना को देखकर चुप रह गया,

क्या हुआ भईया, आरती ने पूछा।

भाभी भैया नहीं आए अब तक, आज बहुत देर हो गई, कह कर महेश ने अपने कदम कमरे की ओर जाने को बढा़ये,

हां आज थोड़ा समय लगेगा उनको, आप कहिए, कुछ काम था क्या? आप आवाज़ देते हुए अचानक चुप हो गए, आरती बोली।



वो..वो.. भैया से थोड़ा काम था इसलिए, चलता हूं भाभी, कह कर महेश कमरे की ओर बढ़ गया।

पीछे से मीना भी कमरे में आई, बोली क्या बात है, जो मेरे सामने नहीं कर पाए, अकेले में ऐसी क्या बात करनी थी? बोलो, बताओ ना , अब चुप क्यों हो, और इस बार सैलेरी नहीं आई, कब आयेगी, मुझे AC लगवाना है कमरे में, तुमने कहा था इस महीने लगवाओगे,फिर क्या हुआ उसका, मीना ने अनगिनत प्रश्न पूछ लिए महेश से।

हां वो इस महीने सैलेरी आने में देर लगेगी, इस महीने से घर की दूसरी मंज़िल तैयार करवाना है, इसलिए AC बाद में लगवा लेंगे, कहता हुआ कमरे से बाहर आ गया।

घर की दूसरी मंज़िल की ज़िम्मेदारी तुम्हारी थोड़े है, वो तो जेठजी की है, वो करेंगे, अब उनका पैसा कम आता है, इसमें मैं क्या करूं, मीना चिल्लाई

चुप हो जाओ मीना, तुम्हारी हर ज़रूरत पूरी कर रहा हूं, और इस घर के प्रति मेरे भी कर्तव्य है, वो भी मुझे निभाने है, भईया ने तो बहुत किया है इस घर के लिए, ये घर उन्ही ने बनवाया है, अब मेरी बारी है, मुझे इसे और बड़ा करना है, महेश ने कहा,

क्या हुआ भईया, आप दोनो इस तरह से बात क्यों कर रहे है, आपको पता है मांजी की तबियत ठीक नहीं है, वो तेज़ आवाज़ सुनेगी तो दिक्कत होगी उनको, आरती ने शांत स्वर में कहा।

हम दोनो की बात में आपका आना तो बहुत ज़रूरी था मीना ने ज़ोर से बोला।

मीना तुम्हे जो भी बात करनी है आराम से करो, मांजी को आराम करने दो, आरती दोबारा बोलकर वहां से चली गई।

ये तुम्हारे घरवाले बात भी नहीं करने देते, अब इनसे पूछकर बात करनी पड़ेगी क्या? मीना ने आवेग में आकर कहा।

मीना चुप हो जाओ, भाभी ने कहा ना, और रही बात तुम्हारे AC की, तो वो चार से पांच महीने बाद ही लग पाएगा, अब इसके आगे मुझे कोई बात नहीं चाहिए, कहकर महेश कमरे से बाहर आकर आंगन में बैठ गया,

कुछ देर में रमेश भी दफ़्तर से आ गया, आरती.. चाय बनाओ ज़रा सिर में थोड़ा दर्द है कहते हुए अपने कमरे की ओर फ्रेश होने चला गया।

आरती ने बिना जवाब दिए, चाय चढ़ाई,

भईया आप लेंगे चाय?  बाहर आकर महेश से बोली

जी भाभी, महेश ने उत्तर दिया।

क्यों भई आज तो तुम बड़े जल्दी आ गए, रमेश कमरे से आंगन की ओर आते हुए महेश से बोला।

हां भैया, वो कुछ बात करनी है आपसे, महेश ने कहा।



हम्म बोलो क्या बात है, कुछ परेशान दिख रहे हो, क्या समस्या है, रमेश ने चिंतित होकर कहा।

नहीं भईया ऐसी कोई बात नहीं, मैं तो घर की दूसरी मंज़िल बनवाने के बारे में सोच रहा था, आपका क्या विचार है, महेश ने कहा।

