जिम्मेदारी – डाॅ संजु झा

कुछ समय पहले  अचानक  से पूरे विश्व  में कोरोना नामक महामारी का तांडव  मच गया था।कोरोना ने बहुत-से परिवारों के सुखद भविष्य  को दुख के अथाह सागर में डुबो दिया।ऐसे समय  में सबसे कठिन  परीक्षा डाक्टरों की थी,जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते हुए  अपने कर्त्तव्य  को सबसे ऊपर रखा।कितने ही डाॅक्टरोंने अपने फर्ज  निभाते हुए अपनी जान दे दी!

प्रस्तुत कहानी   विदेश में बसे एक ऐसे ही  जिम्मेदार  भारतीय डाॅक्टर अमित की है।इस कहानी में  वास्तविकता और कल्पना का पुट है।

अमित की मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी।माता-पिता की प्रेरणा से उसकी जिन्दगी में दूसरों की सेवा-भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी।पढ़ाई पूरी होने पर  कुछ समय अमित ने दिल्ली के अस्पताल में नौकरी की,परन्तु उसे अपने काम से सन्तुष्टि नहीं मिल रही थी।उसके ख्वाब  बहुत  बड़े थे।वह कुछ दिनों के लिए  विदेश जाकर अपने क्षेत्र  में विशेषज्ञता हासिल करना चाहता था।उसने कई देशों में इसके लिए  आवेदन  भी दे रखे थे,जहाँ पर पढ़ाई  के साथ-साथ वह नौकरी भी कर सकता था।

संयोगवश उसे इटली से पढ़ाई का ऑफर आ गया।अब उसके सामने सबसे बड़ी समस्या माता-पिता को मनाने की थी।आखिरकार एक दिन हिम्मत करते हुए उसने कहा-“पिताजी! मुझे इटली में पढ़ाई  और नौकरी दोनों के अवसर मिल रहे हैं।कुछ वर्ष  बाद  फिर भारत वापस आ जाऊँगा।”

पिता कुछ कहते,इससे पहले ही अमित की माँ बोल उठी-“बेटा!अपना देश छोड़कर तू कहीं नहीं जाएगा।हमलोग  तुम्हारे वगैर कैसे रहेंगे?अपने देश में ही सबकुछ है।”

अमित ने प्यार से माँ को समझाते हुए  कहा -” माँ!मेरा सपना है विदेश जाकर ऊँची तालिम हासिल करना।इससे छोटे भाई-बहन का भी भविष्य उज्ज्वल होगा।कुछ समय बाद  फिर वापस स्वदेश लौट आऊँगा।मेरा सपना  मत तोड़ो।”

आखिरकार अमित  ने माँ से अपनी बात  मनवा ही ली।विदेश जाने की सारी औपचारिकता पूरी होने में कुछ समय लगें।उसके बाद विदेश जाने के नियत दिन उसके माता-पिता,भाई-बहन सभी उसे अन्तरराष्ट्रीय  दिल्ली हवाई अड्डा छोड़ने गए। सभी ने नम आँखों से उसे विदेश विदा किया।




इटली पहुँचकर उसे सपने -सा अनुभव हो रहा था।वहाँ का स्वच्छ वातावरण उसके मन को मोह रहा था।कुछ ही दिनों में वह वहाँ के वातावरण में रम गया।देखते-देखते उसकी पढ़ाई  पूरी हो गई  और इटली के लोंबार्डी शहर में उसकी नौकरी भी लग गई। पहले दिन वहाँ का अस्पताल देखकर वह मन-ही-मन  सोचता है-“यहाँ के अस्पतालों में कितनी साफ-सफाई है!जब वह अस्पताल के अन्दर पहुँचा तो वहाँ की व्यवस्था देखकर आश्चर्यचकित रह गया।एक -से-एक आधुनिक उपकरणों से अस्पताल सुसज्जित था।जिन उपकरणों की वह कल्पना करता था,वे सब यहाँ मौजूद  थे।”

फिर उसे ख्याल आता कि यहाँ की आबादी भी कम है।यहाँ की स्वास्थ्य सेवाएँ भी दुनियाँ में दूसरे नम्बर पर है,तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है!”

