क्यो कुछ बच्चे संस्कार भूल जाते है – संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : ” बेटा तुम्हारा मेडिकल मे चयन तो हो गया पर वहाँ बहुत दिल लगा कर पढना और किसी भी चीज की जरूरत हो मुझे फोन कर देना !” नरेन्द्र जी बेटे मानस से बोले। 

” पापा अपने और माँ के सपने को पूरा करने को मुझे जाना तो पड़ेगा पर मैं सोच रहा हूँ मेरे जाने के बाद आप यहां अकेले रह जाओगे  !” मानस बोला । 

” बेटा तेरी माँ का सपना था तू डॉक्टर बने और गरीबो की सेवा करे उस सपने को पूरा करने के लिए तुझे जाना पड़ेगा और उस सपने को पूरा करने मे कोई अडचन ना आए इसकी जिम्मेदारी मेरी है तू फ़िक्र मत कर !” नरेन्द्र जी बोले और बेटे को भारी मन से विदा कर दिया । 

बेटा बड़े शहर जा पढ़ाई करने लगा और यहां नरेन्द्र जी बेटे की सफलता की दुआ करते हुए उसके आने के दिन गिनते रहे । सीमित आमदनी होते हुए भी उन्होंने जब जब बेटे ने पैसे मांगे तुरंत भेज दिये वो नही चाहते थे कि बेटे को कोई भी परेशानी हो । यहाँ तक की उन्हे अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा पर उन्होंने उफ़ तक नही की। 

” बेटा कितना समय बाकी है तेरे आने मे ?” कुछ साल बाद नरेन्द्र जी ने फोन पर पूछा। 

” पापा पढ़ाई तो लगभग पूरी हो गई पर यहां मेरा चयन अच्छे अस्पताल मे हो गया है बहुत अच्छी तनख्वाह मिलेगी !” मानस ने कहा। 

” लेकिन बेटा यहां मैं तुझसे मिलने के लिए एक एक दिन गिन रहा हूँ और फिर तेरी माँ का सपना था तू डॉक्टर बन गरीबो की मदद करे !” नरेन्द्र जी बुझे स्वर मे बोले। 

” पापा उसके लिए पैसे भी तो चाहिए इसलिए ही तो यहां नौकरी कर रहा हूँ । आपको पता है दिल के इलाज के लिए कितनी मशीनो की जरूरत होती है जो महंगी भी बहुत आती है आप चिंता मत कीजिये मैं पैसा जोड़ कर वापिस आऊंगा । अभी फिलहाल मैं आपसे मिलने आ रहा हूँ !” मानस बोला। बेटे ने इतना बोल फोन काट दिया पर नरेन्द्र जी बहुत देर तक फोन को देखते रहे।

” क्या देख रहा है इस फोन मे !” तभी उनका ध्यान अपने मित्र मुरारी की आवाज़ से भंग हुआ। 

” अरे तू आ बैठ , बस अभी मानस का ही फोन आया था !” नरेन्द्र जी बोले। 

” अच्छा कब आ रहा है वो वापिस ? अब तो पढ़ाई भी पूरी हो गई !” मुरारी जी ने पूछा ।

” हम्म उसे वहां नौकरी मिल गई है !” नरेन्द्र जी बोले। 

” क्या …?? पर ऐसे कैसे उसे तेरे बारे मे , भाभीजी के सपने के बारे मे भी तो सोचना चाहिए लगता है बेटा हाथ से गया तेरे बड़े शहर की चकाचौंध हावी हो गई तेरे प्यार और संस्कार पर !” मुरारी जी चौंकते हुए बोले। 

” नही नही ऐसा नही है वो तो बस कुछ समय के लिए नौकरी कर रहा है पैसा कमा कर वो वापिस यही आएगा !” नरेन्द्र जी बोले। 