हम्म बात तो सही है, पर अभी नहीं बनवा सकता, अभी आरती के डिलीवरी का समय कभी भी आ सकता है, और मॉं का ऑपरेशन भी इसी महीने में है, एक दो महीने बाद बनवा सकते है रमेश ने महेश से कहा।

चाय लो, आरती को हाथ में चाय की ट्रे लाते हुए रमेश ने कहा।

आपने बहुत कुछ किया है भईया अब बारी मेरी है, इस बार मैं दूसरी मंज़िल बनवाना चाहता हूं, और माँं का ऑपरेशन भी मैं करवा लूंगा आप बस भाभी का ध्यान रखिएगा भईया, महेश बोला

क्यों ऐसा कह रहे हो अपने भाई पर भरोसा नहीं है, कि जो बोल रहा हूं, वो करवा दूंगा, या कोई और बात है??

मुझे बताओ,रमेश में महेश से कहा।

भैया ऐसा मत कहिए, आप पर पूरा भरोसा है, मैं भी आप लोगों के लिए, इस घर के लिए कुछ करना चाहता हूं, बस इसीलिए…. कह कर महेश चुप हो गया।

हम्म्म तो ये बात है, आप कुछ और भी कहने आए थे थोड़ी देर पहले, परंतु बिना कहे ही चले गए थे, क्या बात थी, आप आज बाकई परेशान दिख रहे है भईया, आरती ने चाय देते हुए कहा।

क्या बात है मेरे भाई, क्या चिंता है, कोई परेशानी हो तो बोल, हमसे मत छुपा कोई परेशानी, रमेश ने गहन चिंतिंत होकर कहा।

नहीं भैया ऐसी तो कोई समस्या नहीं है, परंतु एक विचार है जो रह-रह कर मन में आता है, वो बात ऐसी है कि मेरा वेतन आपसे ज्यादा है, और फिर भी इस घर के लिए, मॉं , भाभी, आपके लिए कुछ कर ही नहीं पता, सब पैसा मीना ख़र्च कर देती है, मेरी भी कुछ ज़िम्मेदारी है, ये बात मीना को समझा कर हार गया, पर वो समझती ही नहीं, उल्टा आपलोगों के खिलाफ़ बोलती है, जिससे घर में कलह हो,  जो मुझे पसंद नहीं, और वो ये बात समझना ही नहीं चाहती, क्या करूं, कुछ समझ नहीं आया, तब मन में घर की दूसरी मंजिल तैयार करवाने का विचार आया जो मैं आपको बता चुका हूं, भैया, महेश ने दुःखी होकर कहा।



भईया आप कहे तो मैं बात करूं मीना से, आरती ने महेश से पूछा।

नहीं भाभी, वो आपको बुरा भला कहेगी, ये मुझसे देखा नहीं जायेगा, महेश ने चिंताग्रस्त होकर कहा।

अच्छा एक काम करते है, बहु से अच्छे से बात करते है, उसके मन में क्या है, ये पता करते है, उसके बाद अगर वो हमें गलत लगेगी तो हम दोनों उसे समझाएंगे, उसके बड़े भाई भाभी जैसे ही तो है हम उसके लिए, रमेश ने सुझाव दिया,

मैं लेकर आती हूं मीना को, आरती ने कहा।

मीना, मीना, कहती हुई कमरे के बाहर से ही आरती ने आवाज़ दी।

हा, क्या है, मीना ने दरवाज़े पर आकर ज़वाब दिया।

आओ बहु, सब बाहर बैठे है, बातचीत चल रही है,  सबके साथ बैठते है, कुछ बात करते है, आरती ने बाहर की ओर इशारा करके बुलाया।

मेरे सिर में दर्द है, मुझे नहीं आना बाहर, आप जाइए प्लीज़ मीना ने दरवाज़े बंद करते हुए कहा।

रुको, मेरी बात तो सुनो एक बार, आरती ने दरवाज़े को पकड़ कर कहा।

बाहर आओ मेरे साथ, हमारे साथ बैठो, हमको भी मौका दो, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो, ऐसे अकेले में बैठना अच्छा नहीं, सबके साथ बैठो, सिर दर्द ठीक हो जायेगा।

