मां तुम हमेशा सच छुपाती हो – आरती खुराना

निधि बड़ी बहन रेखा से फोन पर ,” इस बार गर्मी की छुट्टियों में मायके का क्या प्रोग्राम है”

“यार!! इस बार तो मां ,भाभी ,भाई किसी ने उपरी मन से भी नहीं पूछा कब आ रही हो दोनों बहनें.. ऐसे चलना अच्छा लगता है क्या.. पापा के बाद तो जैसे किसी को हमारी पड़ी ही नहीं । तुम अपने जीजाजी का स्वभाव जानती हो.. एक हफ्ता भी ऐसे भेजते हैं जैसे एहसान कर रहे हो सो तुम देख लो अपना… मैं इस बार शायद ही चलूं गर्मी भी बहुत पड़ रही”  रेखा ने फोन रख दिया।

निधि सोचने लगी दीदी बोल तो सच रही है इस बार किसी ने हमारे आने पर जोर ही नहीं दिया। मां तो शुरू से ही ऐसी है कभी कुछ नहीं बताएगी दूर बैठी बेटियों को क्यों चिंता देनी।पता नहीं… भाई भाभी पापा के बाद कैसा व्यवहार करते हैं। अब उन्हे वहीं रहना है सो बर्दाश्त कर लेती होंगी। मैं तो एक दिन अचानक से मायके पहुंच जाती हूं। देखूं तो सही सब इतना कैसे बदल गए।

निधि पति प्रमोद से बोली,” दीदी तो मान सम्मान के चक्कर में पड़ी हैं,अब कोई मायके नहीं बुलाएगा तो क्या बेटी अपने मायके नहीं जाएगी… दीदी तो निर्मोही हो गई हैं अपनी जॉब ,जीजाजी और बेटियों में पूरी हो गई है उसे मां की याद नहीं आती होगी। पर मैं तो मायके जाऊंगी और बिना बताए जाऊंगी पता लगे चल क्या रहा है.”

प्रमोद ने निधि की टिकट करवा दी। निधि ने घर में चुपचाप प्रवेश किया भाई रसोई में मां के सिर पर खड़ा था… “जल्दी डिब्बा पैक करो मां.. दुकान का लड़का छुट्टी पर है दुकान पड़ोसी के भरोसे छोड़ के आया हूं। “

मां बूढ़ा शरीर लेकर धीरे-धीरे रोटी बेल रही.. जैसे तैसे डिब्बा पैक किया। भाई जल्दी में निकल गया । निधि का पसीने में तर बतर मां को देख खून खौल रहा। वो दूर खड़ी कोने में छुपी सब देख रही। इतने में मां ने पैर से पोंछा लगाना शुरू किया तो निधि से रहा ना गया। पोंछा मां  से छीन दूर फेंक गले लग गई।

“बहुत हुआ मां.. मैं खुश हूं ,मजे में हूं… कितना झूठ बोलती हो.. भाई भाभी की सच्चाई छुपा कर तुमने क्या सोचा हम बेटियों को उनकी असलियत नहीं पता चलेगी। तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारी ऐसी हालत नहीं देख सकती … ” निधि को गुस्से में लाल देख मां ने शांत किया।




“अरे! मेरी लाडो तू कब आई.. तूने तो चौंका ही दिया। तू शांति से बैठ ठंडा पानी पी…फिर बात करते हैं।” निर्मला जी ने बेटी को पानी पिलाया।

“मां हमारा कानून हम बेटियों को ये अधिकार देता है कि हम पिता की वसीयत में बराबर की हिस्सेदार होती है। सिर्फ तेरे बेटा बहु तुझे प्यार सम्मान दे हमे कुछ नही चाहिए। सेवा करने के बजाय इस उम्र में भी तुमसे काम ले रहे । मैं रेखा दीदी को सारी सच्चाई बताकर बुलाती हूं। अपने वकील देवर को बुलवाती है दोनो भाई भाभी के होश ठिकाने आ जायेंगे। “

“यही तेरे साथ दिक्कत है निधि तू सिर्फ अपनी ही कहती जाती है दूसरे की सुनती नहीं। मुझे बोलने देगी ?” निर्मला ने गुस्से से कहा।

“हां कहो… फिर बेटा बहु का ही पक्ष लोगी मैं जानती हूं तुम्हें”

“अरे मेरी रानी.. सुमित्रा जी एडमिट है बहुत क्रिटिकल कंडीशन है। तू तो जानती है तेरी भाभी का भाई नालायक है वो मां बाप को पूछता नहीं उसी के गम में सुमित्रा जी को अटैक आ गया। तो क्या ऐसी हालत में जब बहु की मां को देखने वाला कोई नहीं तब क्या तेरी मां पत्थर दिल सास बन जाए भूल जाए कि वो भी दो बेटियों की मां है।