अमित तन्मयता से अस्पताल  में अपनी सेवाएँ देने लगा।वह हर साल स्वदेश आता।इस बीच सुनयना नाम की लड़की से उसकी शादी हो गई, जो पेशे से साफ्टवेयर इंजिनियर थी।पति-पत्नी इटली में नौकरी करने लगें।सुनयना बहुत ही समझदार  लड़की थी।वह डाॅक्टरी पेशे की मजबूरियों को भली-भाँति समझती थी।इस कारण उनका दाम्पत्य-जीवन सुचारु रुप से चल रहा था।समय के साथ दोनों एक बेटा और एक बेटी के माता-पिता भी बन चुके थे। बच्चे स्कूल भी जाने लगे थे।वह

 माता-पिता के लिए  एक जिम्मेदार  बेटा था।उसके सहयोग से उसकी बहन की शादी अच्छे से हो गई और उसका भाई भी अच्छी नौकरी करने लगा।

सबकुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक  से कोरोना नामक काल से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो उठा।अचानक  से चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस का कहर शुरु हो गया।आरंभ  में तो चीन ने काफी मशक्कत के बाद अपने यहाँ कोरोना महामारी पर काबू पा लिया,परन्तु जबतक अन्य देश इसको समझ पाते,तबतक कोरोना का कहर पूरी दुनियाभर  में फैल चुका था।

अमित इटली के जिस शहर लोंबार्डी  में रहता था,वहाँ कोरोना का संक्रमण राॅकेट की गति से फैल रहा था।वहाँ डाक्टरों की जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं थीं।अमित भी दिन-रात मरीजों की सेवा में लगा रहता था।वह मन-ही-मन सोचता -“इतना खुबसूरत देश!इतने खूबसूरत लोग!इतनी साफ-सफाई!फिर ये बीमारी यहाँ कैसे आ गई?”

कोरोना वायरस से  इटली के लोंबार्डी और  बर्गामो शहर सबसे ज्यादा प्रभावित  था।एक-एक दिन में सैकड़ों मौतें होने लगीं।अब अमित  और स्वास्थ्यकर्मियों की जिम्मेदारियाँ काफी बढ़ गईं थीं।सभी डाॅक्टर  दिन-रात सेवा में लगे हुए  थे,परन्तु इटली में बेहतर स्वास्थ्य  सुविधाओं के बावजूद डाॅक्टर और हेल्थकेयर  विशेषज्ञ मौत को रोक नहीं पा रहे थे।बहुत सारे स्वास्थ्यकर्मी भी जान गँवा रहे थे।स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था।




अमित  सारी सावधानियों के साथ परिवार  से केवल आधे घंटे के लिए  दूर से ही मिलने आता था।उस दिन अस्पताल में एक साथ सात सौ मौतें हो चुकीं थीं।इस हृदयविदारक  दृश्य  को देखकर वह दहल चुका था।मरीजों की दयनीय  स्थिति को देखकर  अमित  ने अपनी पत्नी से कहा -” सुनयना! कल से मैं घर नहीं आ पाऊँगा।”

सुनयना -” क्यों अमित?”

अमित -“एक तो अस्पताल में काफी संक्रमित  मरीज हैं,दूसरी बात मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरे कारण तुम और बच्चे भी संक्रमित हो जाओ।अस्पताल  में इंटेंसिव  केयर बेड,मास्क तथा सारे आवश्यक मेडिकल उपकरण खत्म हो चुके हैं।वेंटिलेटर  की भी काफी कमी हो गई है। ऐसी भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई  है कि अब हमें बननेवाले मरीजों को ही चुनना पड़ रहा है।”

संकट की इस घड़ी में विवशता की नदी मुहाने तक आते-आते अपनी रफ्तार खो चुकी थी।विवश से सब अपनी मजबूरियों के शिकंजे में छटपटा रहे थे।सुनयना ने भावविह्वल होते हुए कहा -” अमित!आज से तुम अस्पताल जाना बन्द कर दो।जान है तो जहान है।”

अमित -” सुनयना !समझदार  होते हुए  भी तुम कैसी बातें करती हो?तुम जानती हो कि महामारी के इस संकट में डाॅक्टर अपनी जिम्मेदारियों से मुख नहीं मोड़ सकते हैं।इस बीमारी का बस एक ही इलाज  है,सोशल  डिसटेंसिंग। बस तुम अपना और अपने बच्चों का ख्याल  रखना।” 

