मां का खयाल – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मां तुम्हे यहां तकलीफ़ होती है, हालांकि ये घर भी तुम्हारा ही है , लेकिन मैं सुबह अपने काम पर चला जाता हूं और तुम्हारी बहू धरा भी अपने आफिस चली जाती है बच्चे स्कूल से जब तक आते नहीं तब तक तुम्हें अकेले रहना पड़ता है और देखो तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं रहती इसलिए मैंने सोचा है कि पास में एक हासपिटल है वहां तुम्हारे रहने का इंतजाम कर दूं, कुछ दिन में आप ठीक हो जायेगी तो फिर घर ले आयेंगे।

               विमला देवी बेटे देवेश की बातें सुनकर चुपचाप शून्य ही जमीन की तरफ देखते हुए हामी में सिर हिला दिया। अगले दिन हमेशा की तरह बहू रानी शापिंग को निकल गई। लौटने पर नौकर से बोली चाय नाश्ते का अच्छे से इंतज़ाम करो आज किटी पार्टी है मेरी कुछ सहेलियां आ रही है।
      इधर बहू किटी पार्टी में व्यस्त थी खूब हाहाहीही हो रहा था उधर विमला देवी का दमा का इन्हेलर खत्म हो गया था उसने देवेश को बताया नहीं था क्योंकि अभी एक हफ्ता ही हुआ था उसको देवेश के घर आए हुए। लगभग एक महीना पहले विमला देवी के पति का देहांत हो गया था तब वो अपने छोटे से शहर में रहती थी पति के मौत के बाद बेटा उन्हें अपने साथ शहर ले आया था जहां वह नौकरी करता था और अपनी बीवी बच्चों के साथ रहता था।
                लेकिन जब विमला देवी की सांस फूलने लगी तो न चाह कर भी उन्होंने बहू को आवाज लगाई।बहू की सहेलियों ने बताया कि तुम्हारी सास आवाज दे रही है।धरा चेहरे पर झूठी मुस्कान सज़ा कर उठी और सांस के कमरे में घुसते ही गुस्से में बोली देखो आपको शहर के बारे में मालूम नहीं है ऐसे किसी पार्टी के बीच में बुलाया नहीं जाता। विमला देवी खांसे जा रही थी, उनकी सांस घुट रही थी धरा बडबडाये जा रही थी अब मुझे मत बुलाना जो कुछ चाहिए नौकर से बोल दो विमला देवी की बात सुने बिना ही धरा बाहर किटी पार्टी में व्यस्त हो गई।
              विमला देवी की हालत बहुत गंभीर हो रही थी अस्थमा का अटैक हो गया था। अचानक से उन्हें कुछ याद आया उन्होंने अपने बक्से को खोला उसमें एक पुराना पर्स था उसे जल्दी से खोला उसमें एक पुराना आधा इस्तेमाल किया हुआ इन्हेलर था उन्होंने जल्दी से इन्हेलर किया तो उनकी तबीयत थोड़ी संभलने लगी।पर उनकी आंखों से आंसू ही आंसू गिर रहे थे , अपने बहू बेटे की निषठुरता पर नहीं अपने पति को याद करके।ये वही पर्स था जिसे उनके पति ने पिछले साल उपहार में लाकर दिया था जब विमला देवी ने कहा था कि पर्स तो बहुत है मेरे पास तो उनके पति ने कहा था देखो तुम्हें दमा का रोग है और तुम अक्सर दवाई भूल जाती हो कुछ दवाइयां और इन्हेलर की एक डिब्बी मै इसमें रख देता हूं कभी भूल जाओ तो इसे निकाल लेना। फिर बिमला देवी कुछ और सोचने लगी उन्हें कुछ और याद आया उन्होंने उसी पर्स में एक छोटी सी पर्ची देखीअब उनमें एक अजीब सी हिम्मत ही जाने लगी थी विमला देवी ने दराज से एक पेन निकाला एक पेपर पर कुछ लिखा और अपनी छड़ी का सहारा लेकर धीरे धीरे कमरे से बाहर फिर घर से बाहर निकल गई।
            शाम को घर में कोहराम मचा हुआ था देवेश और धरा दोनों लड रहे थे,कारण यह था कि विमला देवी घर पर नहीं थी ।धरा अच्छा हुआ तुम्हारी मां चली गई कैसे रखती मैं उनको मैं तो एक हफ्ते में ही परेशान हो गईं थीं । देवेश बोला अरे कुछ दिन तो ठीक से रख लेती मुझे मकान के पेपर पर उनके साइन लेने थे , उसके बाद तो हासपिटल के बहाने वृद्धाश्रम में रखने की बात कर ली थी अब कहां ढूंढूं पता नहीं कहां चली गई। तभी देवेश के फोन पर एक काल आती है , देवेश हां बताइए दूसरी तरफ से सर हम वृद्धाश्रम से बोल रहे हैं देवेश आपको मेरा नंबर कहां से मिला वैसे मैं आपसे मिलने वाला था। नहीं सर आप जिन्हें पहुंचाना चाहते थे वो यहां आ गई है और उन्होंने कहा है कि आप जिस कागज़ को लेने यहां आयेंगे वह उनके कमरे के दराज में है और उसपर साइन भी कर दिए हैं ।यह कहकर फोन काट दिया गया। फोन रखकर प्रबंधक ने विमला देवी को बड़े सम्मान से देखा, विमला देवी बड़े शांत भाव से अपने कमरे के पलंग पर बैठी हुई थी। उन्होंने फिर से वो पर्ची अपने पर्स से निकाला और पढ़ने लगी जिसमें उनके पति ने लिखा था कि ये तभी पढ़ना जब मैं न रहूं।तब विमला देवी ने कहा था कि तब तो मैं इस कागज को फ़ाड़ देती हू लेकिन उनके पति ने उनको ऐसा करने से मना कर दिया था।आज वही पर्चा उन्होंने पढ़ा जब उनके जान पर बन आई थी और उनको लग रहा था बचीं खुची जिंदगी कैसे कटेगी।उस कागज पर एक पता और एक नंबर था जो उसके पति के एक दोस्त का था और इसी शहर में रहते थे। जिन्हें विमला देवी ने आश्रम से बाहर निकल कर फोन किया ।उस पर्ची में ये भी लिखा था विमला मैं रहुं न रहुं तुम्हें किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा मेरा ये दोस्त तुम्हारी मदद करेगा ।इस नंबर पर कॉल कर लेना मैंने तुम्हारे लिए बैंक में पर्याप्त पैसे जमा कर रखे हैं तुम जहां भी रहोगी ये सज्जन तुम्हारी मदद करेंगे । तुम कभी घबराना मत , हमेशा हिम्मत से काम लेना। जैसे तुम मुझे हिम्मत बंधाती रहती थी । विमला देवी को याद आने लगाकि मजाक में ही सही पति को कितना ताने दिया करती थी कि कभी एक साड़ी लाकर नहीं दिया, कभी घुमाने फिराने लेकर नहीं जाते। लेकिन आज पति का ये उपहार न सिर्फ उसमें स्वाभिमान भर गया बल्कि उसका हृदय इस प्रार्थना से भर उठा कि धन्यवाद आपका और दुनिया का हर पति अपनी पत्नी को ऐसा एक उपहार अवश्य दें ।
 
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
2 अगस्त 23 
(v)

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