” लता ” – गोमती सिंह

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———नीता ने अपने पति के सामने जैसे ही भोजन की थाली रखी , उसे देखकर उसके पति गुस्से से भड़क गए चिल्लाते हुए कहा-तुम्हें पता है न कि खाना खाने के तुरंत बाद मैं मिठाई खाता हूँ  , तो तुम मिठाई क्यों नहीं रखी हो थाली में।   जी…..जी…..नीता कुछ बोल पाती इससे पहले उसके पति ने खड़े होकर कमर से बेल्ट निकाला और सांय ….सांय …दो तीन बार मार दिया नीता खुद को बचाने के लिए गिड़गिड़ाती रही और वह जी भर मार पीट कर चला गया। 

                   यह उसका रोज का दिनचर्या था , किसी न किसी कारण से गुस्सा करना और मार पीट करना ।

          नीता मध्यमवर्गीय परिवार से थी ,और ऐसे परिवारों में अधिकांश लोग लड़कियों को शिक्षा के नाम पर ग्रेजुएट तक पढा देते हैं तो बहुत अधिक वर्ना 10वीं  12वीं क्लास उत्तीर्ण करने के बाद शादी कर दी जाती है।  नीता की पढाई में अत्यधिक रूचि थी उसका सपना था कि वह पढ लिख कर पुलिस अधिकारी बनना चाह रही थी मगर पिताजी की सिमित आमदनी की वजह से पढाई बंद करके  शादी कर ससुराल आ गई थी ।

           उसका  पति शुरू से ही शराबी था ससुर जी  किराना दुकानदार थे उसी को देखकर नीता की शादी उसके बेटे से कर दिया गया था।  यही सोचकर कि इकलौता लड़का है अपने पिताजी के साथ कमाएगा और परिवार चला लेगा ।

                 लेकिन गलतफहमी हो गई लड़का निकम्मा और शराबी भी था । अच्छी खासी लड़की की जिंदगी तबाह कर दिया।  रोज ताने देता क्या दिया है तेरा बाप –एक सस्ती बाइक के सिवाय और कुछ दिया है । इस तरह की दो चार बातें रोज ही सुनने पड़ते थे बेचारी नीता को ।

            उकसा पति उधार लेकर नशा करता रहा और कर्ज में जब डूबने लगा तब उधार देने वाले उससे पैसे मांगने लगे अब पहले पैसे वापस करो तब आगे फिर उधार मिलेगा।

           अब वह लड़का अपनी पत्नी को अपने पिताजी से पैसे मांगने के लिए मजबूर करने लगा ।


      एक दिन तो हद ही हो गई उसका पति बुरी तरह से मार पीट कर घर से धक्का देकर बाहर निकाल दिया कहने लगा अपने पिताजी से दस हजार रुपये लेकर आना वर्ना भूल जाना कि तुम्हारा कोई पति है और कोई घर है । नीता हमेशा की तरह गिड़गिड़ाने लगी- नहीं जी ऐसा मत बोलिए , मेरे पिताजी ले देकर  हम तीनों भाई बहनों की शादी किए हैं अब उनके पास पैसे वैसे बिलकुल ही नहीं है  । वो बुजुर्ग हो गए हैं इतने सारे पैसे कहाँ से लाएंगे। 

        मगर उस शराबी ने एक न सुनी  धक्का देकर दरवाजा बंद कर दिया।

             मजबूर नीता, खाली हाथ अंतरात्मा से रोते हुए सोचते सोचते नाक की सीध पर चली जा रही थी ।

       पिताजी पैसे दे नहीं पाएंगे और उनके पास रहूँगी तो बहुत बड़ी बोझ बन जाऊँगी।  

               मन से हारी नीता के दिमाग में आया कि किसी गाड़ी के आगे टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त मृत्यु के हवाले हो जाती हूँ। 

           ऐसा कहते हुए वह एक चलती हुई कार के आगे टकराने ही वाली थी कि कार रूक गई। 

          वाहक ने तुरंत नीचे आकर माफ़ी मांगते हुए कहा- आपको कहीं चोट तो नहीं लगी???

