• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

मेरा गुलाब  – दीप्ति सिंह

अभी स्कूल बस आने में देर थी । आरव तैयार था बस करुणा को बालों में कंघी करनी थी। अचानक उसकी नजर बरामदे में रखे गमले के अधखिले लाल गुलाब पर गयी। उसके चेहरे पर मुस्कान के साथ एक याद भी तैर गयी। ” आप मुझे गुलाब नही देंगे क्या?” उसने अरुण से पूछा था। “नही..” “क्यो ? ” “फिर तो मुझे बहुत सारे गुलाब खरीदने पड़ेंगे ..माँ ,पिताजी, अनु दीदी, गुड्डो और तुम और..और.. उसके उभरे हुए गर्भ की ओर इशारा करते हुए बोला “इसके लिए भी.” करुणा मुस्करा दी। ” करुणा ! प्यार कब से गुलाब में सिमट गया ..”अरुण बोले थे। अरुण देश के लिए तिरंगे में लिपट गये ।

ससुर ने एक बार फिर घर संभाल लिया था .. एक सड़क दुर्घटना में ससुर की मृत्यु को सास न झेल पाई .. पहले बेटा फिर पति .. साल भर में वह भी उसे छोड़ कर चली गयीं। करुणा रह गयी चार वर्षीय आरव के साथ ,स्कूल में नौकरी तो वह सास ससुर और अरुण के सामने भी कर रही थी और आज भी। अनु दीदी और गुड्डो हफ्ते पंद्रह दिन में हाल -चाल पूछती हिम्मत बंधाती रहती और समय -समय पर मिलने भी आतीं। कंघी करके पास रखे सास ससुर और अरुण की फोटो के पास रखे रुमाल से नियमानुसार जमी धूल साफ करके एक धूपबत्ती जलाई और एक नजर देख कर मुस्कराई । आरव के साथ एक सेल्फी ले कर ‘मेरा गुलाब ‘ टाइप करके फेसबुक पर डाल दी। बस ने हॉर्न दिया। अरुण का पसंदीदा गीत ‘मौसम आएगा जाएगा ..प्यार सदा मुस्करायेगा..’ गुनगुनाते हुए घर मे ताला लगाया और सामने खड़ी स्कूल बस में आरव के साथ चढ़ गई। दीप्ति सिंह

(स्वरचित, मौलिक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!