माँ से धोखा – ममता गुप्ता

रामलाल जी का देहांत हुए अभी 6 महीने भी नही हुए थे कि” उनके बेटो को यह चिंता सताने लगी कि ” आखिर इस मंहगाई के जमाने मे माँ का खर्चा कौन उठाएगा। 

चारों बेटो का अपना अपना परिवार था, सभी के घरों में बच्चो की पढ़ाई व बड़े दो भाइयों के पर बच्चो की शादी की चिंता थी…।  चारो बेटो ने बैठकर निर्णय लिया कि क्यो न माँ को हम 3-3 महीने के लिए अपने पास रखे..!!

जिस भी भाई के पास माँ रहेगी वो ही माँ का  पूरा खर्चा उठाएगा।। सभी भाई आपसी निर्णय से सहमत थे..।।

लेकिन तीसरे नम्बर वाला भाई महेश के चेहरे पर कुछ चिंता की लकीरें उबर रही थी..उसे चिंतित देख बड़े भाई श्यामा ने पूछा -“क्या हुआ छोटे तू किस विषय को लेकर चिंतित है..? जरा हम भाइयों को भी बता।।

महेश ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ” भाई साहब हमने माँ का तो बंटवारा कर लिया लेकिन यह बताओ  की आशा दीदी को तीज त्यौहार पर कौन बुलायेगा.. औऱ बुलाने पर जो खर्चा होगा। उस खर्चे की भरपाई किस तरह होगी। औऱ बाबूजी जो जमीन जायदाद छोड़कर गए है.. उनमें दीदी का हिस्सा होगा या नही..?

देख छोटे गर दीदी जमीन जायदाद में से हिस्सा लेंगी तो उसे हम तीज त्यौहार पर बुलाना ही छोड़ देंगे औऱ गर हिस्सा नही लेती हैं तो वो जिसके घर पहले आये वो ही सारा खर्चा उठाएगा… बड़े भाई ने समझाते हुए कहा।।

सभी भाई सही निर्णय के लिए हामी भरने लगे।।


लालची बेटो की सारी वार्तालाप बगल के कमरे में बैठी  माँ वीणा सुन रही थी। औऱ मन ही मन कह रही थी कि अच्छा हुआ आप यह सब देखने से पहले ही दुनिया से चले गए वरना जीते जी मर जाते।। जिन बेटो को जीवन भर पाल पोसकर बड़ा किया वो आज अपने ही बेटो के लिए बोझ हो गई थी…एक माँ की आत्मा रो रही थी…!!

उधर बड़े बेटे ने माँ का सामान बांधा औऱ अपने घर ले आया…3-3-3 रहकर वीणा जी अपना समय व्यतीत करने लगी। बेटी आशा का फोन आता बात कर लेती अपने सुख दुःख की बाते कर मन हल्का हो जाता था बस ऐसे ही समय कट रहा था।

एकदिन पिता के बैंक के कागज बदलाने थे,बैंक में जमा धनराशि की अकेली हकदार सिर्फ वीणा जी थी,माँ वीणा को बैंक ले जाया गया। वीणा इतनी पढ़ी लिखी नही थी कि जो समझ सके कि कागजो में क्या लिखा है क्या नही…?

माँ के नाम अपार धन सम्पति देख बेटो के मन मे लालच आ गया औऱ लालच धीरे धीरे धोखे में बदलने लगा…चारो बेटो ने धीरे धीरे बैंक  से सारे पैसे निकाल कर आपस मे बांट लिए…रोज रोज बैंक लेकर जाना औऱ कागजो पर अंगूठा लगवाना यह देखकर आखिर वीणा जी ने बेटो से पूछ ही लिया…

आखिर यह चल क्या रहा है..? तुम लोग मुझे रोज बैंक ले जाते हो औऱ रुपयो की गड्डी लाते हो,आखिर वो मेरे पति की मेहनत की कमाई है। वो मेरे  बुढ़ापे के लिए छोड़कर गए है,ताकि इनके जरिये ही मुझे दो वक्त की रोटी मिल सके औऱ तुम सभी ने मिलकर मेरी बुढ़ापे की रोटी भी छीन ली…!!

