तारीख   –  ऊषा भारद्वाज

आज सुबह से मन्टूअपनी दादी को देख रहा था कि उसकी दादी अपने कपड़े तह करके अपने ब्रीफकेस में रख रहीं थी । अपनी जरूरत का सारा सामान धीरे-धीरे छोटी सी बैग में रखा । मंटू दादी के पास आया और उनसे पूछा – “दादी आप कहीं जा रही हो?” सावित्री देवी ने बड़ी मायूसी से उसकी तरफ देखा और फिर उनके होठों पर एक दर्द भरी मुस्कान आ गई । जो छोटे से बच्चे को नहीं समझ में आयी। फिर उसने पूछा – बोलो ना दादी, आप कहां जा रही हो?” लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। तभी सरिता ने मंटू को बुलाया और डांटते हुए कहा इधर-उधर क्यों घूम रहे हो? होमवर्क क्यों नहीं किया?” मंटू ने ठुनकते हुए कहा- मम्मा , पहले यह बताओ दादी कहां जा रही हैं? ” सरिता ने कहा- दादी ताऊ के घर जा रही है । मंटू ने फिर पूछा – क्यों, दादी वहां क्यों जा रही हैं? “अब कुछ दिन वहां रहेंगी, रिनी दीदी के पास । वो भी दादी को बहुत प्यार करती हैं।” – सरिता ने उसको संतुष्ट करने के लिए बताया। पता नहीं क्यों मंटू का बाल मन सरिता के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ । वह दुखी हो गया। मंटू की बातें दूसरे कमरे में सावित्री देवी सुन रहीं थीं। उनका दिल भर आया, आंखों में नमी उतर गई । होंठ रोने के लिए फड़क उठे ।

कुछ ही पल में वह 2 साल पहले अपने अतीत में चली गईं । जब उनके पति जीवित थे। कितनी खुश रहती थीं। किंतु अचानक एकबार उनके पति को तेज बुखार आने लगा, 15 दिन बहुत लड़ाई की अपनी जिंदगी के लिए , मगर अंत में हार गए । उनको अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। फिर शुरू हुई घर के सामान के साथ उनके बंटवारे की योजना। अंतिम निष्कर्ष ये निकला कि अम्मा यानि सावित्री देवी अपने तीनों बेटों के पास बारी -बारी से चार- चार महीने रहेंगी । जब यह प्रस्ताव उनके सामने रखा गया तो उनका दिल जो पति के जाने से टूटा था और जिसको वह अपने बच्चों को देखकर फिर से जोड़ने का प्रयास कर सकती थीं वह बिल्कुल चूर हो गया । उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे ,बस उनकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे । ये देखकर बड़े बेटे सुरेश ने पूछा – क्या हुआ अम्मा? तुम रो क्यों रही हो ? सावित्री देवी ने अपने मन की पीड़ा को छुपाते हुए कहा-” कुछ नहीं बेटा, तेरे बाबूजी की याद आ गई।” तब से हर चौथे महीने की 31 तारीख को वो अपना सामान बांधती हैं और दूसरे बेटे के घर पहुंचा दी जाती हैं। इस बीच अगर वह बीमार पड़ती है तो जिस बेटे के पास होती हैं उसके घर में बोझ बन जाती हैं। कितनी बार मझली बहू को कहते सुना कि “अम्मा पता नहीं क्यों हमेशा मेरे पास आकर बीमार पड़ जाती हैं। अम्मा की दवाई और फल फ्रूट का तो खर्च कोई देगा नहीं, यह तो हमारा एक्स्ट्रा खर्चा होता है।” सावित्री देवी इन बातों का दंश चुपचाप सह कर आंसुओं को पी कर शांत हो जाती हैं।



एक दिन स्वयं उनको अपनी पीड़ा सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने पति की डायरी को निकाला और उसके एक पन्ने पर अपने हाथों से अपने दर्द को बयान करने लगीं। बिल्कुल इस तरह जैसे अपने पति से अपनी पीड़ा बता रही थीं। उन्होंने लिखा- ” आप कहते थे यह तुम्हारा घर है ।आज बताओ कहां है मेरा घर ? वह घर आपके तीनों बच्चों ने मिलकर बेच दिया जिसमें आपके सपने आपकी यादें हमेशा आपको जीवित रखतीं । जब भी मैं आपसे कहती कि एक औरत का घर कहां होता है? मायके में होती है तो ससुराल उसका घर, कह कर भेजा जाता है । ससुराल में कोई बात होती है तो उसके मायके को उसका घर कहा जाता है।” तब आप कहते मैं तुम्हारा घर बनवाउंगा । ” जब आपने एक घर बनवाया तब हम बहुत खुश हुए । समय बीतता गया , बच्चे बड़े हुए उनकी शादी हो गई हम सब बहुत खुश थे। लेकिन तभी आप मुझे अकेला छोड़ कर चले गए।

तब भी मैंने खुद को समझाया कि मेरे बच्चे तो हैं , लेकिन बहुत जल्दी इस बात का एहसास हो गया कि मैं गलत हूं । बच्चों ने उस घर को बेचकर उसके रुपए आपस में बांट लिए और साथ में मुझे भी बांट दिया। अब मैं चार चार महीने तीनों के पास रहती हूं। हर चौथे महीने की 31 तारीख को अपना सामान बांधती हूं और दूसरे बेटे के पास पहुंचा दी जाती हूं और जब तक वहां अपना मन बच्चों के बीच में लगाती हूं तभी फिर चौथे महीने की 31 तारीख आ जाती है। न जाने वो कौन सी इकत्तीस तारीख होगी जब भगवान हमेशा के लिए इस तारीख के बंधन से हमें मुक्त करेंगे ।” लिखते – लिखते सावित्री देवी के हाथों से कलम छूट गई और उनके आंसू डायरी के पन्ने पर अपनी छाप छोड़ने लगे। तभी मंटू की आवाज से सावित्री देवी अपने अतीत से बाहर आ गयीं। उसने उनके चेहरे को देखते हुए पूछा- ” दादी आप क्यों रो रही हो? रिनी दीदी तो आपको बहुत प्यार करती हैं।” दादी ने कहा – हां बेटा ।” तभी बाहर कार का हॉर्न सुनाई पड़ा । सरिता ने आकर कहा- अम्मा तैयार हो गईं? भाई साहब आ गए हैं ।” सावित्री देवी की नजर कैलेंडर की तरफ चली गई जहां 31 तारीख उनकी विदाई के लिए तैयार थी।

ऊषा भारद्वाज

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