लिट्टी की नियति – वीणा

आज पार्वती बहुत खुश थी , दिल्ली जो जाना था उसे । बेटे मनोहर ने टिकट कटवा दिया था दिल्ली आने का । कहा था– माँ , मैं डेरा ले लिया हूँ , पर छुट्टी नहीं मिल रही मुझे । रमेसर चचा के साथ तुम गाड़ी से आ जाना , मैं स्टेशन आ जाऊँगा लिवाने । पार्वती का मन भर आया__ एक ही तो बेटा है मेरा , पर है एकदम्मे सपूत । जे कमाता है घरे भेज देता है । दू दिन पहले फोन पर पार्वती ने पूछा– का ला दें बेटा हियाँ से तो पहले तो उसने मना कर दिया ,  फिर कहा__ अम्मा , गोइठा पर के सेंकल लिट्टी , खाजा और खोवा वाला अनरसा लेते आना , ई सब यहाँ नहीं मिलता है , बड़ी दिन हो गया खाये ।

पार्वती सब बना के झोला में रख ली थी। ट्रेन में बगल वाली महिला ने पूछा भी__ बहिन जी , ई में का ले जा रहे हैं , बड़ी बढ़िया महक रहा है । पार्वती बताने लगी__का कहें , हमार मनोहरा अबरी बोला है लिट्टी लाने , वोही दू चार ठो बना लिये हैं ।

दिल्ली पहुँचते ही उसकी आँखें मनोहर को ढूँढने लगी । कहीं न दिख रहा वो , फोन पर भी केवल घंटी बज रही , केतना काम में बिजी है। रमेसर चचा बोले__भौजी , पता दिया है हमरा के , चलिए टेम्पू से चलते हैं ।


रास्ते में भीड़ देख पार्वती पूछी__ई कउन  चीज के भीड़ है भईया , एतना आग लागल है ,का हुआ है ।

टेम्पू वाला बताने लगा , कैसे घर ,दूकान सब जला दिया गया ,केतना लोग तो मर गया है। पार्वती राम राम करते मनोहर के डेरा पर पहुँची , हियाँ भी भीड़ लगी थी ।

का है जी ,काहे भीड़ लगा है हियाँ__पार्वती ने पूछा । तभी भीड़ में किसी ने कहा, मनोहर नाम का एक लड़का रहता था यहाँ, आज माँ आने वाली थी उसकी, उसे ही लाने स्टेशन जा रहा था कि रास्ते में दंगाईयों  की भीड़ में रौंदा कर मर गया।

सुनाते ही पार्वती चीख भी न पायी और बेहोश होकर वहीँ गिर गई । झोले से सब लिट्टी बाहर आकर लुढकने और पैरों तले रौंदाने लगे , मानो उनकी नियति भी मनोहर की तरह बदनसीब हो ।

वीणा

झुमरी तिलैया

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