मजदूर या मजबूत – गोविन्द गुप्ता

मजदूर शब्द आते ही सर पर अंगोछा बंधे चेहरे पर झुर्रियां और कुछ सामान ढोते या ठेली चलाते मजदूर याद आ जाते है मुम्बई दिल्ली जैसे शहरों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजगार की तलाश में आये मजदूरों की संख्या लाखो में है,लेकिन सब कुछ न कुछ काम पाकर खुशी पूर्वक जीवन यापन कर रहे है,नमक रोटी ही सही पर परिवार के लिये मेहनत करते है चोरी नही,

सब ठीक ठाक चल रहा था अचानक विदेशों में एक वायरस विमारी के चलते लोकडाउन लग गया भारत मे भी चेतावनी दी गई कि कोई देश मे नही आयेगा जो विदेश  में है पर चोरी छुपे बहुत से विदेशी आ चुके थे इस भयंकर वायरस के साथ केस लगातार बढ़ने लगे तो सरकार के जिम्मेदार लोग चिंतित होने लगे,भारत जैसे बड़े देश जहां गरीबो की संख्या इतनी बड़ी हो वहाँ लाकडाउन शब्द सुना भी नही था किसी ने,



अचानक देश मे लाकडाउन लगा दिया गया जो जहां था वही रह गया और घर भागने की जल्दी हुई क्योकि सभी फैक्टरी बन्द और मार्किट बन्द आखिर कितने दिन खाते वह मजदूर कुछ पैसे थे तो चल पड़े पैदल ही क्योकि बस अड्डे भरे पड़े थे ,किसी को 500 तो किसी को 1000 किमी चलना था,

पर मजदूर की हिम्मत तो देखो परिवार सहित चल पड़े समान सर पर उठाकर मीडिया  में जोरशोर से यह मुद्दा उठने लगा लेकिन सरकार जब तक व्यवस्था करती तब तक रास्ते भर गये मजदूरों से साथ में वायरस भी चल रहा था,

मजदूरों की यह दशा देख आंसू निकल पड़ते थे छोटे बच्चे नङ्गे पैर तपती धूप में ,

रास्ते मे कुछ स्वयंसेवी मिलते थे जो भोजन या अन्य सामिग्री दे देते थे नही भी मिलता तो भी कदम कमजोर नही पड़े आखिर मंजिल को पा ही गये पर इतिहास बन गया इतने बड़े पलायन का,

यह मजदूर ही थे जो घर पहुंच गये अगर ac में बैठे लोगों को यह दिन देखना पड़ते तो रास्ते मे ही दम तोड़ देते,

मजदूर तो रोज पैदल चलने धूप में रहने का आदी था न शुगर न ब्ल्डप्रेशर, न कब्ज की शिकायत बस मेहनत ही मेहनत,,

इसी को कहते है मजदूर यानी मजबूत🥰

इन्ही मजदूरो में एक परिवार था रजनी का जो गर्भवती थी और एक साल की बच्ची को गोद मे लेकर चल रही थी कि अचानक रास्ते मे लेबर पेन शुरू हो गया तो रजत। जो उसका पति था पर साथ कोई महिला नही थी आसपास भी कोई गांव नही था देखकर निराश हो गया पर रजनी ने कहा आप चिंता न करे आपके हांथो से ही यह बच्चा आयेगा जैसा कहूँ करते रहना  धोती से चारो ओर घेरा बनाकर रजत ने डिलीवरी कराई और एक रात वही आराम की अगले ही दिन भले ही कदम धीरे धीरे पड़ रहे हो पर रजनी मंजिल की ओर चल पड़ी उम्मीद ओर आशा के साथ उमंग भी खुशी भी,,🥰

लेखक गोविन्द

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