Moral Stories in Hindi : मुदित जब दो साल का था तब उसकी माँ का देहांत हो गया था। लोगों की सलाह पर उसके पिता ने दूसरा विवाह किया ताकि मुदित को एक माँ का प्यार मिल सके।
कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन कुछ दिनों बाद से ही मुदित का व्यवहार बदला-बदला सा नजर आने लगा।
कुछ ही दिनों बाद उसकी नई माँ सुकन्या से एक बेटी (शुभ्रा) पैदा हो गई। लोगों ने मुदित के कान भरने शुरू कर दिए और मुदित उनके बहकावे में आने भी लगा था।
कुछ दिनों से वह अपनी माँ और बहन से दूर दूर रहने लगा था।
उसके पिता धीरेंद्र जी जब पूछते तो कुछ ना कुछ बहाना बना कर बात को टाल देता था।
एक दिन मुदित का एक खिलौना सुकन्या ने उठाकर शुभ्रा को खेलने के लिए दे दिया, तो मुदित ने शुभ्रा को धकेलकर अपना खिलौना छीन लिया।
सुकन्या ने धीरेंद्र जी की ओर देखा लेकिन उन्होंने जब कुछ नहीं कहा, तो वह भी चुप रह गई।
शुभ्रा धरती में पलटकर जोर-जोर से रोने लगी थी, तब सुकन्या ने उसको गोदी में उठाकर गले से लगाकर चुप कराया।
सुकन्या अपनी बेटी के साथ-साथ मुदित का भी बहुत ध्यान रखती थी।
वह जितना शुभ्रा को चाहती थी उतना ही मुदित को भी चाहती थी लेकिन ना जाने मुदित के मन में ही कोई फितूर बात बैठ गई थी।
एक अन्य दिन जब मुदित बिना टिफिन के ही स्कूल जाने लगा था तो सुकन्या ने आवाज लगाकर उसे रोका और टिफिन लेकर जाने के लिए कहा।
मुदित ने चीखते हुए कहा,,, “आप अपनी बेटी का ध्यान रखिए। मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ।
मेरी माँ बनने की कोशिश मत कीजिए आप!”
“बेटा मैं तुम्हारी माँ बनने की कोशिश नहीं कर रही रहीं हूँ, बल्कि मैं बहुत पहले ही माँ बन चुकी हूँ।”
सुकन्या के ऐसा बोलने पर मुदित पैर पटकता हुआ बाहर निकल गया।
सुकन्या यह बात जब अपनी सास मालती जी से कहती तो उनका जबाव होता,,, “तुम ही बिन माँ के बच्चे पर ध्यान नहीं देती होगी और हाँ दोगी भी क्यों, क्योंकि तुम तो खुद ही एक बेटी की माँ बन गई हो। अपना बच्चा पैदा होने के बाद, पराए बच्चे को भला कौन लाड़-प्यार करता है!”
कभी कभी वह अपने पति धीरेंद्र जी से भी कहती तो उनका कहना था,,, “सुकन्या तुम अपना फर्ज निभाओ। बाकी सब बातें तुम ईश्वर के ऊपर छोड़ दो।”
सुकन्या ने भी अब सारी बातें ईश्वर की मर्जी समझकर स्वीकार कर ली थी। जैसा भी चल रहा था हर बात को अपने आदत में उतारने लगी थी।
कुछ समय इसी तरह बीत गया। दोनों बच्चे अब काफी बड़े हो चुके थे।
सुकन्या ने भी अपनी तरफ से मुदित को मनुहाने का प्रयास करना छोड़ दिया था। धीरेंद्र जी के कहे अनुसार, दोनों बच्चों के प्रति बस अपना फर्ज समान रूप से निभा रही थी।
एक दिन स्कूल में खेलते हुए मुदित बेहोश होकर गिर गया। उसको स्कूल से ही अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार करने के बाद उसकी मशीनरी जांच करवाने की सलाह दी। अस्पताल प्रबंधन द्वारा उसके माता-पिता को भी खबर कर दी गई थी।
खबर मिलते ही वे भी फौरन अस्पताल पहुँच गए थे।
जांचोपरांत, डॉक्टरों ने बताया कि मुदित का यकृत (लीवर) खराब है।
यह बात सुनकर मुदित के माता-पिता बहुत घबरा गए थे।
तब डॉक्टर्स ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा,,, “आप घबराएँ मत, हौसला रखें, लीवर का ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। हमारे यहाँ पिंचानवे प्रतिशत से अधिक सफल लीवर ट्रांसप्लांटेंशन किए जा चुके हैं।
बस यकृत दान करने हेतु जल्दी से जल्दी इच्छित दानदाता मिल जाना चाहिए।”
डॉक्टर की बात सुनकर सुकन्या बोल पड़ी,,, “डॉक्टर मेरा लीवर चेक करके मेरे बेटे को ट्रांसप्लांट कर दीजिए। मैं एक लीवर के सहारे जिंदा रह लूंगी।”
धीरेंद्र जी सुकन्या को बहुत मना करते रहे कि तुम्हारी भी जिंदगी है, तुम कमजोर हो जाओगी। लीवर का बंदोबस्त तो कहीं ना कहीं से हो ही जाएगा।
लेकिन सुकन्या ने किसी की एक भी ना सुनी, वो अपनी जिद पर अड़ी ही रहीं।
तत्पश्चात डॉक्टरों ने चेक करके जब सब कुछ सही पाया तब सुकन्या का यकृत मुदित को ट्रांसप्लांट कर दिया गया।
अब मुदित पहले जैसा स्वस्थ्य होकर अपनी पढ़ाई-लिखाई खेल-कूद करने लगा था।
सुकन्या ने मुदित को यह बात बताने से, सबको मना कर रखा था लेकिन फिर भी मुदित को यह बात कहीं ना कहीं से पता चल ही गई थी।
मुदित अपने व्यवहार पर काफी शर्मिंदा था लेकिन फिर भी उसकी हिम्मत सुकन्या के सामने जाने की नहीं हो रही थी।
अपनी बहन के साथ भी वह बहुत अच्छे से रहने लगा था।
इधर कुछ दिनों से सुकन्या की तबियत खराब चल रही थी तब मुदित अपने आप को नहीं रोक पाया! वह दवाएँ लेकर अपनी माँ के पास गया, उनको दवाएँ दी, फिर उनके गले लगकर बोला,,, “मुझे क्षमा कर देना माँ, मैं तुम्हारा अच्छा बेटा नहीं बन पाया।
जबकि तुमने हमेशा सच्चे दिल से एक अच्छी माँ का हर फर्ज निभाया है।
सुकन्या ने भी मुदित को गले से लगा लिया था।
आखिरकार सुकन्या के प्यार और समर्पण ने मुदित की आँखों से सौतेलेपन का चश्मा उतार ही दिया था और सुकन्या की “ममता” ने मुदित को पिघला दिया था।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश
मानव शरीर में एक ही यकृत (liver) होता है , दो नहीं । गुर्दा या वृक्क या kidney दो होते हैं जिनमें से एक donate किया जा सकता है । यकृत का कुछ अंश donate किया जा सकता है क्योंकि यह regrow कर सकता है ।