मां का दर्द – माता प्रसाद दुबे

पार्वती देवी कमरे में गुमसुम उदास बैठी दीवार में लगी फोटो की तरफ एकटक तक देख रही थी। उसकी मनोदशा शून्य हो चुकी थी। जब से उसका बड़ा बेटा विकास उसे छोड़कर अपनी पत्नी गीता के साथ शहर में रहने लगा था।तब से अब तक पार्वती देवी हमेशा गुमसुम उदास रहती थी। जिस बेटे को उसने अनगिनत कष्टों को सहते हुए पाल पोस कर बड़ा किया था,उसके जाने का दर्द उसे हरदम परेशान करता था। “पार्वती! तुमको कितनी बार मना किया है..कि अफसोस करने से कोई फायदा नहीं है..क्यों अपनी ही दुश्मन बनी हुई हो?”पार्वती देवी के पति शिवनाथ कमरे में आते हुए बोले। “क्या करूं बहुत कोशिश करती हूं..लेकिन मेरा मन नहीं मानता..आज विकास का जन्मदिन है..भला एक मां अपने बेटे के जन्मदिन को कैसे भूल सकती है?” पार्वती देवी की आंखों से आंसू छलकने लगे। “तुम समझती क्यों नहीं..अब वह हमारा बेटा नहीं रहा वह तो अपनी पत्नी और ससुराल वालों का ही बनकर रहे गया है..उसे हमारी याद तक नहीं आती..नहीं तो वह आज अपने माता पिता को याद नहीं करता शिवनाथ चिंतित होते हुए बोले। “अम्मा! “बाबू! चलो खाना खा लो खाना तैयार है?” पार्वती देवी की छोटी बेटी प्रभा कमरे में आती हुई बोली। “जाइए आप और प्रभा खाना खा लीजिए..मुझे भूख नहीं है?” पार्वती देवी उदास होती हुई बोली। “अम्मा! तुम बेकार में परेशान होती हो चलो खाना खाओ नहीं तो कोई नहीं खाएगा?” प्रभा गुस्साते हुए बोली। “बेटी!मुझे भूख नहीं है?”कहकर पार्वती देवी शांत हो गई। “क्यों नहीं है..मैं जानती हूं आज भैया का जन्मदिन है..

इसीलिए तुम परेशान हो..चलो खाना खाओ?” प्रभा अपने हाथों से पार्वती देवी को खाना खिलाने लगी। एक साल पहले विकास को सरकारी विभाग में उच्च पद पर नौकरी मिली थी। उसके उच्च अधिकारी की बेटी पिंकी को उससे प्रेम हो गया था। उन्होंने गांव से विकास के परिवार को शहर बुलाकर दोनों की शादी करवा दिया था। विकास का घर गांव में था। विकास के पिता शिवनाथ गांव के प्रतिष्ठित एवं संपन्न व्यक्ति थे..किसी प्रकार की कोई भी कमी नहीं थी..फिर भी पिंकी को वहां रहना पसंद नहीं था.. और शादी के एक महीने बाद ही वह विकास को लेकर शहर में रहने लगी थी। रात के 8:00 बज रहे थे “अरे प्रभा! जरा अपने भैया को फोन करो बेटी?” पार्वती देवी प्रभा से बोली। “अम्मा!मैं क्यों फोन करूं क्या भैया को पता नहीं है..कि आज उनका जन्मदिन है..वह तो वहां पार्टी कर रहे होंगे..उनको तुम्हारा ख्याल नहीं आया की अम्मा से बात कर ले?” प्रभा झुझलाते हुए बोली।”कोई बात नहीं बेटी! वह तेरा बड़ा भाई है..

