Moral Stories in Hindi : आजकल अधिकांश रिश्ते मतलब के ही हो गए है। बिना मतलब के निश्छल रिश्ते तो नाम मात्र के ही है। चाहे वो खून के रिश्ते हो या जान पहचान के।
बल्कि खून के रिश्तों में ही ज्यादा मतलब आ गया है।
ऐसा ही कुछ विपिन जी के साथ हुआ।
विपिन जी का चार दिन पहले ही फेफड़ो का ऑपरेशन हुआ था।
दो साल से वो खांसी से परेशान थे। पहले कुछ घरेलू दवाइयां ली लेकिन जब आराम नहीं मिला तो डॉक्टर को दिखाया।
डॉक्टर ने एंटीबायोटिक, खांसी के सिरप और कुछ दवाइयां दी। लेकिन जब उनसे भी आराम नहीं हुआ तो डॉक्टर ने बहुत से टेस्ट करवाए, जैसे ब्लड टेस्ट, सीटी स्कैन, x ray, वगैरा करवाए।
सब रिपोर्ट्स देख कर डॉक्टर ने टीबी की दवाइयां दी।
6 महीना टीबी की दवाइयां लेने पर भी आराम नहीं आया तब बायोप्सी की गई और उसमें पता चला कि उनको फेफड़ो का कैंसर है।
डॉक्टर ने चार दिन पहले ही ऑपरेशन कर के फेफड़ो का कैंसर से प्रभावित भाग शरीर से निकाल दिया।
…साथ ही डॉक्टर ने कह दिया कि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं बचा है क्योंकि कैंसर सभी अंगों में फैल रहा है।
विपिन जी के सभी रिश्तेदारों को खबर दे दी गई जिससे कि जिनको भी विपिन जी से मिलना है वो आ कर मिल जाए।
विपिन जी के दो बेटियां और एक बेटा है। सभी शादीशुदा है। बेटा बहु विपिन जी और उनकी पत्नी का बहुत ख्याल रखते है, बहुत सेवा करते है।
विपिन जी की दोनों बेटियों को भी फोन कर दिया गया कि वो आ कर अपने पिता से मिल जाए।
खबर मिलते ही बड़ी बेटी साधना तो आ गई लेकिन छोटी बेटी आराधना बहाने बनाने लग गई। उसका अपने पिता के अंत समय में भी उनसे मिलने का बिल्कुल मन नही था।
वो अपने पिता से नाराज थी।
विपिन जी की छोटी बेटी आराधना की शादी उनके पास वाले गांव में ही हुई थी इसलिए विपिन जी उसके यहां अक्सर जाते रहते थे। गाहे बगाहे बेटी की बहुत मदद भी करते थे।
बेटी का गांव थोड़ा पिछड़ा हुआ था जहां मूलभुत सुविधाओ की कमी थी इसलिए साग सब्जी, फल, रोजमर्रा की चीज़े भी विपिन जी बेटी के घर पहुंचा देते थे।
बेटी और उसका पति भी विपिन जी से बहुत खुश थे। बेटी भी अक्सर अपने पति के साथ मायके आ जाती थी।
विपिन जी वकील थे, वकालत अच्छी चलती थी इसलिए उन्होंने आर्थिक तौर पर भी बेटी दामाद की बहुत मदद की और बेटी ने भी अपना अधिकार मान कर जब भी जरूरत हुई पिता से रकम मांग ली और पिता ने भी निसंकोच मदद की। बेटा बहु ने इस बात का कभी विरोध नहीं किया।
लेकिन पिछले दो साल से विपिन जी की तबियत खराब होने की वजह से उन्होंने वकालत बंद कर दी तो वो बेटी की मदद नहीं कर पाए।
बेटे से मांग कर बेटी को देना उन्हे उचित नहीं लगा क्योंकि बेटे का भी अपना परिवार है और अब वो दोनों पति पत्नी भी बेटे पर निर्भर हो गए थे।
ऑपरेशन से दो महीने पहले छोटी बेटी ने अपने बेटे का b.pharm. में एडमिशन करवाया था और उसके लिए विपिन जी से रकम मांगी जो विपिन जी नहीं दे पाए क्योंकि अब उनके इलाज में ही पैसा बहुत खर्च हो रहा था।
इसी बात पर छोटी बेटी उनसे नाराज थी कि “पिता ने उसे पैसे नहीं दिए” और उसी की वजह से वो पिता के अंतिम समय में भी उनसे मिलना नहीं चाहती थी।
वो पिता की मजबूरी नहीं समझना नहीं चाहती थी।
“पिताजी, भाई से ले कर भी तो दे सकते है,,,पिता की संपति पर मेरा भी अधिकार है।” ये छोटी बेटी के शब्द थे।
अंततः हार कर विपिन जी के बेटे ने उसे फोन किया और कहा, “जो मर रहे है वो तेरे जन्मदाता है और तुझे बहुत याद कर रहे है। उस इंसान की आखरी इच्छा समझ कर मिल जा।”
तब वो बेटी आई और सिर्फ आधे घंटे के लिए मिल कर चली गई।
अगले दिन पिता के प्राण पखेरू उड़ गए।
……यही रिश्तों की सच्चाई है। जहां पिता से ज्यादा पैसा प्यारा है। जब तक पिता ने पैसा दिया तब तक प्यार था और जब पैसा देना बंद कर दिया तो पिता से कैसा प्यार!!!
जब तक स्वार्थ पुरा होता है तब तक रिश्ता रहता है,,जब स्वार्थ पुरा नही होता तो रिश्ता टूटने में समय नहीं लगता चाहे वो रिश्ता माता पिता और बच्चो का ही हो।
रेखा जैन, अहमदाबाद