मतलबी रिश्ते – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “खाता पीता परिवार, क्या हो गया जो दो बच्चे हैं। दोनों बच्चे भी कम उम्र के ही तो हैं, एक सात साल का और दूसरा ग्यारह साल का।” वैष्णवी के लिए रिश्ता लेकर आई उसकी पड़ोस की चाची, जिनकी बुरे वक्त में वैष्णवी के पापा ने बहुत मदद की थी, वैष्णवी के पापा से कह रही थी।

“भाईसाहब हमें भी ये सब कहते हुए कोई अच्छा थोड़े ना लग रहा है। वैष्णवी के लिए आने वाले रिश्ते उसके गहरे साॅंवले को देखते ही मना हो जाते हैं। इस रिश्ते में उनकी भी अपनी जरूरत है। आपलोग एक बार मिल लीजिए, फिर जैसा ठीक लगे।” पड़ोसन चाची वैष्णवी के माता पिता से कहकर चली गई।

“काश वैष्णवी को उसके मन मुताबिक हमने पढ़ने ही दिया होता।” वैष्णवी के पिता किशनचंद कहकर गहरी सोच में डूब गए।

“आओ इधर आओ”…शादी के बाद दुल्हन के वेश में कमरे में बैठी वैष्णवी दरवाजे से झाॅंकते दोनों बच्चों को देखकर कहती है।

“आप कौन हैं, भाई ने कहा आप माॅं हैं।” छोटा बच्चा वैष्णवी के बगल में बैठता हुआ प्रश्न पूछने के साथ साथ उत्तर भी देता है।

“हाॅं, मैं माॅं ही हूॅं, आओ आप भी बैठो , आप क्यूॅं खड़े हो।” एक नजर बड़े बच्चे पर डाल कर वैष्णवी कहती है।

“पर आप किसकी माॅं हैं, भाई ने कहा आप हमारी नई माॅं हैं।” छोटे बच्चे ने फिर से सवाल और जवाब दोनों ही दिया।

“माॅं तो माॅं होती है, नई पुरानी नहीं होती है…हूं।” दोनों बच्चों को अपने अंक में भरती हुई वैष्णवी ने कहा।

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“चलो अच्छा है, हमारी जिम्मेदारी खत्म हुई। इस लड़की ने खुद ही समझ लिया कि इसे यहाॅं क्यूं लाया गया है।” बाहर बैठे विराट से उसकी माॅं कहती है।

“हाॅं और क्या, अब हम भी सुकून से जी सकेंगे।” विराट की बहन कहती है।

हाॅं, अब मुझे भी बिजनेस पर ज्यादा ध्यान देने का समय मिल सकेगा।” विराट अंदर देखता हुआ माॅं और बहन की बातों पर एक तरह से हामी भरते हुए कहता है।

“लेकिन है तो सौतेली ही न। कल को जब अपनें बच्चे हो जाएंगे, तब की कौन गारंटी लेगा भाई।” बहन ने अपना मंतव्य रखा।

“ये तो विराट ही समझेगा। एक काम कर किसी बहाने से उसका ऑपरेशन करा दे। ना रहेगा बाॅंस, ना बजेगी बांसुरी।” माॅं  ने दही में सही मिलाते हुए कहा।

दोनों की बात सुनकर जो विराट सुकून महसूस कर रहा था, अब बैचेन होकर बाहर चला गया।

वैष्णवी दोनों बच्चों और घर के प्रति अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह से रच बस गई थी। कोई देखकर नहीं कह सकता था कि दोनों उसके कोखजाये बच्चे नहीं हैं। सासु माॅं भी घर के प्रति पूरी तरह निश्चिंत होकर जब तब तीर्थाटन के लिए निकल जाती थी। विराट भी अपने काम में लीन रहता था। कभी कभी वैष्णवी की इच्छा होती थी कि विराट उसे घुमाने , सिनेमा दिखाने ही ले जाया करे। वो भी कभी नई नवेली दुल्हन सी महसूस कर सके। लेकिन वैष्णवी पर जिम्मेदारियाॅं डाल कर सभी अपनी अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में लग गए थे।

इन सब के साथ चार साल पंख लगाकर उड़ता गया। दोनों बच्चे भी इतने बड़े हो गए कि खुद को संभाल लेते थे।

“सुनिए जी, मैं भी माॅं बनना चाहती हूॅं।” एक दिन वैष्णवी ने विराट के सामने अपनी इच्छा बताई।

“माॅं बनना चाहती हूॅं का क्या मतलब।” विराट बात समझता हुआ अनमना हो कर पूछता है।

“वो मैं भी बच्चा चाहती हूॅं।” वैष्णवी ने शरमाते हुए कहती है।

“बच्चा, दो दो बच्चे तो हैं ही।” विराट झुंझलाते हुए कहता है।

“जी वो”…वैष्णवी को अपनी बात कहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे।

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वैष्णवी की बात सुनकर विराट सोच में पड़ गया। उसे अपनी माॅं, बहन की कही बात याद हो आई कि कभी ना कभी उसे भी अपने बच्चे की चाहत होगी। लेकिन उसके चेहरे पर इत्मीनान की मुस्कुराहट आ गई और मुस्कुराता हुआ वो बाहर चला गया।

“आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया।” विराट के सामने डॉक्टर 

का रिपोर्ट रखते हुए वैष्णवी ने पूछा।

“क्या है ये, क्या किया है?” विराट अनजान बनते हुए पूछता है।

“इतना बड़ा धोखा किया आपने। आपने मेरे पेट दर्द और अपेंडिक्स की आड़ में मेरा ऑपरेशन करवा दिया। अब मैं कभी माॅं नहीं बन सकती। आपने दिल के नहीं सिर्फ मतलब के रिश्ते ही बनाए।” वैष्णवी रोते हुए कहती है।

“इसमें मतलब की क्या बात है। इस जमाने में दो बच्चे काफी हैं। मुझे बच्चों के लिए माॅं चाहिए थी।” विराट ने अकड़ते हुए कहा।

“और साथ में खुद के लिए भी एक औरत। ये भी कहिए आप।” वैष्णवी चीख कर बोली।

“आज से मैं आपके इस मतलबी रिश्ते को खत्म करती हूं। अब सिर्फ मेरे बच्चों के साथ ही मेरा दिल का रिश्ता रहेगा। रहूंगी तो इसी घर में जिससे आपलोग और किसी लड़की की जिंदगी बर्बाद ना कर सके। लेकिन आप लोगों के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा। मुझे किसी मतलबी रिश्ते का बंधन नहीं चाहिए। सिर्फ अपने बच्चों का साथ चाहिए।” अपने कपोलों पर आ गए अश्रु पोछती हुई वैष्णवी अपने आजू बाजू खड़े दोनों बच्चों का कसकर हाथ पकड़ती हुई कहती है।

#मतलबी रिश्ते

आरती झा आद्या

दिल्ली

 

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