माँ मत जाओ –  बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 Moral Stories in Hindi : अच्छा विक्रम ये बताओ परिवार पति पत्नी और बच्चों से ही तो बनता है ना?

      बिल्कुल सनी परिवार पति पत्नी और बच्चो से ही बनता है पर आदर्श परिवार में माता पिता भी शामिल होते हैं यानि तीन पीढ़ी।

      अब यदि किसी माता पिता के दो या तीन बेटे हो तब तो एक के अतिरिक्त किसी का आदर्श परिवार होगा ही नही?

      तब सनी, उसके बेटो को अपने माता पिता के सम्मान और उनकी परंपराओं को अधिक से अधिक अपनाना पड़ेगा तब उन्हें लगेगा कि उनके सब बेटे उनके ही पास है।

        ऐसे ही आज विक्रम और सनी दोनो दोस्तो के बीच अनायास ही परिवार विषय पर बातचीत चल गयी।विक्रम के पास से वापस लौटते सनी के दिल पर एक बोझ सा था।क्योंकि वो तो पिछले तीन वर्षों से अपने माता पिता से अलग ही रह रहा था।इतना ही नही पिछले वर्ष जब गुड़िया का जन्म हुआ तब भी उसने उन्हें सूचना तक नही दी थी,वो तो उन्हें किसी और से पता चला तो सब दौड़े चले आये।तीन दिन रहे गुड़िया को तो माँ बस अपनी ही गोदी में ले लाड़ ही लड़ाती रही।

पर सुमन को उनका आना सुहा ही नही रहा था।मौका मिलते ही कह देती कब जायेंगे ये?सनी खुद भी अपने को उन सब की उपस्थिति में असहज महसूस कर रहा था।असल मे उन्हें उनके बिना रहने की आदत सी बन गयी थी।आज जब विक्रम ने आदर्श परिवार की परिभाषा में माता पिता की अनिवार्यता बताई तब से सनी एक अनजाने अपराध बोध से घिर गया।

वह अपना ध्यान  जितना हटाना चाहता उतना ही ध्यान माता पिता पर जाता।कैसे माँ उससे बेइंतिहा प्यार करती जरा सा बिमार होने पर भी सारी रात जागती, कैसे प्रतिदिन पिताजी उसे स्कूल छोड़ने जाते।दोस्तो में जरा देर हो जाती तो माँ रोने लगती मेरा सनी कहां है, पिताजी साईकल निकाल मुझे ढूढ़ने निकल पड़ते।सब आज सनी की आंखों के सामने नजर आ रहा था।

उसे ग्लानि हो रही थी कि वह इतना कृतघ्न कैसे हो गया जो उन्हें भूल गया।गुड़िया के जन्म के समय बिना बुलाये अम्मा और पिताजी के प्रति आयी सोच सनी को धिक्कार रही थी।तभी उधर से ट्रक ने सनी को टक्कर मार दी।लहूलुहान सनी को किसी भले मानुष ने हॉस्पिटल में दाखिल करा दिया और जेब से निकले कार्ड पर अंकित नम्बर पर डायल कर उसके घर सूचित भी कर दिया।



       सनी के एक्सिडेंट की सुन सुमन के तो हाथ पांव ही फूल गये छोटी सी गुड़िया को किसी तरह संभाल बदहवास सी सुमन ऑटो ले हॉस्पिटल की ओर भागी.ICU में दाखिल सनी से डॉक्टर मिलने भी नही दे रहे थे।सनी के आफिस के साथियो ने हॉस्पिटल की औपचारिकतायें पूरी कर दी थी और वो सुमन को सांत्वना दे धीरे धीरे एक एक करके चले गये।

पूरे हॉस्पिटल में अकेली रह गयी सुमन अपनी नन्ही गुड़िया के साथ।शहर की भीड़ में आज उसे वीराना नजर आ रहा था।सुमन को दूर दूर तक ऐसा कोई दिखायी ही नही दे रहा था जो उसके दुख को बाट सके उसका सहयोग कर सके।रह रह कर सास ससुर देवर का ध्यान आता पर किस मुँह से उन्हें बुलाये कभी उन्हें सम्मान दिया हो तब ना।

        सनी की हालत देख ,अपने मन को कड़ा कर आखिर सुमन ने अपनी सास को सनी के एक्सीडेंट की खबर दे ही दी।उसे बिल्कुल आशा नही थी कि उसका देवर खुद तो क्या अम्मा पिता को भी आने देगा।लेकिन ये क्या सुमन का देवर अपने माता पिता के साथ ही रात्रि दो बजे ही हॉस्पिटल पहुंच गये।

अम्मा का रो रो कर बुरा हाल था ,पिताजी अम्मा को संभाल रहे थे,देवर हॉस्पिटल में अपने भैया की हालत की जानकारी ले रहा था।सुमन अवाक हो देख रही थी कि कि कैसे वो इन तीन चार घंटों में ही अकेली से परिवार वाली हो गयी थी।माँ  सुमन की गोद से गुड़िया को ले सुमन को अपने से चिपटा कर कह रही थी बेटा चिंता मत करना तेरे सनी को कुछ नही होगा, हम है ना।

सुमन सोच रही थी इनसे मैंने इनके बेटे सनी को छीना था जो आज भी अपने बेटे को कह रही है तेरे सनी को कुछ नही होगा। एक माँ आखिर अपनी बहू को और क्या बहुमूल्य उपहार दे,दे तो दिया अपना बेटा।

     सुमन अम्मा के पैर पकड़ कर रोये जा रही थी,मां समझ रही थी ये सनी के लिए रो रही है,पर सुमन आज प्रयाश्चित कर रही थी,अपनो का अपने द्वारा नकारने का।

     15 दिन बाद सनी घर वापस आ गया।देवर, अम्मा,पिताजी वापस जाने की तैयारी कर रहे थेऔर सुमन यह सब देख दौड़ कर अम्मा से चिपट कह रही थी माँ मत जाओ,मुझे भी शामिल कर लो परिवार में।बिस्तर पर लेटा सनी आकाश की ओर देख भगवान को हाथ जोड़ रहा था,आज उसके परिवार की परिकल्पना जो पूरी हो गयी थी।



#परिवार 

           बालेश्वर गुप्ता

                       पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवम अप्रकाशित

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