” किसे तसल्ली दे रहा है मुझे या खुद को ? दिल का डॉक्टर है वो क्या तेरे दिल को नही समझ रहा।  खैर वो वापिस आ जाये तो अच्छी बात है !”मुरारी जी बोले। 

थोड़ी देर के बाद वो चले गये पर उनकी बातों ने नरेन्द्र जी को विचलित कर दिया । एक महीने बाद मानस आया पर अकेला नही किसी लड़की के साथ।

“पापा ये दीप्ति मेरे साथ ही पढ़ी है और अब हम नौकरी भी साथ ही करते है , एक दूसरे को पसंद करते है और बहुत जल्द शादी करने वाले है !” मानस ने उस लड़की का परिचय करवाते हुए कहा।

” तुम सिर्फ मुझे ये बताने आये हो कि मैं शादी कर रहा हूँ ?” नरेन्द्र जी दुखी स्वर मे बोले। 

” नही पापा दीप्ति को आपसे मिलाने लाया हूँ आखिर आपकी बहू है ये आपका आशीर्वाद चाहिए हमें !” मानस बोला। 

” कब है शादी और कहाँ है ?” नरेन्द्र जी ने पूछा। 

” पापा वो क्या है ना कि हम लोग कोर्ट मैरिज् करना चाहते है । शादी की तड़क भड़क , शोर शराबा वो सब हम दोनो को नही पसंद !” मानस बोला। 

” वो तड़क भड़क नही हमारी रस्मे है खैर बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी । लेकिन तुम यहाँ आओगे या नही ये बता दो !” नरेन्द्र जी ने साफ साफ पूछा। 

” वो अंकल जी यहां आकर हमें क्या मिलेगा इतनी पढ़ाई हमने पैसा कमाने को की है सेवा को थोड़ी । हम शादी के बाद बहुत जल्द आपको भी वहाँ बुला लेंगे !” मानस की जगह दीप्ति बोली मानस ने उसकी हां मे हां मिला दी। नरेन्द्र जी ये सुन पूरी तरह टूट से गये। 

” और तुम्हारी माँ का सपना उसका क्या उसी के लिए तो मैने तुम्हारी पढ़ाई के लिए सब कुछ दाव पर लगाया था !” नरेन्द्र जी बोले। 

” पापा हम लोग वहाँ एक अस्पताल खोलेंगे वहाँ कुछ गरीबो का मुफ्त इलाज कर देंगे इससे माँ का सपना भी पूरा हो जाएगा और हम लोग अपने सपने भी पूरे कर लेंगे !” मानस बोला। नरेन्द्र जी समझ गये बेटे से कुछ भी कहना बेकार है। पर मन मे एक आस थी बेटा शायद उन्हे शहर बुला ले हालाँकि वो धूमिल सी आस थी। कहीं ना कहीं उन्हे अपने संस्कारो पर थोड़ा भरोसा था पर शहरी चकाचौंध का डर भी ।

मानस एक हफ्ता रहकर कुछ दिनों मे शहर बुला लेने का वादा कर चला गया। थोड़े दिनों मे उसका फोन आया कि उसने शादी कर ली। नरेन्द्र जी ने बहुत आशीर्वाद दिये क्योकि माता पिता कभी अपने बच्चो का बुरा तो चाह नही सकते उनकी खुशी मे खुश होते है वो तो नरेन्द्र जी कैसे ना आशीर्वाद देते ।

वक्त बीतता रहा अब बेटे का फोन भी आना कम हो गया नरेन्द्र जी करते तो व्यस्तता के कारण ज्यादा बात नही कर पाता। नरेन्द्र जी दिन रात पत्नी की तस्वीर से बाते करते रोते रहते । 

” सविता तुम्हारा बेटा तुम्हारा सपना भूल चुका है वो दौलत की चकाचौंध मे कही खो गया है । देखो ना उसे तो अपने जीवित पिता की फ़िक्र नही तो तुम्हारे सपने की क्या होगी ! क्यो माँ बाप अपने बच्चो के लिए खुद के सपने निछावर कर देते है जब उन्हे उसकी कद्र ही नही होती ।