माँ वीणा ने विलाप करते हुए कहा।।

अरे!!माँ तेरे काम भी क्या आते ये रुपये।वैसे भी तेरे मरने के बाद हम ही बाटते औऱ तुम्हे दो वक्त की रोटी तो मिल ही रही हैं ना फिर तुम्हे क्या चाहिए..? बड़े बेटे श्यामा ने कहा।

बेटे के मुंह से ये शब्द सुनकर माँ वीणा को अपने ऊपर ही गुस्सा आ रहा था कि क्यो इन लालची बेटो को मैने जन्म दिया…?  


वीणा जी के सारे सम्पत्ति अब बेटो ने आपस मे बांट ली थी..अब जब माँ के पास कुछ बचा नही तो,सब माँ को अपने पास रखने में आनाकानी करने लगे..!! 

कभी कभी बहुये भी ताना मार देती थी कि काम की न काज की दुश्मन अनाज की। वीणा जी से जो काम बनता वह कर देती थी..एकदिन काम करते करते माँ वीणा का पैर फिसल गया, बूढ़े हाथ पैरों में इतना दम नही जो सहन कर सकें,डॉक्टर ने आराम करने को बोला, औऱ बेटो को ठीक से सेवा करने के लिए सेवा क्या खाक करते बेटे,बेटो ने तो माँ को एक बार से दूसरी बार मिलने भी नही जाते, उधर पत्नी भी बोल देती थी,देखो जी हमसे नही होगा,अब घर का काम करे कि,इस बुढ़िया की सेवा में हाजिर रहे,ऐसा करो तुम  इसे वृद्धआश्रम भेज दो …इतने में आशा का आना हुआ,

उसके कानों में वृद्धआश्रम शब्द की भनक लग चुकी थी,

अपनी माँ को इस हालत में देख वो रोने लगी। वीणा भी बेटी के लगे लगकर फुट फुटकर रोने लगी..वहा खड़े भाई भी मगरमच्छ के आँसू बहाने लगे। 

अपनी माँ की हालत देख ” आशा ने कहा कि” मैं आप सभी से एक बात कहना चाहती हूँ..। आशा के मुँह से यह सुनकर भाइयों को चिंता हुई कि कही जमीन जायदाद में से हिस्से की बात न कह दे।।

भाइयों ने कहा-देख गर तू जमीन जायदाद के हिस्से की बात करना चाहती हैं तो बात करना बेकार हैं, क्योंकि शादी के बाद बेटियों का पैतृक संपत्ति पर कोई हक नही होता है,हा गर भाई तुम्हे राजी से देना चाहे तो ले सकती हैं। 

 जो हम तुझे देना नही चाहते।। बड़े भाई ने कहा।।

मैं यहाँ आपसे कोई हिस्सा मांगने की बात करने नही आई हूं।।  मैं तो आप सभी से यह कहना चाहती हूं कि मैं माँ को अपने साथ लेकर जाना चाहती हूँ।


मैं नही चाहती कि मेरे होते हुए मेरी माँ

वृद्धआश्रम में रहें।

 तुम लोगो ने बहुत सेवा की अब मैं भी सेवा करना चाहती हूँ । मुझे आपके जमीं जायदाद नही बल्कि मेरी माँ का प्यार और आशीर्वाद चाहिए क्योंकि माँ से बढ़कर दुनिया मे कोई दौलत नही है।। 

आशा के मुँह से यह शब्द सुनकर भाइयों के चेहरे पर हंसी आ गई…!! हाँ हा जरूर ले जा हम भी यही चाहते है कि माँ बाहर जाए ताकि माहौल चेंज होए।। इन्हें भी तेरे साथ रहकर अच्छा लगेगा।

घर के सभी लोग माँ का सामान जमाने लगे।। औऱ खुशी खुशी माँ को विदा करने लगे।। 

उधर आशा के साथ माँ खुश थी कि बेटी ही आगे आई बेटो का फर्ज निभाने के लिए…वरना जो बेटे धोखे से बैंक से पैसे निकाल सकते है, वो घर से भी निकाल देते।। जब बेटे माँ से ही धोखा कर जाये तो भगवान की उनका भला कैसे कर पाएं।

ममता गुप्ता

अलवर राजस्थान

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