ममतालय – सरला मेहता

बड़े से मैदान में क्रिकेट खेल रही दो टीमें ,,, ए में हैं मि पिल्लई का पदम, खान साहब का, भिसे जी का यश,देसाई जी की दिव्या,पॉल मेम का जॉन और चटर्जी बाबू की मौली। शेष बचे भजनसिंह दा बंटी, तिवारी जी का पंकज,,,इसी बीच बंटी ने ऐलान कर दिया, ” हाँ कुछ हमारे दोस्त बसेरा अनाथालय से मेरी  बी टीम में।”

छुट्टियों के चलते बच्चे नित नए खेलों में व्यस्त रहते। 

शहर से लगी इस छोटी सी कॉलोनी में कई परिवार मिलजुल कर रहते हैं। मानो भारत का प्रतिरूप उतर आया हो। जाति धर्म भाषा की अनेकता में भी एकता के दर्शन होते हैं। सहज से पारिवारिक माहौल में परस्पर सुख-दुःख के भागीदार बनना सबकी आदत में शामिल हो गया है। सच भी है , पड़ोसी पहले और रिश्तेदार बाद में पहुँचते हैं।

सारे त्यौहार धूमधाम से मनाए जाते। गणेश चतुर्थी के पूर्व ही भिसे ताई का तगादा शुरू हो जाता,” सुनो जी,आज  सामान ले आना वरना मोदक कब बनाऊँगी?”  बीस दिसम्बर से ही तिवारी जैसे शाखाहारी जॉन मेम को इत्तला करना नहीं भूलते,” देखिए जी , केक में अंडे बीयर वगैरह मत डालना हाँ।” रोशगुल्ले की याद आए तो चटर्जी मोशाय के घर पर धावा। दक्षिण भारतीय व्यंजन तो पिल्लई लोगों के यहाँ रोज का ही भोजन है। खान साहब ईद पर सिवइयां की पार्टी देना आज तक नहीं भूले।



   इन सारी खुशियाँ और उत्सवों के परे एक कोने वाला यशोदा आंटी का घर। आंटी बेसहारा बच्चों को आश्रय ,खाना, कपड़े स्कूल की सुविधाएं मुहैया कराती हैं। एकाकीपन से निज़ात पाने इससे अच्छी युक्ति क्या हो सकती है,बीस पच्चीस बच्चों की माँ बन जाना। कालोनी के बच्चे सोचते,” काश हम इनके लिए कुछ कर पाते। बंटी तो इसी पर अड़ा है,”क्यों न एक एक बच्चा कालोनी वाले गोद ले लें।”

यूँ तो बसेरा में बच्चों को कोई तकलीफ़ नहीं पर अपनों का प्यार,,,। मिले हुए तमाम उपहार जरूरतें तो पूरी करते किन्तु बच्चे ख़ुद को भिखारी सा महसूस करते। याचना का भाव उनके चेहरे पर झलकता है । और कालोनी वाले दोस्तों के पास भी इसका कोई इलाज़ नहीं था। कहाँ से लाए इन मासूमों के लिए माँ पापा व दादा दादी का प्यार ? स्कूल से कालोनी वाले बच्चों को मातृदिवस पर एक वृद्धाश्रम ले जाते हैं।

वृद्धजन परस्पर अपने दुखड़े सुना सांत्वना देते बैठे हैं। कई तुड़ीमुड़ी तस्वीरें लिए आंसू बहा रहे हैं। बच्चे समझ नहीं पा रहे कैसे व कहाँ से ख़ुशी लाए इनके लिए?

