मैं प्रायश्चित कर रही हूं… : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शांति का मन अशांत था और कुछ दिनों से उसकी बेटी की शिकायतें  करके रिश्तेदार उसे  परेशान कर रहे थे । शांति सोच रही थी कि हर रोज बेटी का बे- लगाम होते जाना अच्छा नहीं है । पैदा होते ही मर जाती तो कौन सा घाटा पड़ जाता दुनिया को । जरूरी तो नहीं था उसका पैदा होना ।

खानदान का नाम मिट्टी में मिला दिया,  धब्बा है धब्बा कुटुंब वालों के लिए । मैं तो तंग आ गई हूं घरवालों की शिकायतें सुन- सुन कर । न यह कहना मानती है और न ही रिश्तेदार चैन  से रहने देते हैं । शांति बड़बड़ाती जा रही थी।  आजकल   शांति के मायके वालों को यह शिकायत थी कि उसकी  बेटी जो कुछ भी लिखती है वह उनके जीवन से संबंधित होता है,  उसे रोकना जरूरी है ।

इसलिए फोन पर  अक्सर उसकी शिकायतें …… शिकायतें ……केवल शिकायतें  सुनने  के लिए मिलतीं , जो शांति के मन में उथल-पुथल मचा देतीं  , लेकिन अपनी उम्र के इस पड़ाव पर आकर लंबे समय तक कोई भी बात  उसे याद न रहती थी और वह फोन पर सुनें सारे शिकवे – शिकायतें भूल जाती  ।  परिणाम स्वरूप उसकी बेटी की  फोन पर शिकायत करके  भड़काने वाले बल खाकर रह जाते । 

 जब से शांति की बेटी शिवा ने लेखन को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया तब से उसने अपने आसपास के विषय लेकर लिखना शुरू कर दिया । कभी -कभी उसका लिखा हुआ विषय इतना व्यक्तिगत हो जाता  कि हर किसी को लगता जैसे कि उसे ही टारगेट किया गया हो । फिर  बहरुपिया रिश्तेदारों की परस्पर  लंबी-लंबी  गुफ्तगू शुरू हो जाती  , और फिर  लंबे वार्तालाप से फोन इतना बिजी हो जाता कि दूसरे लोग अगर फोन करना भी चाहें तो वह कतार में इंतजार ही करते रह जाते । 

अभी सुबह के सात ही बजे होंगे कि फोन की घंटी बजी। समर सिंह ने फोन उठाया दूसरी तरफ से आवाज आई , हैलो,  यह आवाज समर सिंह की बहन माला की थी । माला बोली,  तू ने पढ़ा आज के  अखबार का विशेष परिशिष्ट  ?  अरे ! तेरा तो नाम रोशन हो गया भाई ।  समर सिंह समझ गया कि किसकी बात हो रही है।  उसने कहा,  अभी तो  मैं सो कर उठा हूं । 

मैंने तो अभी तक कुछ भी पढ़ा नहीं है , पर आप ही बता दो क्या लिखा है उसने ? दूसरी तरफ से आवाज आई बड़ी रिसर्च करके लिख रही है वह आजकल ।  समझ लो अब तो वह हमारे घर के मामलों में दखल देने लगी है। माला  ने जैसे आग लगा ही  दी । क्या सच में, सच्ची बताओ ? समर सिंह के  मन में उत्सुकता जाग गई और वह उतावलेपन से बोला । 

मुझे तो इतना गुस्सा आया है कि मैंने गुस्से में आकर अखबार ही फाड़ दिया,  सुन तू  जरूर पढ़ना और पढ़ने के बाद शांति को भी खबर दे देना , माला ने समर सिंह  को  पूरी तरह से उकसा दिया। शांति  की औलाद है ना जिसने इतना आतंक मचाया हुआ है ,अब शांति का जीना हराम कर देना , कहकर माला ने फ़ोन काट दिया । परिणाम स्वरुप शाम तक समर सिंह ने  शांति के कान में  ज़हर घोल दिया और  सब तरह से लानत और गाली- गलौज के बाद फोन काट दिया ।

 शांति गुस्से में भड़की हुई थी इसलिए उसने शिवा को फोन लगाया और पूछा लिखने का मतलब क्या होता है शिवा ?  आजकल  बड़ा उड़ रही है तू ।  अपनी बात पर ज़ोर देते हुए उसने दूसरे  ढंग से फिर पूछा , लिखने का मतलब  क्या यह होता है कि अपने घर की शांति भंग कर लो  ? कौन बेवकूफ है जो अपने घर की बातें लिखता है ? पागल है क्या तू ? शांति गुस्से में थी । शिवा बोली,  अपने घर की बात ?  आपको किसने कहा कि मैं अपने घर की बात लिखती हूं  ?

किसका फोन था ? फिर  वह जोर से हंसी और बोली , अच्छा-अच्छा आपके रिश्तेदारों का फ़ोन आया होगा । उसके बोलने  का ढंग व्यंग्य पूर्ण  था ।  शांति उसकी ज़बानज़ोरी से नाराज होते हुए बोली जो अपने कपड़ों से बाहर होता है ना समाज उसे नंगा कहता है । और मम्मी जो अपने आचरण और चरित्र से गिर जाता है उसे समाज क्या कहता है ?

