आशंका – विनोद प्रसाद

मैं अपने कमरे में बैठा चाय पी रहा था। साथ में मेरी पत्नी मीना भी थी जो कुछ घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। सामने ही हमारे दोनों बच्चे विमी और विकी खेल रहे थे। बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। अचानक बच्चों की किसी बात ने हम दोनों को आकर्षित किया। मीना भी उनके खेल में दिलचस्पी लेने लगी।

“मैं अपनी गुड़िया की शादी आपके गुड्डे से करने के संबंध में कुछ बातें करने आई हूं”- गुड्डा-गुड्डी का खेल खेलते हुए विमी ने अपने भाई विकी से कहा।

“आइए, आइए.. देखिए न, शादी के लिए तो रोज कोई न कोई आते ही रहते हैं। कहीं गुड़िया सुंदर नहीं होती तो कहीं हमारे गुड्डे की मांग पूरी नहीं होती”- गुड्डे के पिता का अभिनय करते हुए विकी ने भारी स्वर में कहा- “अच्छा बताइए, आप दहेज में क्या देंगी ?”

“दहेज….”, आंखें मटकाते हुए विमी ने कहा- “दहेज मैं क्यों दूं। मेरी गुड़िया सुंदर है, पढ़ी-लिखी है….फिर दहेज किस बात के लिए?”

विकी ने अकड़ते हुए कहा- “दहेज के बिना भी कहीं शादी होती है। यह तो सामाजिक नियम है। और फिर मेरा गुड्डा डाॅक्टर है। कितने पैसे खर्च कर उसे डाॅक्टर बनाया है, क्या बिना दहेज की शादी के लिए?”

” मैंने भी तो अपनी गुड़िया को बहुत लाड़-प्यार से पाला है, बड़ी मुश्किलों से उच्च शिक्षा दिलवाई है”- विमी भावुक होती हुई बोली- “मेरे भी अरमान हैं, मैं अपनी गुड़िया को खाली हाथ तो नहीं भेजूंगी।”

“तब ठीक है, मैं यह लिस्ट आपको दे रहा हूं। इसमें दहेज की सारी चीजें लिखी हैं, साथ में गुड्डे की फरमाइशें भी। इसमें किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए”- कहते हुए विकी ने कागज का लंबा टुकड़ा विमी को दिया।

कागज पढ़ने का उपक्रम करती हुई विमी सोच में पड़ गई। फिर गहरी सांस छोड़ती हुई बोली- “मैं पूरी कोशिश करूंगी कि आपकी लिस्ट के मुताबिक सारी चीजें दहेज में दे दूं, चाहे इसके लिए मुझे कर्ज ही क्यों न लेना पड़े..घर भी क्यों न बेचना पड़े। लेकिन….”,

विमी आशंका प्रकट करती हुए बोली- ” लेकिन मेरी सारी कोशिशों के बावजूद यदि दहेज में कोई कमी रह गई तो….तो मेरी गुड़िया को जलाकर मार तो नहीं देंगे….?”

अचानक जोर की बिजली चमकी और बादलों की भयंकर गड़गड़ाहट हुई। मीना ने दोनों बच्चों को खींचकर अपने अंकपाश में ले लिया और मासूम बच्चों के अनुत्तरित प्रश्न की गहराइयों में हम दोनों डूब गये।

– विनोद प्रसाद

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