उसी दिन  भारत में अपने माता-पिता से बात करते हुए  अमित ने पूछा -” पिताजी!आपलोग कैसे हैं?यहाँ का हाल तो बहुत बुरा है।कोरोना वायरस संक्रमण तो अब भारत में भी फैल चुका है।आपलोग घर से बाहर मत निकलना और कोविड नियमों का पूर्णतः पालन करना।सावधानी ही इस बीमारी की सुरक्षा है।” 

अमित के पिताजी भावुक होते हुए  -” बेटा!हमलोग ठीक हैं।तुमलोगों की चिन्ता लगी रहती है।तुम्हारी माँ तुमलोगों की चिन्ता में परेशान रहती हैं।बस !तुमलोग  सावधानीपूर्वक रहना।”

“जी पिताजी!”कहकर अमित की आँखें भर आईं।उसके मन की उदासी गहराने लगी थी।एक डाॅक्टर होने के नाते बीमारी की भयावहता उसे समझ आने लगी थी।अब अमित  अस्पताल में ही रहकर जी-जान से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहण करने लगा।

वहाँ की स्थिति इतनी भयावह हो चुकी थी कि क्यूबा तथा अन्य देशों से डाॅक्टर और मेडिकल उपकरण मँगाए  जा रहे थे।इन सब के बावजूद स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही थी।इटली के प्रधानमंत्री की आँखों में बेबसी के आँसू दिख रहे थे।चारों तरफ हताशा का माहौल था।प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए  थे।मेडिकल उपकरणों के अभाव में रोज डाॅक्टर और चिकित्साकर्मी भी संक्रमित हो रहे थे।अमित ने परिवार  से दूरी बना ली थी।खुद डाॅक्टर  था ,इस कारण सोशल डिसटेंसिंग का महत्त्व अच्छी तरह समझता था।रोज दस मिनट के लिए  तीन फीट की दूरी से पत्नी और बच्चों को देखकर  लौट जाता था।




अगले दिन अस्पताल में उसके कई साथी डाॅक्टर और चिकित्साकर्मी

 की मौत हो गई। अमित  भी बुरी तरह कोरोना संक्रमित हो चुका था।डाॅक्टर  होने के कारण वह समझ चुका था कि उसके पास  वक्त बहुत  कम है।उसने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से पत्नी और बच्चों को देखने की इजाजत  ली।उसकी इच्छानुसार उसे लेकर एम्बुलेंस उसके घर के दरवाजे पर पहुँची।उसका पूरा शरीर पी पी ई किट से पूरी तरह ढँका हुआ  था,केवल आँखें खुली हुईं थीं।उसने दूर से ही पत्नी और बच्चों को हाथ हिलाकर  अलविदा कहा।सुनयना दोनों बच्चों का हाथ पकड़े हुए  बेबस-सी अमित  को जाते हुए देख रही थी।दोनों बच्चे  दौड़कर पिता से लिपटना चाह रहे थे,परन्तु सुनयना ने दोनों बच्चों को कसकर सीने से चिपका लिया और फूट-फूटकर रो पड़ी।ये  विपदा की कैसी घड़ी थी कि एक पति,एक पिता जीवन की अंतिम घड़ी में भी अपनी पत्नी और बच्चों से भी गले नहीं मिल पा रहे थे?

अमित के अस्पताल  वापस लौटते समय सुनयना ने मन-ही-मन कहा -“अमित!तुमने अपनी जिम्मेदारियों को भली-भाँति निभाई है।हमें तुम पर गर्व  है।अब मैं दोनों बच्चों को तुम्हारे तरह जिम्मेदार  और कर्मवीर इंसान बनाऊँगी।”

 अमित  की हालत देखकर वो रात उसके लिए छटपटाहट और तड़पभरी रात बन गई। अगले दिन अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए  अमित  ने अपने प्राण त्याग  दिए।उसकी दर्दनाक  मौत देखकर उसके डाॅक्टर साथी की निस्तेज आँखें पलक झुकाना भूल गईं और उन्हें ऐसा महसूस हुआ  मानो मन पर बर्फ की सिल्ली का बोझ आ पड़ा हो।

कोरोनाकाल में जान गँवानेवाले सभी मृतक को भावभीनी श्रद्धांजलि।

समाप्त। 

लेखिका -डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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