बहु,,,,,तेरी मां कैसी है ???
सुना है कि जब से तेरे पिताजी गए हैं तब से बिल्कुल अकेली हो गई है,,,ना तो कुछ खाती है और ना ही खुद का ख्याल रखती हैं…..
अभी-अभी मायके से आई बहुरानी सुरभि से सासू मां सुधाजी बोली……
अपनी तेज तर्रार सासू मां के मुंह से ऐसी बात सुन सुरभि एक पल को तो अचंभित रह गई फिर अगले ही पल उनसे बोली….
हां मम्मी जी…….
मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती……
अब तक पापा थे तो कोई चिंता नहीं थी लेकिन जब से पापा इस दुनिया से गए हैं तब से माँ बहुत अकेली हो गई है मैं ही अकेली बेटी हूं जो सुख-दुख है मुझसे ही कह लेती है लेकिन मैं भी अपनी जिंदगी में ऐसी व्यस्त हो गई हूं कि उनके लिए समय नहीं निकल पा रही हूं……
तभी सासू मां सुधाजी ने बहु को अपने पास बुलाया और बोली ….
तू चिंता मत कर…..
हम हैं ना तेरे तेरी मां के साथ….
ला ज़रा अपनी मां से बात तो करा ……जरा फोन लगा सुरभि……
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अपनी सासू मां के चेहरे को देख रही थी बहू कि आज सासू मां को क्या हो गया है आज सूरज कहां से निकला है जो यह ऐसी बहकी बहकी बातें कर रही है पूरे दिन मुझे कुछ ना कुछ बोलने वाली सासू मां एकदम से परिवर्तित कैसे हो गई है …..
ला देना लगा करके फोन ……
कब से मैं बोल रही हूं तुझे सासु माँ सुधाजी बोली ……
तभी सुरभि ने अपनी मां को फोन लगाया ……
हां बेटा……कैसे फोन किया…..तू ठीक से पहुंचे तो गई???
हां मां……मैं ठीक से पहुंच गई हूं……
लीजिए मम्मी जी आपसे बात करेंगी……
मम्मी जी का नाम सुन सुरभि की मां विमला जी थोड़ा घबरा गई कि कहीं अब फिर से कुछ पैसों की डिमांड तो नहीं करने वाली सुधाजी या कुछ उनकी बेटी की बुराई तो नहीं करने वाली है अब तो मेरे पति भी नहीं है जो बेटी की समस्याओं को सुलझा दें…….
अब मैं अकेली क्या-क्या देखूँगी …..
अगले ही पल सुधा जी बोली हमने सुना है कि आप बिल्कुल अकेली हो गई हैं …..
ना अपने लिए खाना बनाती है ठीक से ना खुद का ख्याल रखती है…..
सुनिए विमला जी…..
जैसे सुरभि हमारे घर की बहू है उससे पहले वह आपकी बेटी है आपने उसे जन्म दिया है और वह आपकी इकलौती संतान है आप हमारे ही घर रहेंगी…..
कल ही विनोद आपको लेकर के यहां आएगा जितना दिन चाहे उतना दिन रहे…..आपको जब भी मन करे तब अपने घर जा सकती है …..कुछ दिन वहां रह आया करियेगा …..लेकिन स्थाई रूप से अब आप अपनी बेटी के साथ और हमारे साथ इसी घर में रहेंगी…..मेरा भी मन लगा रहेगा हम दोनों मिलकर के भजन कीर्तन कर लिया करेंगे और घर के थोड़ा काम में मदद कर दिया करेंगे ……सुबह के टाइम जाकर के टहल आया करेंगे……
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क्यों सही कहा ना ???
सुधा जी ने अपनी बात खत्म की……
तभी विमला जी बोली…..
अरे नहीं नहीं समधन जी……
आपने इतना कह दिया मेरा दिल गदगद हो गया…….लेकिन हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते हैं तो मैं आपके यहां कैसे रह सकती हूं……..
मैं तो यहीं पर सही हूं……अपने पति के घर जैसे भी हूँ…..
थोड़ी सी जिंदगी है कट जाएगी पर अपनी बेटी के घर नहीं आ सकती ……
आप भी कैसी बातें कर रही है विमलजी…..
किस सदी में जी रही है……
वह समय चला गया……आप ही ने तो अपनी बेटी सुरभि को इस लायक पढ़ा लिखा कर बनाया कि आज वह एक ऐसे ओहदे की नौकरी कर रही है जहां पर पहुंचना हर किसी के बस का नहीं ……
मैं अब आपकी एक भी नहीं सुनूंगी …….
आपको आना होगा ……जितना हक हमारा आपकी बेटी पर है……
उतना उससे ज्यादा हक आप उस पर रखती है…….
कल ही आ जाइए…….आपके कमरे की सारी व्यवस्था मैँ आज ही कर दूंगी ……
ठीक है ……अब मैं आपकी एक भी नहीं सुनूंगी……
सुधा जी ने कहा और अगले ही पल फोन रखकर उन्होंने अपने बेटे विनोद को बुलाया बेटा कल तू अपनी दूसरी मां यानी विमला जी को घर ले आ……
जानती हूं बहुत कमियां है मुझमें …….
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बहुत गलतियां की है…….लेकिन इतनी बुरी नहीं बेटा कि एक मां जो अकेली है उसको इस समय सहारे की जरूरत है जिसका बुढ़ापे का कोई सहारा भी नहीं है …….
उनकी इकलौती बेटी जो हमारे घर पर है क्या हमारा और उसका फर्ज नहीं है कि हम उनकी देखभाल करें …..उनकी सेवा करें…..
मैं भी तो अकेली हूं अगर तू मेरे से दूर चला जाए तो मुझे कैसा लगेगा……
तो उन्होंने भी तो फिर भी को एक बेटा और बेटी दोनों की तरह पाला है बहू को…..
यह सुन विनोद मुस्कुरा दिया …..
वाह माँ……आपने कितनी अच्छी बात कही…..
ठीक है मैं कल ही मम्मीजी को ले आऊंगा और वह हमारे साथ ही रहेंगी…..
सुरभि की खुशी का ठिकाना न था…..उसे अपनी खुशी छुपाये नहीं छुप रही थी ……
उसने आकर के सुधा जी को अपने गले से लगा लिया सुधा जी ने भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली ……
अरे पगली क्यों रो रही है ……मैंने कुछ अनोखा थोड़ी ना किया……..यह तो मुझे तभी सोच लेना चाहिए था जब आज से 6 महीने पहले तेरे पिताजी इस संसार से विदा हुए थे……मैंने तो बहुत देर कर दी ……..
अब जा अपनी मां के आने की तैयारी कर…….अच्छे-अच्छे पकवान बना कुछ ही दिनों में उनकी सेहत पर सुधार करना है…….
जैसे तेरे आने के बाद मेरी सेहत में सुधार आ गया…..
.वैसे ही तो अब तुझे अपनी दूसरी मां का भी ख्याल रखना है…….
सुरभि ने अपने आंसू पोंछे और खुशी-खुशी रसोई घर की ओर चली गई……
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा