बैगन की सब्जी – नेकराम Moral Stories in Hindi

सड़क पर मुझे एक किताब पड़ी मिली उस किताब का नाम था बंगाल का जादू वैसे तो मैं जादू पर विश्वास नहीं करता फिर भी किताब उठाकर मैंने पेंट की जेब में मोड कर डाल ली किताब का सम्मान करना लेखक जाति का धर्म होता है सो मैंने भी किया रात 1:00 बजे अचानक आंख खुली घर में बीवी बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे मैंने वही किताब निकाली एक पन्ने पर मेरी नजर टिक गई
उस पर लिखा था अगर तुम्हारी नाक पकोड़े जैसी है तो तुम्हारी माता का देहांत 18 घंटे के भीतर हो जाएगा
अगर मां की सलामती चाहते हो तो 18 घंटे तक बैगन की सब्जी मत खाना बैगन को देखना भी मत यही उपाय है तुम्हारी माता जी को जीवित रखने का किताब को मैंने रात को जला दिया ना जाने किस गधे ने यह किताब लिखी है —
सुबह आंख खुली तो सूरज निकल चुका था बीवी ने बैगन की सब्जी बनाकर थाली में परोस कर रख दी दोनों बेटे कहने लगे पापा तुम्हारी नाक तो पकोड़े जैसी लग रही है तब बीवी कहने लगी सही तो कह रहे हैं बच्चे मैं कहूंगी तो तुम्हें बुरा लगेगा बैगन की सब्जी ठंडी हो रही है जल्दी खा लो मैं दोबारा गर्म ना करूंगी मैं रोटी का कोर तोड़कर बैगन को छुआ तो मोबाइल की बेल बजे उठी —
बीवी ने मोबाइल का नंबर देखकर कहा बच्चों की दादा जी का फोन आया है बीवी ने स्पीकर की आवाज तेज कर दी बाबूजी ने बताया नेकराम तू सुन रहा है मेरी आवाज तेरी मां के सीने में अभी-अभी अचानक दर्द हो उठा वह दर्द से फड़फड़ा रही है मैंने तुरंत बैगन की सब्जी की थाली दूर कर दी तब बाबूजी बोले अब दर्द ठीक हो गया है तब मां ने फोन में बात बताई अभी ऐसा लगा जैसे यमराज जी मुझे लेने आ गए थे —
बीवी ने बैगन की थाली मेरे पास रखते हुए कहा पहले बैगन की सब्जी खा लो फिर हम मां जी को देखने गांव चलेंगे मैंने बैगन को जैसे ही छुआ तभी मोबाइल से फिर चीखने की आवाज आई मैंने बैगन को तुरंत छोड़कर थाली में पटक दिया मां से बात की तब मां ने बताया अभी 2 सेकंड पहले सीने में फिर से दर्द उठा था अब ठीक हूं —
बाबूजी ने फोन पर बताया लगता है कोई भूत प्रेत की बाधा है तुम तुरंत गांव चले आओ जब तक मैं कोई ओझा बुला लेता हूं मैं अपनी पत्नी बच्चों को लेकर गांव चल दिया 2 घंटे बाद हम गांव पहुंचे सारा गांव हमारे घर के बाहर बैठा हुआ था पेड़ के चबूतरे पर मां लेटी थी ओझा पास ही खड़े होकर लोटे से मां पर पानी की बूंदे छिड़कते हुए कह रहा था इस मां का छोटा बेटा अभी तक नहीं आया तब किसी ने कहा शहर से बेटा आ गया है बहू बच्चे भी साथ में आए हैं —
बाबूजी एक थाली मेरे पास ले आए जो कपड़े से ढकी थी बाबूजी ने बताया ओझा ने कहा है इस थाली में जो सब्जी रखी है अगर तुम इस सब्जी को खा लोगे तो तेरी मां ठीक हो जाएगी तुम्हारी मां के भीतर का प्रेत बाहर निकल कर भागेगा सारे गांव वाले मुझे ही देख रहे थे मैं मां के पास बैठ गया पानी से मेरे हाथ धुलवाए गए जब थाली से कपड़ा हटाया तो बैगन की सब्जी रखी हुई थी —
मैंने अपनी दोनों आंखें बंद करते हुए कहा कोई दूसरी सब्जी ले आओ मैं बैगन की सब्जी नहीं खाऊंगा बाबूजी कहने लगे तू कैसा बेटा है तुझे अपनी मां से तनिक भी प्यार नहीं जल्दी खा ले बैगन की सब्जी वरना तेरी मां मर जाएगी —
मुझे बार-बार किताब की लिखी बातें याद आती की बैगन की सब्जी 18 घंटे से पहले मत खाना खाते ही मां मर जाएगी लेकिन यह गांव में ओझा कह रहा है कि बैगन की सब्जी खाते ही मां ठीक हो जाएगी घर और बाहर के लोग मुझे कोसने लगे कैसा बेटा है मां की इसे बिल्कुल भी चिंता नहीं मां मरने को है और बेटा बैगन की सब्जी नहीं खा रहा है क्या जमाना आ गया है बेटे को मां प्यारी नहीं —
लोगों की बातें सुनकर बाबूजी ने एक थप्पड़ मुझे गाल पर दिखाते हुए बैगन की सब्जी मेरे सामने रख दी और कहा इस सब्जी को खा वरना तुझे गांव वाले डंडों से खूब पीटेंगे तेरी मां इस गांव की सरपंच है तब गांव के कुछ लोग कहने लगे नेकराम के दोनों पैर रस्सी से बांध दो और दोनों हाथ भी रस्सी से बांध दो फिर हम स्वयं ही बैंगन की सब्जी नेकराम के मुंह में जबरदस्ती ठूंस देंगे —
बाबूजी ओझा से बोले बड़े बेटे को बैंगन की सब्जी खिला दें तब ओझा बोला नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते बैगन की सब्जी तो तुम्हारे छोटे बेटे नेकराम को ही खानी पड़ेगी —
ओझा की बात सुनकर गांव के लोग मुझे पकड़ने के लिए दौड़े एक पल तो मैं सोचने लगा शहर वापस भाग जाऊं मगर कैसे चारों तरफ गांव के लोग मुझे घेरे हुए खड़े थे मां जिस चबूतरे पर लेटी थी उस चबूतरे का पेड़ एक विशाल पेड़ था मैं चबूतरे वाले पेड़ पर चढ़ गया कुछ लोग पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगे —
ओझा बोला समय कम है नेकराम को पेड़ से नीचे उतारो अचानक मेरा पैर फिसल गया मैं पेड़ के ऊपर से नीचे मां के बगल में जाकर धडाम से गिरा मेरी दोनों आंखें बंद थी किसी ने कहा लगता है नेकराम पेड़ से गिरकर बेहोश हो गया है मैंने जानबूझकर आंखें बंद रहने की नौटंकी शुरू कर दी ओझा ने फिर कहा —
पहले नेकराम को होश में लाओ फिर इसे बैगन की सब्जी खिलाओ तब जाकर यह माता ठीक हो पाएगी दोपहर से शाम हो गई मैं बेहोशी का नाटक किये मां के बगल में चुपचाप आंखें बंद किए पड़ा रहा सूरज ढल चुका था गांव के लोग भी इतने जिद्दी थे कि अभी तक वही मुझे और मां को घेरे हुए खड़े थे मैंने धीरे से अपनी एक आंख खोली चारों तरफ अंधेरा हो चुका था —
लोगों ने लकड़ियां जलाकर प्रकाश कर दिया किसी ने कहा शाम के सात बज चुके हैं मैंने मन ही मन हिसाब जोड़ा रात 1:00 बजे मंत्र पढ़ा था अब शाम के 7:00 चुके हैं 18 घंटे पूरे हो चुके हैं
अब तो मैं बैगन की सब्जी खा सकता हूं
मैंने आंखें मलते हुए अंगड़ाई ली गांव की बूंढ़ी काकी मेरे पास आते हुए बोली बेटा बैगन की सब्जी तुम खाओगे तब तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी मैंने बूंढ़ी काकी की हा में हां मिलाई और कहा ठीक है बैगन की सब्जी ले आओ
मैंने बैगन की सब्जी और रोटी पेट भर के खाई ओझा ने कुछ पैसे बाबूजी से लिए और कहा अब नेकराम की मां ठीक है प्रेत भाग गया गांव के सभी लोग अपने-अपने घर जा चुके थे मां और बाबूजी को मैंने अकेले में जादू की किताब के बारे में सब सच बता दिया तब मां बोली क्या किताबों की बातें सच में सही होती है बाबूजी मां की बात का उत्तर ना दे सके
खामोश निगाहों से मुझे देखने लगे — 🙏
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना

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