मैं तुम्हें देवता कैसे कहूं? – बीना शर्मा: Moral stories in hindi

शाम के वक्त रजनी अपने पति राजीव के लिए चाय लेकर ड्राइंग रूम में आई तो राजीव गुस्से में रजनी से बोला “ले जाओ अपनी चाय मुझे नहीं पीनी सबके सामने मेरा अपमान करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई यदि तुम दीदी की हां मे हां मिलाकर मुझे देवता कह देती तो तुम्हारा कुछ बिगड़ नहीं जाता दीदी भी तो जीजा जी को देवता के समान बता कर उनका कितना सम्मान कर रही थी”पति की गुस्से भरी बात सुनकर रजनी के चेहरे पर फीकी मुस्कान आ गई थी

बेहद खुशहाल परिवार था उसका पति राजीव  बेटा वैभव  बेटी वैभवी और एक ननद संजना भी थी जो शादी के बाद अपने ससुराल में अपने पति संजीव के साथ बेहद खुश रहती थी राजीव एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की जॉब करते थे वैभव और वैभवी भी अपनी शिक्षा प्राप्त करके एक कंपनी में जॉब करते थे राजीव  कंपनी में अच्छी सैलरी मिलने के बाद भी अपने दायित्व अच्छी तरह से नहीं निभाते थे

अपनी सारी तनख्वाह  वे अपने शौक पूरे करने में ही उड़ा देते थे जब कभी रजनी या उसके दोनों बच्चे बीमार हो जाते तब वह उनका उपचार कराने की बजाय उन्हें यह कहकर उनके हाल पर छोड़ देते कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है तुम बीमारी का पाखंड कर रहे हो तब रजनी और उसके दोनों बच्चे दुख में एक दूसरे का सहारा बनकर अस्पताल में जाकर अच्छी तरह से इलाज करवाने के साथ-साथ एक दूसरे की सेवा भी करते ।

     जब कभी राजीव बीमार हो जाते तो अच्छे से अच्छे अस्पताल में जाकर अपना इलाज करवाते तब  रजनी और उसके दोनों बच्चे उसकी बहुत सेवा करते थे पत्नी और बच्चों की निस्वार्थ सेवा देखकर भी राजीव उनके प्रति अपना कोई दायित्व नहीं निभाते थे एक बार बाथरूम में नहाते वक्त  रजनी का पैर फिसलने से गिर जाने के कारण उसके उल्टे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था जिससे उसके हाथ में बेहद दर्द हो रहा था

तब राजीव उसे दर्द से कराहते देखकर उसका मजाक उड़ाते हुए बोला” तुम्हें कुछ नहीं हुआ है अपने हाथ में बैगन भूनकर बांध लो तुम्हारा हाथ ठीक हो जाएगा”पति की बात मानकर जब उसने हाथ में बैंगन भूनकर बांधा तो उसके हाथ में और भी ज्यादा दर्द होने लगा था

दर्द के कारण उसकी आंखों से आंसू निकल आए थे जब वैभव ने अपनी मम्मी की आंखों में आंसू देखे तो वह तुरंत उन्हें अस्पताल लेकर गया और एक अच्छे डॉक्टर द्वारा अपनी मम्मी का इलाज करवाया डॉक्टर ने रजनी के हाथ पर प्लास्टर चढ़ाकर उन्हें सवा महीने के लिए आराम करने को बोल दिया था तब वैभवी ने सवा महीने तक नौकरी के साथ-साथ अपनी मम्मी की बहुत सेवा की थी जिसके कारण  रजनी का टूटा हाथ फिर से ठीक हो गया था।

                एक बार वैभव को टाइफाइड हो गया तो राजीव ने उसका भी इलाज करवाने से मना कर दिया था तब वैभवी उसे एक अच्छे चिकित्सक के पास लेकर गई और उसका अच्छी तरह से इलाज करवाया जिससे कुछ दिनों में  वैभव बिल्कुल ठीक हो गया था। वैभव और वैभवी जब छोटे थे और स्कूल में पढ़ने जाते थे

तब राजीव उनकी फीस देने में भी बहुत आना-कानी करता था तब रजनी अपने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढाकर अपने बच्चों की फीस भरती थी उसके पति खुद तो दोस्तों के साथ कई कई दिनों के लिए रमणीय स्थान पर घूमने के लिए चले जाते थे परंतु, जब कभी रजनी उनसे कहीं बाहर घूमने के लिए कहती तो वह घर के काम का बहाना लगाकर उसे बाहर जाने के लिए साफ मना कर देते थे अपने पति की ऐसी आदतों को देखकर कभी-कभी रजनी का मन बेहद उदास हो जाता था।

       इसके इसके विपरीत उसकी ननद संजना का पति संजीव बेहद जिम्मेदार इंसान था जो अपनी पत्नी के प्रति हर दायित्व खुशी-खुशी निभाता था कभी वह बीमार पड़ जाती तो उसका अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाने के साथ-साथ खुद उसकी सेवा करता था वह उससे जब कहीं घूमने को कहती तो खुद उसे उसकी पसंद के रमणीय स्थान की सैर करा कर लाता था उसके बिना मांगे ही वह उसे उसके घर खर्च के लिए पैसे  दे देता था संजीव की ऐसी आदतों के कारण संजना उसका बेहद सम्मान करती थी एक दिन संजना उनसे मिलने आई तो अचानक किसी बात पर जब संजीव का जिक्र आया तो वह मुस्कुराते हुए राजीव से बोली” मेरे पति तो देवता हैं।”

      यह सुनकर राजीव मुस्कुराते हुए रजनी की तरफ देखते हुए बोला” सभी औरतें अपने पति को देवता मानती है “यह सुनकर संजना राजीव से बोली” भैया ऐसा नहीं है फिर वह रजनी की तरफ देख कर बोली” भाभी क्या आप भी भैया को देवता मानती हो?” “नहीं मैं इन्हें देवता नहीं मानती”संजना की बात सुनकर रजनी ने कहा तो उसकी बात सुनकर राजीव को गुस्सा आ गया था उस वक्त तो वह खामोश हो गया था

परंतु, संजना के वापस अपने घर जाने के बाद शाम के वक्त जब रजनी ने उसे चाय दी तो वह उस पर अपना गुस्सा निकालने लगा था अनेक वर्षों तक उसके लापरवाही भरे बर्ताव को झेलने के बाद आज उसकी सहनशीलता जवाब दे गई थी वह भी राजीव से उसी तरह गुस्से में बोली”मैं तुम्हें देवता कैसे कहूं?

देवता बनने के लिए अपने हर दायित्व को खुशी-खुशी निभाना पड़ता है क्या आपने मेरे प्रति और बच्चों के प्रति अपने दायित्व को कभी निभाया? जब कभी आप पर कोई दायित्व निभाने की जिम्मेदारी आई तो उस दायित्व को निभाने की बजाय आपने उस दायित्व को निभाने से साफ इनकार कर दिया ना कभी दुख में हमारा साथ दिया और ना ही कभी हमारी इच्छा का सम्मान किया फिर मैं सबके सामने तुम्हें देवता कैसे कहती? देवता वही होते हैं जो सुख-दुख में अपनी पत्नी का साथ देते हैं और उसकी हर इच्छा का पूरा सम्मान करते हैं”रजनी की बात सुनकर राजीव शर्मिंदा हो गया था शर्म के मारे उसके मुख से कोई बोल ना निकला था गर्दन नीचे करके वह चुपचाप चाय के घूंट भरने लगा था।

बीना शर्मा

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