उसे नहीं याद है..लेकिन मैं कैसे भूलू?” पार्वती देवी उदास होते हुए बोली। अपनी मां का उदास चेहरा देखकर प्रभा ने विकास का नम्बर मिलाकर फोन पार्वती देवी के हाथ में थमा दिया। “हेलो विकास कैसे हो बेटा! पार्वती देवी दुखी होती हुई बोली। “ठीक है अम्मा! बाबू! और प्रभा कैसे हैं..तुम ठीक हो दूसरी तरफ से फोन पर विकास की आवाज सुनाई दे रही थी। कुछ देर बात करने के बाद विकास ने फोन कट कर दिया मगर उसकी पत्नी पिंकी ने किसी से बात नहीं किया। विकास पिंकी के प्रेम में सब कुछ भूल चुका था..उसके माता पिता की कमी उसके साथ ससुर ने पूरी कर दी थी..वह भी गांव वापस आना नहीं चाहता था।




वह गांव में सबको भूलता जा रहा था। रात हो चुकी थी..विकास को आफिस से निकलने में देर हो गई थी। पिंकी का बार-बार फोन आ रहा था। वह अपनी कार को तेज़ गति से चला रहा था। उसे जल्दी घर पहुंचना था। अचानक कार के आगे एक छोटा सा पिल्ला आ गया..चाहकर भी विकास उसे बचा नहीं सका..उसने गाड़ी रोककर देखा तो दुखी हो गया..वह छोटा सा पिल्ला सड़क पर चिपक गया था। विकास को बहुत दुख हुआ वह कर भी क्या सकता था। गाड़ी के अंदर आकर जैसे ही उसने गाड़ी आगे बढ़ाई पीछे से उस पिल्ले की मां गाड़ी के पीछे भौंकते हुए दौड़ने लगी। विकास ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी और कुछ ही देर में घर पहुंच गया..घर आकर वह गाड़ी से बाहर निकलते ही वह हैरान रह गया..उस छोटे पिल्ले की मां घर के गेट पर पंजे मारती हुई विकास को देखकर जोर-जोर से भौंक रही थी।

विकास उसे देखकर घबरा गया..उसे अपनी गलती पर दुख हो रहा था। थोड़ी देर वह गेट की तरफ उस पिल्ले की मां को देखता रहा जो उसे एहसास करा रही थी कि उसने उसके बच्चे की जान ली है..वह उस पिल्ले की मां के दर्द को देखकर तड़प उठा वह उस नन्हे से पिल्ले का हत्यारा था।उसका मन उसे झकझोर रहा था। अपने गुनाह का एहसास होने पर वह बेचैन हो रहा था। सामने पिंकी खड़ी थी। विकास पिंकी से बिना कुछ बोले चुपचाप कमरे के अंदर चला गया। बाहर से भौंकने की आवाज निरंतर सुनाई दे रही थी। “क्या हुआ आप इतने उदास क्यूं है?”पिंकी विकास के पास आकर मुस्कुराते हुए बोली।”कुछ नहीं कोई बात नहीं है?”कहकर विकास चुप हो गया।”जरूर कोई बात है..आप मुझसे क्या छिपा रहे हैं?”पिंकी हैरान होते हुए बोली। विकास ने पूरी घटना पिंकी को बताई।”आप भी बेकार में परेशान हैं..जानबूझकर तो नहीं किया है आपने गलती हो ही जाती है..इंसान से?”पिंकी विकास को दिलासा देते हुए बोली।

विकास कुछ नहीं बोला उसके मन-मस्तिष्क में अनगिनत सवाल उठ रहे थे जो उसे परेशान कर रहे थे। सुबह के सात बज रहे थे। विकास जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर आया उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। सामने उस पिल्ले की मां उसे देखकर भौंकने लगी विकास घबराकर अंदर चला गया और दरवाजा बंद कर दिया। विकास का मन उसे धित्कार रहा था।उस पिल्ले की मां रात भर अपने बच्चे के कातिल का इंतजार करती रही जिसके सामने जाने की हिम्मत विकास के पास नहीं थी। विकास पूरे दिन कमरे में ही उदास बैठा रहा वह अपने आफिस नहीं गया उसकी आंखों के सामने उस पिल्ले की मां का चेहरा घूम रहा था।जो अपने बच्चे को खोने के दर्द से तड़प रही थी। जो कि एक जानवर थी..जिसके जख्मों के दर्द की दवा उसके पास नहीं थी। एक मां का दर्द क्या होता है..वह तो इंसान है..फिर भी अपनी मां के दर्द को नहीं समझ सका..वह आत्मग्लानि से बिफर उठा और फूट-फूट कर रोने लगा। “अरे आप रो क्यूं रहें क्या हो..ऐसे अनगिनत पिल्ले गाड़ियों के नीचे आकर मर जाते है..और आप रो रहें हैं?”पिंकी नाक सिकोड़ते हुए बोली।”पिंकी मैं उस मां का दोषी हूं..मेरी गाड़ी के नीचे आकर उसने अपना बच्चा खोया है.. उससे ज्यादा मैं अपनी मां का दोषी हूं..मेरा गुनाह तो माफी के लायक भी नहीं है..मेरी अम्मा का दिल भी मुझसे दूर होकर रोज़ तड़पता होगा वह दर्द से कराहती होगी?