शिवा ने प्रश्न किया । तेरी ज़बान बहुत चलने लगी है कंट्रोल कर ले । शांति गुस्से में बेकाबू हो रही थी। मम्मी  क्या मैं अब लिखना  ही छोड़ दूं  ? यह तो मुश्किल है न  । अब  जब हर एक की असलियत मेरी समझ में आ गई है तो अब आइना दिखाने का समय कैसे गंवा  दूं  ? यह खाना तो मैं दिखाकर ही रहूंगी । शिवा ने निर्भीकता से कहा।

तूने जो लिखा है ना  वह सब तेरी बदनामी का कारण बन रहा है , शांति ने कहा। आपने पढ़ा,  मैंने क्या लिखा  ? किसकी बदनामी ?   कलम की या उनकी जिनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है  ? मेरे लिखने से किसे मिर्चें लग रही हैं उन लोगों को ? वैसे आप ही  बताना ज़रा  दुनिया में  ऐसी कौन सी बहन है जो  अपने भाई के मर जाने के बाद सबके सामने कह देती है कि – भाई नहीं तो रिश्ता नहीं ।

शिवा ने गुस्से से पूछा । तुझे  किसने कहा यह सब ?  शांति ने पूछा । जिसने मर्ज़ी  कहा हो ।पर  याद करो  यह सब आपने कहा था………..आपने कहा था ।  आपके रिश्तेदारों के भी यही बोल थे । आप सब ने  अपने भाई के मरने पर अपनी भाभीऔर उसके  परिवार की जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा कहा था न ?  

यह तो मुझे  इतनी उम्र गवां कर अब  पता चला ।  बताइए भाई मर  जाए तो …… तो उसके परिवार को अकेला छोड़ देना चाहिए ?  उस दुखद घटना में आपकी विधवा भाभी के दुख को बांटने वाला उस समय  कौन  था  उसके  साथ  ? उसके परिवार का क्या होगा ,यह सोचने  का दायित्व किसका था ?  आप लोगों ने तो कुछ नहीं सोचा सिर्फ पल्ला झाड़ लिया । बहुत नीच कर्म किए हैं आप सबने,   ऊपर से धर्मात्मा बनते हो और धर्म निभाते  समय स्वार्थी हो जाते हो आप लोग । 

इतने बड़े संसार में वह अकेली कैसे जीवन यापन करेगी ? कैसे उसका और उसके परिवार का निर्वाह  होगा किसी को कोई मतलब नहीं ? छि: नफ़रत है मुझे आप सबसे । आप लोगों ने उसे  ताने और उलहाने अलग से  दिए । मैंने सुना था , एक बार आप सबने मिलकर  यह अफवाह फैलाई थी  कि उस  औरत ने बाल कटवा लिए । 

कौन औरत  ? किसकी औरत ? क्या वह औरत आप सबकी कुछ नहीं लगती थी ? ना दुख में , ना सुख में । हर समय उचक-उचक कर बातें करते रहे हो, आप सब भाई – बहन  । 

वास्तविकता  तो अब हमारे सामने आई है । हमें तो यह बताया गया था कि  वह साथ रहना ही नहीं चाहती  थी ।  सच या झूठ ? सब कुछ  मनगढ़ंत  ? हमें  तो कुछ  भी पता  नहीं था । किसी ने इस विषय पर बात ही नहीं की थी कभी । जब भाई नहीं,  रिश्ता नहीं तब वह बाल कटवाए चाहे वह ना कटवाए या मेकअप करें आपको क्या मतलब ?

लद गया आप सब का समय क्योंकि मुझे हर रोज़ आप सबके पाप याद आते हैं । आप सब के सब पापी हो।  कहने के लिए बिरादरी , खानदान , कुटुंब है आपका । छि: धिक्कार है  आप सब पर । कोई मर जाए तो श्रद्धांजलि तक देने नहीं पहुंच सकते आप लोग । किसी के प्रति सांत्वना के दो शब्द  बोलने  से पहले आपकी अपनी जबान तालू से चिपक जाती है ?  इन्सानियत के नाम पर धब्बा हो धब्बा,  आप सब । मैं शर्मिंदा हूं कि मैं आपकी बेटी हूं। सच में मेरे पैदा होने पर भी  लानत है मुझ पर ।

मुझे  दुख है कि  मेरा नाम ऐसे कलंकित निकृष्ट लोगों से जुड़ा है,  जो निहायत स्वार्थी हैं । निराशापूर्ण स्थिति में अब मैं  लेखन के माध्यम से प्रायश्चित कर रही हूं । सच लिखना  ही मेरा प्रायश्चित करने का ढंग है।  एक बात और बता दूं जिसको तकलीफ़  होती है , होती रहे । मैं साफ-साफ कह कर बच जाऊंगी कि  कोई घटना किसी के भी  जीवन से जुड़ सकती है,  यह तो मेरी कल्पना थी । मेरा तो कोई  भी बाल बांका नहीं कर सकता । बस इतना ही कहना था और शिवा ने फोन काट दिया। दूसरी तरफ शांति ने  उसे कोसते हुए कहा ,अच्छा होता कि यह पैदा ही ना होती।

द्वारा -डॉ.विभा कुमरिया शर्मा।

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