आरती ने दोबारा कहा।

हम्म ठीक है, चलती हूं, कहकर मीना आरती के साथ बाहर आ गई,

आओ मीना बैठो, कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए रमेश ने कहा,

मीना के सिर में दर्द है, इसलिए आप लोग ज़रा धीरे बात कीजिएगा, ताकि उसे आपकी बातों से परेशानी ना हो।

आरती ने मीना के बाज़ू वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

लो गरम अदरक वाली चाय पियो, सिर दर्द एक दम गायब हो जाएगा, रमेश ने कहा।

नहीं भईया मन नहीं है, आप लोग लीजिए, मीना ने हाथ हिलाकर मना करते हुए कहा।

हम्म, वैसे आज़ की श़ाम बहुत ही अच्छी है, वैसे आज़ कल मौसम भी अच्छा बना हुआ है, बारिश भी सुबह से अभी तक थमी ही नहीं, लगता है उसका भी थमने का मन नहीं है, और ऐसे में चाय को मना करना अच्छा नहीं, कहते हुए आरती ने मीना को चाय दी।

मीना ने चाय ली,

हां तो भई महेश, तुम भूल गए, इस घर में एक साथ दो ख़ुशियां आने वाली है, रमेश ने महेश के कंधे पर हाथ रख़ कर कहा।

हम्म आरती ने भी हां में हां मिलाते हुए कहा।

भईया आप बुरा ना माने तो कुछ कहूं, मीना ने रमेश से कहा।

हां कहो बहु, क्या बात है, चाय पीने के बाद सिर दर्द कम हुआ, रमेश ने कहा।

भईया सिर दर्द तो कम हो ही जायेगा, किन्तु मुझे इस घर में नहीं रहना, मांजी बीमार बनी रहती है, दिन भर खांसती रहती है, उनके वजह से घर में गन्दगी रहती है, उनके आराम की वज़ह से हम बात नहीं कर सकते, टीवी भी देखो तो कम आवाज़ में, कोई रौनक नहीं, कोई जश्न नहीं,कोई उत्साह नहीं, बस बीमारी ही बनी रहती है, ऐसे मैं नहीं रह सकती, मैं महेश को कबसे कह रही हूं, कि वेतन ज्यादा है, नया घर देख लें, जिसमें में अपने हिसाब से सब कर सकूं, और आराम से भी रह पाऊंगी, पर ये सुनते ही नहीं आप कहे ना इनसे, आपकी बात मान जायेंगे, मीना बोल ही रही थी कि,

चुप हो जाओ तुम, मैं कहीं जाना नहीं चाहता तुमसे कह चुका हूं, तुम्हारी मांगे पूरी करता हूं, इसलिए आज तक किसी के लिए कुछ कर नहीं पाया सिवाय तुम्हारे, उसके बाद भी तुम्हे अलग क्यों रहना है, अपने हिसाब से तो रहती हो, कोई कुछ कहता भी नहीं तुम्हे, फिर भी… महेश मीना को बीच में रोककर बोला।



महेश बोलने दो बहु को, मैं सुनना चाहता हूं रमेश ने कहा।

भईया इनकी सैलेरी में भी मुझे पूरा नहीं पड़ता, जैसे कि मेरा कमरा भी छोटा है, सब सामान भी उसी में रखा है, उसमें रहने को जगह ही नहीं है, और उस कमरे में AC लगवाने का बोल रही हूं पर सुनते ही नहीं, आप इस घर के बड़े है,और आपकी सैलरी तो इतनी नहीं है कि आप घर के सभी सदस्यों का ख़र्च उठा पाए, सोचकर ये आपको बोल नहीं पाते, तो इनको मुझे और मेरे होने वाले बच्चे के बारे में सोचना चाहिए, अब परिवार बढ़ेगा तो छोटे से घर में कैसे रह पाएंगे, आप ही बताए, मीना रमेश से बोली।

हम्म एक लंबी सांस लेकर रमेश ने बोलना शुरू किया, मैंने तुम्हारी सारी बातें सुनी, अब मेरी बात का जबाव देना, फिर तुम्हारी जितनी भी समस्या है, उन सभी को सुलझा दूंगा। तो मुझे सबसे पहले ये बताओ परिवार क्या होता है?