“कहते हुए विकास भावुक हो गया। पिंकी हैरान होकर चुपचाप खड़ी विकास की ओर देख रही थी। सुबह के दस बज रहे थे।”पिंकी! तुम अपना सामान तैयार कर लो.. हम अब गांव वाले घर में ही रहेंगे वहां से 50,किलोमीटर दूर ही तो मुझे आना है..अब मैं अपनी मां बाबूजी और बहन के पास ही रहूंगा..यह मकान छोड़ दूंगा चलो तुम जल्दी तैयार हो जाओ हमें गांव जाना है?”विकास पिंकी को निर्देश देते हुए बोला। “क्या कह रहे हैं आप?हम गांव में रहेंगे..कहीं आपका दिमाग तो नहीं खराब हो गया?

“पिंकी हैरान होते वह बोली। “नहीं मेरा दिमाग खराब था..अब सही हुआ है..जो मैं अपनी मां को दर्द से तड़पता हुआ छोड़कर यहां आनंद की जिंदगी व्यतीत कर रहा हूं..विकास गंभीर होते हुए बोला। “क्या मैं गांव में रहूंगी? आप क्या कह रहे हैं?”पिंकी झुझलाते हुए बोली। “हां हम गांव में ही रहेंगे.. तुम्हें चलना हो तो चलो..या तो अपने मम्मी पापा के पास रहो?” विकास गुस्साते हुए बोला।पिंकी चुपचाप खड़ी प्रकाश की ओर देख रही थी। “जाओ चलना है तो जल्दी तैयार हो जाओ?” विकास पिंकी की ओर बिना देखे ही बोला। पिंकी समझ चुकी थी कि अब विकास को रोक पाना मुमकिन नहीं है..ना चाहकर भी वह विकास के साथ जाने के लिए तैयार होने लगी। विकास अपने घर पहुंच चुका था।उसके आने की खबर किसी को नहीं थी। घर का दरवाजा खुला हुआ था। विकास के सामने शिवनाथ खड़े थे।”बाबु जी मुझे माफ कर दो?”कहकर विकास शिवनाथ से लिपट गया।”किस बात की माफी बेटा!

तूं अपनी मां से माफी मांग जो तेरे जाने के दर्द से तड़पती रहती है?”कहते हुए शिवनाथ भावुक हो गए।”अम्मा भैया भाभी आए हैं?”विकास और पिंकी को देखते ही प्रभा उछलते हुए पार्वती देवी के कमरे की ओर दौड़ पड़ी।”विकास मेरा बेटा! कहा चला गया था..अपनी मां को छोड़कर?”पार्वती देवी की आंखों से आंसू टपकने लगे।”कही नहीं जाऊंगा मां मैं अब तुम्हें छोड़कर हो सके तो अपने नालायक बेटे को माफ कर देना?”कहते हुए विकास पार्वती देवी से लिपटकर बच्चों की तरह रोने लगा।”मुझे भी माफ कर दो मां अब मैं यहीं रहूंगी आप के पास?”कहते हुए पिंकी पार्वती के पैरों को छूने लगी।”मैं गुस्सा नहीं थी बेटी! अब तुम लोग आ गए हो बस एक मां को और कुछ नहीं चाहिए?”कहते हुए रमादेवी ने पिंकी को गले लगा लिया। प्रभा खुशी से झूम रही थी।पूरे परिवार से गम के बादल छट चुके थे। मुरझाए चेहरों पर फिर से खुशियां छलकने लगी थी।

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित

लखनऊ

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