गरिमा सारे घर का काम करके अस्पताल जाती। तेरा भाई उसे छोड़ दुकान चला जाता है। कैसे मेरी बहु के उपर दो दो परिवारों की जिम्मेदारी आ गई है मुझे तो लगता है मायके ससुराल अस्पताल के चक्करों में खुद न बीमार पड़ जाए। ससुराल में सास की हालत जानती है सो सब काम निपटा पति का डिब्बा भी बनाकर जाती है। फिर मायके जाकर पिता का खाना बनाकर मां और अपना खाना पैक कर अस्पताल ले जाती हैं। आज तो सुमित्रा जी को होश आया सो गरिमा का नाम पुकार रही मैंने ही कहा झाड़ू लग गया सब्जी बन गई.. तू जा आलोक को चार चपाती मैं बनाकर दे दूंगी।

बेचारी कसमें देकर जाती है मां मैं सब आकर कर लूंगी आप किसी काम को हाथ मत लगाना। मैं बूढ़ा शरीर उसके किसी काम नहीं आ पाती खड़े खड़े चार चपाती सेंक दी या पैर से आंगन पोंछ दिया तो तूने भाई भाभी को विलेन समझ लिया, कोर्ट कचहरी तक पहुंच गई। मेरी चिंकी मुझे पोंछा कहां लगाने देती ये तो वो ट्यूशन गई है सो मैंने सोचा दोनो मां बेटी गर्मी में  थकी हुई आएंगी तो खड़े खड़े मैं ही लगा दूं।”




निधि को अपनी सोच पर बेहद शर्मिंदगी हुई।

अपनी मां और भाभी पर गर्व होने लगा। आंखें नम हो गई।

“जिस मां को लाचार और मजबूर मान रही थी वो कितने बड़े जिगर वाली है। जिस भाभी के लिए इतना गलत सोच रही वो हमेशा वीडियो कॉल पर मुस्कुराती दिखती अपने दर्द तकलीफ का हम ननदो को एहसास तक नहीं होने दिया। सच में मेरी मां एक महान सास और मेरी भाभी दुनिया की सबसे अच्छी बेटी और बहु हैं।”

गरिमा के आते ही निधि ने बहुत गुस्सा किया ,”क्या भाभी इतना पराया कर दिया। इस बार हम नंदों को मायके का बुलावा तक नहीं भेजा”

“वो … वो… दीदी परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बन गईं” …गरिमा आगे कुछ बोल नहीं पाई.. फफक कर रोने लगी।

निधि ने संभाला,” आंटी अब कैसी हैं भाभी.. मां ने सब बताया आप अकेले इतनी मुसीबतों से अकेले झूझ रहे क्यों आपने हमे  दर्द बांटने लायक भी नहीं समझा.. हम बेटियां सिर्फ आपसे अपनी मां की देखभाल की उम्मीद करते थे इसका मतलब ये नही कि भाभी अपनी मां के लिए अपने एहसासों को खत्म कर दें। आप ये मायके ससुराल का चक्कर बंद करो .. आंटी अंकल का खाना यहीं बनेगा आप यहां से दोनों का टिफिन बनाओ अस्पताल के चक्कर मैं लगा लूंगी अब मुझे कार चलानी आती है भाई को दुकान से आने की जरूरत नहीं।” निधि ने साफ कहा।

 “लेकिन दीदी ये छोटा शहर है मेरे मम्मी पापा मेरे ससुराल से आया खाना नहीं खायेंगे जग हंसाई होगी। आज मेरे भाई ने मुंह नहीं मोड़ा होता तो मेरे माता पिता इस तरह दर बदर नहीं हुए होते।” गरिमा ने रूंधे हुए स्वर से कहा।

“ये भी कोई बात हुई माता पिता की सेवा पर बेटा बेटी दोनों का अधिकार है। मुझे और रेखा दीदी को तो सिर्फ बेटियां ही हैं फिर हमे तो बुढ़ापे में वही देखेंगी। सारी जिंदगी की कमाई उनकी पढ़ाई लिखाई शादी में लगा दो फिर बुढ़ापे में बेटे की तरह उनका भी फर्ज बनता है। अब ये फालतू बाते कोई नही मानता।” निधि ने गरिमा को समझाया।

निर्मला जी दूर खड़ी मुस्कुरा रही निधि के फैसले पर उनको गर्व था। जल्दी ही सुमित्रा जी अच्छी होकर अपने घर चली गई। निधि ने भी वापसी की तैयारी की।

धन्यवाद दोस्तों

कहानी में निर्मला जी एक ऐसी मां है जो अपनी बेटियों की तरह बहु के मनोभावों को समझती है। फिर बेटी हों या बहु दोनो के अपनी मां को लेकर एक जैसे एहसास होते है।अगर दुनिया की सारी सास बहू के लिए मां जैसे एहसास रखे तो बहु से उन्हे बेटी जैसा ही प्यार और सम्मान मिलेगा। आप क्या सोचते है कॉमेंट कर बताएं

आपकी दोस्त

आरती खुराना (आसवानी)

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