मैं खामोश थी – नेकराम Moral Stories in Hindi

उस दिन लड़के वाले हमारे घर आए लड़के ने मुझे देखा और पसंद कर लिया मगर मैं खामोश रही किसी ने मेरी पसंद नहीं पूछी लड़के का अच्छा बिजनेस और देखने में सुंदर था दोनों परिवार वालों ने मिलकर मेरी सगाई की तारीख रख दी लड़के ने सब लोगों के सामने मेरी उंगली में अंगूठी पहना दी उस समय मुझे चारों तरफ भीड़ ही भीड़ नजर आ रही थी लोग सब रिश्तेदार एक दूसरे के गले मिल रहे थे —
सबके चेहरों पर मुस्कान थी
कुछ दिनों बाद मुझें दुल्हन की तरह सजाया गया रात भर फेरे होने के बाद सुबह मुझे मां और पिताजी ने विदा कर दिया
कार जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी मेरी बचपन की गलियां पीछे छूटती जा रही थी मोहल्ले की सभी स्त्रियां आंखों में आंसू लिए खड़ी थी कुछ देर बाद कार सड़क पर तेजी से दौड़ने लगी —
कार एक सुंदर से मकान के सामने रुकी मकान फूलों से सजा हुआ था
मोहल्ले की बहुत सी स्त्रियां मुझे देखने के लिए इकट्ठी हो गई सब मेरा चेहरा देखते और मेरी तारीफ करते मगर मैं खामोश थी —
उस अजनबी से मकान में बहुत चहल-पहल थी रिश्तेदारों व पड़ोसियों का लगातार जाना आना था मुझे एक पलंग पर बिठा दिया गया
कुछ लोग अपना परिचय देते हुए अपना-अपना नाम बता रहे थे मगर मैं खामोश थी
घर के लोग मुझे खुश करने के लिए कमरे का कोना-कोना दिखाते कभी छत कभी बरामदा कभी आंगन खाने के लिए तरह-तरह के व्यंजन मिठाइयां मेरे सामने रख दी गई मगर
,, मैं खामोश थी ,,
2 दिन के बाद घर एकदम शांत हो गया सब रिश्तेदार जा चुके थे
मुझे एक खूबसूरत सजावट वाले कमरे में ले जाया गया वहां एक पलंग फूलों से सजा हुआ था वहां पर मुझे बिठा दिया गया
रात के 11: 00 बज चुके थे मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था
कोई घुटन सी हो रही थी
,, लेकिन समाज के बनाए गए नियम और कानून में ,, हर स्त्री को उसकी उम्र में बांध दिया जाता है
मैं ना जाने क्या-क्या सोचती रही रात के 12:00 बज चुके थे मेरी नजर बार-बार दीवार पर लटकी हुई घड़ी पर जा रही थी बैठे-बैठे मेरी आंख लग गई और मुझे नींद आ गई सुबह किसी ने मुझे जगाया,,
एक ट्रे में एक कप चाय कुछ मिठाई नमकीन और बिस्किट रखे थे वह मेरी बगल में बैठते हुए कहने लगा ,, चाय गरम है पहले चाय पी लीजिए इतना कहकर वह कमरे से बाहर चला गया लेकिन मैं खामोश थी
मेरा मन किसी से बात करने का नहीं था दोपहर हो चुकी थी
एक बड़ी सी टेबल पर घर परिवार के सभी लोग मौजूद थे सब लोग अपनी-अपनी पसंद का खाना खाने में जुटे हुए थे मेरे सामने वह शख्स बैठा था जो सुबह मुझे चाय की प्याली दे गया था
उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी
,,, तभी एक आवाज आई,
विक्रम भैया ने तो पहले दिन ही हमारे घर की दुल्हन को चाय बनाकर पिलाई है टेबल पर बैठे सभी लोग विक्रम का चेहरा देखने लगे
तीन दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा वह सुबह मेरे कमरे में आते और मुझे चाय देकर चले जाते थे ,,
चौथे दिन में पलंग पर अकेली बैठी थी मुझे बड़ी गुस्सा आ रही थी कि मेरा पति कैसा पति है मैं इतनी खूबसूरत हूं फिर भी वह मेरी बगल में अभी तक 5 मिनट भी नहीं बैठे कहीं मेरे पति का किसी लड़की के साथ चक्कर तो नहीं है या मुझे पसंद नहीं करते तीन दिनों से आखिर वह कहां पर रात बिता रहे हैं