खिलखिलाते बच्चों को देख झुर्रीदार पोपले चेहरों पर क्षण भर को ही सही मुस्कान खिल जाती है। ये बच्चे अपने नाटक आदि दिखा चले जाएँगे, फिर वही ढाक के तीन पात।



बच्चे नटखट व भावुक होते हैं।लेकिन उनका दिमाग़ भी कम्प्यूटर सा तेज ही चलता है। जो नहीं कर पाते बड़े वो बच्चे कर गुज़रते हैं।टीम के नेता पदम व मौली दोनों अपना प्लान बताते हैं, ” देखो,हम सोच रहे हैं कि बच्चे और बूढ़े सभी को मिला कर परिवार,,,।” सारे बच्चे बीच में बात काटते हैं, ” हाँ हाँ, हम समझ गए। क्यों न ये दो घर एक हो जाए।” मौली बोली ,”इन सबको एक दूसरे से वाकिफ़ होना ज़रूरी हैं।क्यों न सबके साथ एक नाटक खेला जाए। इसी बहाने इन्हें एक दूसरे की अहमियत समझ में आ जाएगी।

शुरू होता है एक नया सिलसिला।एक संदेशप्रद नाटक का प्लॉट गढ़ा जाता है।सबके साथ पारिवारिक नाटक का अभ्यास किया जाता है। बच्चे बूढे सब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

नाटक के लिए यशोदा आंटी और आश्रम के व्यवस्थापक मुख्य अतिथि हैं। पर्दा खुलता है, मंच पर शेर दादा व हाथी नाना विचार मग्न बैठे हैं। अन्य जानवर भी मुंह लटकाए राजाजी का फ़ैसला सुनने को आतुर हैं। वैसे भी बच्चों की चिंता उन्हें खाए जा रही है। बिना बड़े बूढ़ों से सलाह मशविरा किए मासूम बच्चों को होस्टल भेजने की ग़लती जो कर बैठे।

शेर दादा , “ख़ामोश !अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।”

हाथी नाना,”हाँ दादा,जो नहीं माने बड़ो की सीख ले ठीकरो मांगे भीख।”

शेर दादा दहाड़े,अरे इनकी दादी और नानी ने तो सब जिम्मा ले ही रखा था। प्यार से पहाड़े और बारह खड़ी भी सिखा दिए थे। “



हाथी नाना,”पर दादा ये तो बच्चों को सूट बूट वाला बनाना चाहते थे ना।बेचारी नानी कितने अच्छे से संस्कार सिखाती थी,।” अब भुगतो। अरे वहाँ जाकर बीड़ी सिगरेट भी ,,l”

सारे जानवर मिमियाते एक स्वर में बोले,” माफ़ कर दो अन्नदाता। अब बस हमारे बच्चों को आप बुजुर्ग ही मिलकर अच्छे इंसान बनादो।”

दादा और नाना एक साथ गरजे,” ठीक है, हमें ही कुछ करना होगा। वरना हमारा भी हाल इंसानों जैसा होने में देर नहीं लगेगी। रोज़ ही अख़बार में पढ़ते हैं,,,एकल परिवार के चलते बच्चे कितने बिगड़ रहे हैं।चलो जब जागो तब सवेरा।”

तालियों की गड़गड़ाहट के साथ परदा गिरता है।

यशोदा आंटी मैनेजर सा के साथ चर्चा करने लगती है।और उन्हें भी

 बचपन व पचपन का मिलन अच्छा लगता है।

इस तरह नाटक में रोल निभाते हुए सबको समझ आ जाता है कि सबकी ख़ुशी का राज क्या है ? कालोनी के बच्चे गरम लोहा देख चोंट करने में पीछे नहीं रहते। सुझाव रखते है कि अनाथालय तथा वृद्धाश्रम मिला कर ममतालय बना दिया  जाए,,,यही इस समस्या का समाधान है।ऊपर से खर्च कम और काम चोखा। वृद्वजनों के अनुभव किस दिन काम आएँगे?और कई परिवार भी बन जाएंगे। सब इस सुझाव का एक मत से समर्थन करते हैं। सबकी सहमति से इस नए घर का नाम ममतालय रखने का निर्णय लेते हैं।

सरला मेहता

इंदौर

 

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