     ” आपने गाड़ी क्यों रोक दिये,  मैं तो दब कर मर जाना चाहती थी। ” आगन्तुक आवाक नजरों से देखने लगा ” ये आप क्या कह रही हैं!!!,क्यों मर जाने की बात सोच रहीं हैं। 

          नीता ने अपनी पूरी कहानी सुनाई और दोनों हाथों से मुंह छुपा कर रोते हुए बोली आप ही बताइए भैया!  मर जाने के सिवाय क्या रास्ता है मेरे पास ।

       भैया बोली हो न, और तुम्हे पता है, सावन का महीना चल रहा है । इतना सुनते ही नीता अपने जीवन रक्षक अजनबी भैया से गले लगकर बिलख बिलख कर रोने लगी । उसे लगा कि सदियों की प्यासी , प्रेम की प्यासी को समुंदर मिल गया । और वह फफक फफक कर प्यास बुझाने लगी , नहीं बहन ! रोने के लिए तुम्हें बहन नहीं बनाया है मैंने।  तुम कह रही थी न कि तुम पुलिस अधिकारी बनना चाह रही थी,  नीता आस भरी नजरों से अपने भैया की आँखों में देखते हुए बोली हाँ भैया ! ये मेरा अधूरा सपना है । मैं कह रहा हूँ कि अब ये पूरा होगा । तुम अपने पिताजी के घर में ही रहोगी और अपनी पढाई पूरी करोगी । कुछ भी सवाल उठने से पहले वह सज्जन धाराप्रवाह बोलने लगा– पूरी पढाई की ब्यवस्था तुम्हारा यह भाई करेगा। 


             ये सच है कि नारी का स्वभाव इक ” लता” सी होती है जो थोड़ा सा सहारा मिलने पर फल और फूलों से अपने आश्रयदाता को आच्छादित कर देती है  ।

                 कहना न होगा कि वह दारोगा जी के पद पर आसीन हो गई।  और सुखमय जीवन जीने लगी ।

         इधर उसके पति की हालत बद से बदतर होती जा रही थी कर्जदारों ने उस पर पुलिस केस दर्ज कर दिया।  पुलिस उससे ढूंढ रही थी और वह दर ब दर छुपतेफिर रहा था ।

          एक दिन उसके उसी उधार देने वालों ने उसे बताया कि तुम्हें  तुम्हारी पत्नी ही बचाएगी !!! वो कैसे???? तुम्हें पता है,  तुम्हारी पत्नी जिसे तुमने घर से निकाल दिया था आज हमारे गाँव के थाने में दरोगा बन कर बैठी है । ” क्या…..क्या कहा आपने???

” हाँ  वही कहा जो तुमने सुना । “

वह अचरज में हांफते हुए कहने लगा ” क्या नीता दरोगा बन गई है।” और हमारे ही गांव में है ।

वह चारो हांथ-पैरों से भागने लगा । हे भगवान! मुझे वो नहीं छोड़ेगी। 

         दोस्तों ने पकड़ा और कहा – एक बार उनके पास जाकर देखो । ” पद के साथ प्रतिष्ठा भी स्वत: चली आती है । “

        बहुत हिम्मत जुटा कर वह अपने पत्नी के सामने एक अभियुक्त की तरह पेश हुआ- माफ करिए दारोगा साहिबा ! नीता ने नजरें उठाकर देखा तो पाया कि उसके पति सामने हांथ जोड़े खड़े हैं। 

         जैसा कि उपरोक्त वर्णन है नारी आश्रयदाता को आच्छादित कर देती है आज उसके पति मुजरिम के रूप में भी उसके आश्रयदाता ही थे ।उसके पति ही थे ।

         अपने पति के ऊपर लगे सभी धाराओं का कानूनन निपटारा कराई और एक बिगड़े मनुष्य को सही राह दिखाते हुए  दरोगा पद के साथ साथ पुन: गृहस्थी को भी सुचारू किया।  तब उसका सपना पूरा हुआ। 

               ।।इति।।

           -गोमती सिंह

              छत्तीसगढ़

   स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

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