,, ऐसे ना जाने कैसे-कैसे सवालों से मेरा मन छलनी हो रहा था
इंतजार करते-करते रात के पोने दो बज चुके थे अब मेरी सब्र का बांध टूट चुका था मैंने चुपके से दरवाजा खोला सब कमरों में लोग
गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन विक्रम कहीं नजर नहीं आ रहे थे
तब मैं सीढ़िओ से ऊपर वाले कमरे पर पहुंची ,,,
वहां एक कमरा था उसका दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था मैंने दबे पांव दरवाजे से झांक कर भीतर कमरे में देखा,,
वहां बहुत सी अलमारी थी उनमें बहुत किताबें रखी हुई थी सामने एक टेबल थी टेबल के पास एक कुर्सी उस कुर्सी पर विक्रम एक बड़ी सी डायरी में कुछ लिख रहे थे
मैं थोड़ी आचार्य चकित हुई आखिर इतनी रात को यह अकेले में क्या लिख रहे होंगे ,,
मेरी हिम्मत कमरे के भीतर जाने की नहीं हो रही थी
लेकिन एक पल मैं सोचने लगी मैं तो इनकी पत्नी हूं मुझे कैसी शर्म
मैं धीरे से कमरे के भीतर प्रवेश कर गई और सामने दूसरी कुर्सी पर बैठ गई उन्हें बिल्कुल भी पता ना चला कि मैं कमरे में जाकर उनके सामने बैठ चुकी हूं वह लिखने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं
कि उनके कमरे में , कोई आ चुका है,,
मैं काफी देर तक उन्हें निहारती रही
उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे आज न जाने क्यों मुझे अच्छी लग रही थी जिस दिन मुझे देखने आए थे तब मुझे बड़ी गुस्सा आ रही थी मैं मन ही मन कह रही थी मुझे मूंछ वाले लड़के से शादी नहीं करनी है
उनके माथे का तेज मुझे अपनी और खींच रहा था उनके गाल और होठों को मैं बार-बार देखे जा रही थी
करीब आधा घंटा हो गया
मैं थक चुकी थी आंखों में नींद भी थी मैं वही कुर्सी पर सो गई
जब मेरी आंख खुली तो सुबह के 5:00 बज चुके थे वह अभी भी कुछ लिख रहे थे,,
दूसरे दिन भी मैं उनके कमरे में आ पहुंची और कुर्सी पर बैठ गई
मुझे लगातार आते हुए चार दिन हो चुके थे अब मैं उनसे बात करना चाहती थी मगर कैसे करूं
इस बार मैंने ठान लिया था कि उन्हें लिखने नहीं दूंगी वह रात भर मेरे साथ बात करें मेरे बारे में जाने अपने बारे में बताएं तरह-तरह के सवाल मुझे कुदेर रहे थे ,,
इस बार रात होने पर मैं उनके कमरे पर पहुंच गई वह अभी कुछ लिख रहे थे और मैंने अचानक कहा कि अब मैं खामोश नहीं रह सकती
आखिर तुम कैसे इंसान हो कैसे पति हो तुम्हें अपनी पत्नी की बिल्कुल भी परवाह नहीं मैं तुम्हारी पत्नी हूं और तुम मेरे पति हो हमें साथ-साथ एक बिस्तर पर होना चाहिए
तब विक्रम ने कहा यह बात तो मुझे भी पता है लेकिन मैंने तुम्हारा मूड पहले दिन ही पढ़ लिया था जब मैं अपने माता-पिता के साथ पहले दिन तुम्हें देखने आया था ,,
इसलिए मैं तुम पर कोई जबरदस्ती या दबाव नहीं बनना चाहता था
यह विवाह एक प्रेम का बंधन है इस बंधन में बंधने के लिए दोनों की मंजूरी जरूरी है ,,
तब मैं बोली बस इतनी सी बात थी मैं कमरे में जा रही हूं दरवाजा खुला हुआ है ,,,
इतना कहते ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया,,
और मुस्कुराते हुए बोले तुम्हारे इंतजार में मैंने चार किताबें लिख डाली 😀
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से स्वरचित रचना

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