मझली बहू – संध्या त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

 राघव ओ राघव कहाँ गया….. मझली बहू मालती , जरा देखो तो अपने जेठ जी को किसी से अंदर बुलवा दो…. पंडित जी इंतजार कर रहे हैं सासु माँ ने मझली बहू मालती को आवाज देकर कहा ……

तुम्हारी जेठानी जी पूजा में बैठकर जेठ जी का इंतजार कर रही है……! हाँ – हाँ माँ जी बुलवाती हूँ… भैया (जेठ जी ) को किसी से ……मालती ने जवाब दिया….!

 माँ जी भैया तो बाहर नहीं है वो किसी काम से बाजार गए हैं …..ये ( पतिदेव)  है इनको भेज दूँ …..?? पूजा में मैं और ये बैठ जाएँ क्या …. ?

पति पत्नी जोड़े में बैठकर दान पुण्य करते हैं तो मैं और ये ही कर देते हैं….. वैसे भी पंडित जी को देरी हो रही है …..I मालती ने उत्सुकता दिखाते हुये अपनी इच्छा बताई….I

 अरे नहीं नहीं अनर्थ हो जाएगा…. मझला बेटा और मझली बहू के हाथों से किया गया दान-पुण्य उन तक नहीं पहुंचेगा ….

उनको कोई लाभ नहीं होगा उन्हें मोक्ष तक नहीं मिलेगा… यह सब दान-पुण्य और पूजा -पाठ का का काम या तो बड़ा बेटा या छोटा बेटा कर सकते हैं…..! जल्दी से फोन कर दो राघव जल्दी आकर पूजा-पाठ का काम पूर्ण करें….!!

 यह वाक्य को सुनते ही मालती कब अतीत की स्मृतियों में खो गई उसे पता ही नहीं चला ……I

 मनोज गाड़ी अंदर रखकर गेट में ताला लगा देना बेटा , हाँ माँ बोल कर मनोज जो भी काम करते रहते उसे रोककर दरवाजा बंद करने चले जाते थे…….तीन भाइयों में मनोज मझला बेटा स्वभाव से शांत , सुंदर… माँ बाप का आज्ञाकारी बेटा….! यही कारण था

कि घर के छोटे-मोटे काम बड़े बेटे और छोटे बेटे को ना बोल कर मझले बेटे मनोज को ही बोला जाता था और वह भी बिना बराबरी किए आज्ञाकारी पुत्र होने का कोई भी कसर नहीं छोड़ते ….घर के हर कार्य को बड़े लगन से करते हैं….I

 मनोज की शादी मालती से हुई थी साधारण नाक नक्श वाली लड़की मालती ससुराल में घर के कामों को बखूबी निभाती थी , मालती की जेठानी देखने में सुंदर थी अतएव वो थोड़ा अपनी सुंदरता पर घमंड में रहती थी …. मालती की देवरानी मालती की अपेक्षा ज्यादा सुंदर तो नहीं थी

पर उसे छोटी बहू होने के कारण सास ससुर का विशेष स्नेह प्राप्त था …..कुल मिलाकर घर का सारा काम और जिम्मेदारी मझली बहू और मझले बेटे पर ही थी… जिन्हें मालती भी मनोज की भाँति बखूबी निभा रही थी ….I प्रतिदिन खाना बनाने से लेकर खाना परोसने तक की जिम्मेदारी मालती पूरी श्रद्धा और प्यार से करती थी । 

 सरकारी नौकरी कर रहे हैं मनोज ने कभी व्यक्तिगत सोच नहीं रखा हमेशा परिवार के बारे में सोचने वाले मनोज ने भाइयों से भी कभी तुलना नहीं की …..!! मालती मनोज को भविष्य के लिए पूँजी जमा करने को कहती थी .. पर मनोज हमेशा माँ बाबूजी है ना …..वो हमारे बारे में अच्छा ही सोचेंगे….. बोल कर टाल देते थे …और मालती इसलिए भी चुप हो जाती थी की कहीं संयुक्त परिवार के विघटन का कारण वह स्वयं ना बन जाए…..।

 समय बीतने के साथ-साथ ससुर अस्वस्थ्य रहने लगे । परिवार में उनका काफी धाक था… सभी उनकी बहुत सम्मान किया करते थे…. पर नियति के आगे मजबूर… बीमारी की वजह से उनकी मृत्यु हो गई …..!! दुख तो पूरे परिवार को था पर शायद सबसे ज्यादा दुख मालती और मनोज को ही हुआ क्योंकि उन दोनों ने ही बीमारी के दौरान देखभाल और सेवा की थी …..।।

 मालती सोचने पर मजबूर हो गई ये कैसी विडंबना है जिंदगी भर बाबूजी को खाना-पीना मैंने अपने हाथों से बना कर खिलाया पिलाया और आज मरने के बाद मेरे ही हाथों से किया गया दान पुण्य उन्हें नहीं मिलेगा….. मझले बेटे और मझली बहू के हाथों से किया गया

दान पुण्य , तर्पण से बाबूजी को संतुष्टि नहीं होगी …उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी….! और जो एक टाइम का भोजन भी नहीं कराया….. वह सिर्फ पैदाइशी बड़ा बेटा हो उनके हाथों से बाबूजी मरने के बाद खुशी-खुशी भोजन कर लेंगे….. खैर….!!

जब बाबूजी द्वारा दिया गया बच्चो को आशीर्वाद हो या प्रॉपर्टी ….तीनों बच्चों में समान रूप से बांटी जाएगी तो बच्चों द्वारा बाबूजी के क्रिया कर्म में मझले बेटे की उपेक्षा… मालती के समझ से परे थी..!

 धार्मिक कार्यों में दखलअंदाजी करना उचित नहीं समझा मालती ने , और चुपचाप कार्य को संपन्न होने दिया…..।

 मन ही मन मालती ने मुस्कुरा कर कहा ….मैं जानती हूँ बाबूजी आपको मेरे हाथों का खाना बहुत पसंद है… हम पति-पत्नी हर वर्ष पितृपक्ष में वो सभी कार्य करेंगे जो बड़े बेटे या छोटे बेटे करते हैं….. ।

बस आप अपना  “आशीर्वाद ” हम पर बनाए रखिएगा…!

 अरे कहाँ खो गई मालती सिर्फ सोचते रहने से काम नहीं चलेगा अब तो जो हुआ वो हो ही गया ….! अब आगे भी तो काम संभालना है ना…. रिश्ते की बड़ी ननद ने मालती की तंद्रा भंग की…… हाँ दीदी  आप चलिए , मैं आ रही हूँ रसोई में……..!!!

मालती के चेहरे पर दृढ़संकल्प और आत्मविश्वास साफ दिखाई दे रहा था …।

 ये मेरे अपने व्यक्तिगत विचार है… मेरा  आशय किसी भी धार्मिक नियमों का उल्लंघन करना नहीं है …!

( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना )

साप्ताहिक विषय — # आशीर्वाद

  श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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