क्या परिवार बिना मॉं-बाबा के पूरा होता है?क्या तुम चाहती हो कि जब तुम बूढ़ी हो, तुम बीमार हो और तुम्हारा बच्चा भी इसी तरह तुमसे नफ़रत करने लगे, तुमसे अलग होने की बात करे? क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारा बच्चा तुम्हे सहारा दें? तुम्हे वो सारी सुविधाएं दें जिसकी तुम्हे ज़रूरत हो? क्या तुम्हारी मॉं कभी बीमार नहीं पड़ी? क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारी मॉं आराम की ज़िंदगी जिए? तुम्हारी भाभी भी इसी तरह के वचन तुम्हारी मॉं के लिए कहे, क्या तुम सुन पाओगी?

तुम्हारे पास अगर मेरी इन बातों के जबाव हां है तो मैं आज़ ही अपनी मॉं बेटी और पत्नी को लेकर इस घर को छोड़ कर ख़ुशी से चला जाऊंगा, फिर पूरा घर तुम्हारा, तुम्हारे बच्चे का, आराम से रहना, जश्न करना, उत्साह से रहना, तुम्हारी ख़ुशी में कोई दख़ल देने नहीं आएगा।

और अगर जबाव ना है, तो मेरी दुनिया बिखरने से बच जाएगी। फ़ैसला तुम पर छोड़ता हूं, मुझे रात तक सोचकर  जबाव देना, तुम्हारा जबाव जो भी होगा, मैं उसका पूरा सम्मान करूंगा। इतना बोलकर रमेश अपनी मॉं के कमरे की ओर बढ़ गया। पीछे आरती भी चल पड़ी।

महेश भी बिना कुछ बोले बाहर चला गया।

मीना वहीं रह गई।

कुछ देर बाद अचानक आरती को दर्द होने लगा, बारिश भी ज़ोरो पर थी, थोड़ी मुश्किलों के बाद रमेश, महेश की मदद से आरती को लेकर हॉस्पिटल पहुंचा,

बधाई हो आपको सुंदर सा बेटा हुआ है,परन्तु आरती को अभी ह़ोश नहीं आया अगर 2 घंटों में होश नहीं आया तो कोमा में जा सकती है, नर्स कहकर चली गई,

भईया क्या आप मुझे मेरे ग़लत बर्ताव के लिए माफ़ कर सकते है, पीछे से मीना ने कहा।

मुझे अपने घमंड़ में आपका और भाभी का समर्पण कभी दिखाई ही नहीं दिया, आपके सारे प्रश्नों से आज़ मुझे अपनी की हुई सारी ग़लतियों का अहसास है, क्या मैं आपकी दुनियां में फिर से शामिल हो सकती हूं भईया, मीना ने हाथ जोड़ कर कहा।

हमने तुम्हे कभी घ़र से अलग किया ही नहीं, तुम आज़ भी हमारे घ़र का एक अहम हिस्सा हो, रमेश बोल ही रहा था कि डॉक्टर ने आकर कहा रमेश जी अब आपकी पत्नी ख़तरे से बाहर है, जल्दी ही ठीक हो जाएंगी, परन्तु उनको ज़रा भी तनाव नहीं होना चाहिए,

जी डॉक्टर साहेब बहुत बहुत धन्यवाद, रमेश ने कहा।

महेश तुम दोनों घ़र जाओ, वहां मॉं और पीहू अकेले है, मैं यहां रुकता हूं, रमेश ने कहा।

भईया भाभी को कुछ नहीं होगा वो जल्दी ही अच्छी हो जायेगी, मैं उनके स्वागत की तैयारी करूंगी, मीना ने रमेश से कहा।

महेश और मीना घ़र के लिए निकल गये,

कुछ दिन में आरती भी अच्छी हो गई, रमेश, आरती और बच्चे को लेकर घ़र पहुंचा, घ़र पहुंच कर हुए स्वागत को देख कर हैरान रह गया, मन ही मन भगवान् को धन्यवाद किया,

उसका परिवार, उसकी दुनियां में अब मनमुटाव नहीं रहा।

निधि जैन

इंदौर मध्यप्रदेश

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