सविता हमारे संस्कार हार गये हमने तो हमेशा अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये फिर ऐसा क्यो हुआ !” नरेन्द्र जी रोते हुए बोले और फिर खामोश हो गये । सुबह से शाम हो गई पर नरेन्द्र जी पत्नी की तस्वीर के पास से नही हटे, ना कुछ खाया ना पिया। यहाँ तक की उनका फोन बज रहा था पर उनका ध्यान वहाँ भी नही था। 

” नरेन्द्र ओ नरेन्द्र कहाँ है तू कबसे फोन मिला रहा हूँ उठाता क्यो नही । आज तेरी भाभी ने मटर कचौड़ी मँगाई है आजा गर्म गर्म खाएंगे , और ये क्या अंधेरा क्यो किया है घर मे तूने !” मुरारी जी रात को उनके घर आकर बोले अंधेरे मे स्विच टटोल कर उन्होंने लाइट जलाई। 

” जब तक भाभी थी तब तक तो दोनो तोता मैना की जोड़ी बने ही रहे अब भी देख कैसे भाभी के लिए सब चीजों से बेसुध हुआ पड़ा है …चल बहुत निहार लिया भाभी को अब चल कचौड़ी ठंडी हो जाएगी !” मुरारी जी मित्र का हाथ पकड़ उन्हे उठाते हुए बोले पर ये क्या ??? उनका हाथ तो बेजान था ।

” नरेन्द्र ओ नरेन्द्र उठ ना !” उन्होंने उनके पास बैठ उन्हे झकझोड़ा फिर जल्दी से अस्पताल फोन किया एम्बुलेंस के आते ही वो नरेन्द्र जी को अस्पताल लेकर भागे। पर देर हो चुकी थी दिल का दौरा पड़ने से नरेन्द्र जी तो कई घंटे पहले ही चिर निद्रा मे सो चुके थे या यूँ कहे पत्नी से बात करते हुए पत्नी के पास पहुँच गये थे। 

बिलखते हुए मुरारी जी ने मानस को फोन किया उसने नरेन्द्र जी का पार्थिव शरीर मोर्चरी मे रखने को बोल दिया क्योकि एकदम से उसका आना संभव नही था। मुरारी जी शव रखवा घर आ गये। 

” शांति तू हमेशा ईश्वर से शिकायत करती थी ना कि हमारे कोई संतान नही जो हमारे बुढ़ापे का सहारा बने । देख संतान ऐसी होती है बुढ़ापे का सहारा नही दर्द बन जाती है क्योकि बड़े होकर वो संस्कार सारे भूल जाती है और संस्कारहीन हो जाती है। तू ख़ुशक़िस्मत है जो बेऔलाद है क्योकि ऐसी औलाद ना हो तो ही सही । देख विधि की कैसी विडंबना है बेटा दिल का डॉक्टर और पिता दिल के दौरे से तड़प कर मर गया। ” मुरारी जी पत्नी से बोले और जोर जोर से बिलख पड़े। 

दोस्तों पैसे कमाना ,आगे बढ़ना हर किसी का हक है पर क्या बच्चो का माता पिता के प्रति कोई फर्ज नही क्यो कुछ बच्चे शहरी जीवन की चकाचौंध मे संस्कारहीन हो जाते है । मैं ये नही कहती बच्चो को सब छोड़ अपने माता पिता के पास आ जाना चाहिए पर कम से कम अपने माता पिता को अपने शहरी जीवन का हिस्सा तो बनाया जा सकता है। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

1 thought on “क्यो कुछ बच्चे संस्कार भूल जाते है – संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi”

  1. Savita ji your story is motivated for our New generation how children save his parents.today culture is going leps from our society and our country.your this types of story can save our culture and humanity.
    Thanks
    s.b.pandey

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!