कुछ बंधन तोड़ देना ही अच्छा होता है – नेहा गुप्ता 

सच जीजी,,,तुम्हे देख कोई भी नही कह सकता की,,

अब तुम सास बनने जा रही हो,, 

फुर्ती इतनी की अच्छी अच्छी जवान लड़कियां भी गच्चे खा जाए,,,

वैसे एक तरह से ठीक ही है,,,अपने हाथ पैर चलाते रहो,,तो किसी के भरोसे नहीं रहना पड़ता,,,पर एक बात 

कहूं जीजी,,अब न आपके आराम के दिन आ गए है,अब बहु आ रही है,,,अब थोड़ी अपनी सेवा का मजा लेना••••ये दुनियादारी के सभी बंधनों से अब थोड़ा मुक्त हो जाना ,,,नई बहू के आने से बेटे का मोह थोड़ा कम कर लेना चाहिए,,और बहू पर भी अपनी पकड़ अच्छी रखनी चाहिए,,,,

क्यों छोटी बिल्कुल सही कह रही हूं न मैं,,,,ममता ने खिलखिलाते हुए अपनी बहन सुमन  से कहा••••

बहु•••ला रही हूं ,,,कोई नौकरानी नही ,जो उसके आते ही  अपनी

सारी  जिम्मेदारी उस पर छोड़ दूं,,

मेरे लिए जैसे प्रियंका सोनी  वैसे ही,,,,पूजा है,,,देखना मैं अपनी बहु को पलकों पर बिठा कर रखूंगी,,सावित्री  जी ने बड़ी ही सहजता से अपनी बात कह दी•••

जीजी,,सब किताबी बातें होती है,

बहु ,,कभी बेटी नही बन सकती,,खैर हमें क्या आजकल तो घर घर की कहानी है,आप हमसे बडी हो,दुनियां आपने हमसे ज्यादा देख रखी है,,पर हम दोनो की बहुएं आ गई है,तो समझाना हमारा फर्ज था बाकी आगे आपकी मर्जी,,,

सावित्री  जी अपनी तीन बहनों में सबसे बड़ी है,,दोनो ही अपनी गृहस्थी से पूर्ण हो चुकी है,,,सावित्री  जी की भी दो बड़ी बेटियां है,,जिनकी शादी को भी काफी समय बीत चुका है,,,पर चूंकि शशांक दोनो बेटियों के बहुत समय बाद हुआ था,,इसलिए अब घर में उसकी शादी का नंबर आया था,,,

सावित्री  जी की  दोनो बेटियां अपनी अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थी,,,अपने छोटे भाई के लिए पूजा को पसंद करने वो दोनो खुद से ही गई थी••••



पूजा एक बड़े संयुक्त परिवार में पली बड़ी अपने भाई बहनों में सबसे  बड़ी थी,,परिवार का ख्याल ,,आदर मान सम्मान ,,अच्छे से कर पाएंगी,,यही सोच कर अपने शंशांक के लिए पूजा को पसंद किया गया था•••

सगाई से लेकर शादी तक सावित्री  जी और अशोक जी ने दिल खोलकर खर्च किया था,,,एक एक चीज पूजा को अपने साथ खुद लेजाकर उसकी पसंद से दिलवाई गई थी,,पूजा भी इतना प्यार करने वाला परिवार पाकर बहुत खुश थी,,

शादी खूब धाम से संपन्न हुई,,कुछ दिन तक अपनी नई भाभी के साथ समय बिताने के बाद प्रियंका सोनी  भी अपने घर रवाना हो गई,,,

पर जैसा सोचा था,,,वैसा उसके विपरीत ही निकला,,,

पूजा एक सयुंकत परिवार की पली बड़ी जरूर थी,,पर उसका सपना हमेशा एकल परिवार में रहने का था,,उसे एकांत बहुत पसंद था•••••

हालांकि उसके नए परिवार में सास ससुर,पति और वो खुद

इन चार सदस्यों  के अलावा और कोई पांचवा नही था,,पर फिर भी वह हमेशा सभी से कटी कटी सी ही रहती,,

वही सावित्री  जी ने  अपनी नई बहु से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा रखी थी,,,

बेचारी सुबह पूजा के उठने से पहले ही उसके लिए चाय नाश्ता तैयार करके रख देती थी,,

कई बार अशोक जी ने मजाक मजाक में उनसे कहा भी था,,की सावित्री  जी ये आप सही नही कर रही ,,माना पूजा नई नई है,,पर उसे अपनी जिम्मेदारी शुरू से ही समझनी चाहिए,,,

आपको तो पता ही है,,माताजी थी नही ,,बहुत छोटी सी उम्र में ही आकर मैंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था,,

,इस घर को और बच्चो को बनाने में दिन रात एक कर दिए,,,,पर अब जब हम है,,,

तो मैं नही चाहती की मेरी बहु भी इन सब तकलीफों से गुजरे,,और फिर अभी नई नई है,,उन्हे अपनी जिंदगी आराम से जी लेने दीजिए ,,फिर तो यही सब करना  है,,,सावित्री  जी हंस कर बात टाल देती,,,

पर ,,,पूजा ने धीरे धीर सावित्री  जी के प्यार का फायदा उठाना शुरू कर दिया,,,वो सुबह ग्यारह बजे से पहले अपने कमरे  से उठ कर ही नही आती,,

जब तक अशोक जी अपना खाना लेकर दुकान पर निकल जाते थे,,रात को भी अशोक जी जल्दी की खाना खा लेते थे,,और पूजा अपने और शशांक के लिए कभी विदेशी खाना बना लेती या फिर कभी होटल से ऑर्डर कर रसोई से निकल पार्क में घूमने निकल जाती,,वही हल्का खाने वाले सावित्री  जी को अपने और अशोक जी के लिए खुद से खाना बनाना पड़ता,,,

 

ऐसी ही गृहस्थी की छोटी छोटी बातों से जल्दी ही उन दोनो के बीच मनमुटाव शुरू हो गया था,,,जहां सावित्री  जी इसे पूजा का बचपना समझ बातों को नजरंदाज कर देती

वही पूजा नमक मिर्च लगाकर रात को शशांक के आते ही सारी बातें उसके सामने परोस देती,,,

धीरे धीरे घर का शांत वातावरण अशांत बन चुका था,,,घर के चार सदस्य भी दो हिस्सों में बंट चुके थे,,,



हालंकि शशांक इन सब बातों को समझता था,,पर वह बेचारा तो मां और पत्नी के बीच मात्र पिस कर रह जाता है,,,

तभी शादी की पहली सालगिरह पर जब रात बारह बजे सोनी  और प्रियंका अपने परिवार सहित अपने भाई और भाभी को सर्प्राइज देने आ पहुंचती है,,,,,,तब शशांक की तो मानो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा,,पर पूजा अपना यह दिन सिर्फ अपने पति के साथ ही बनाना चाहती थी,,इसलिए अनमने ढंग से ही वो केक काटने की रस्म में शामिल हो पाई,,

मुझे ये दिखावा पसंद नही है,,,अपनी बहनों से कह देना अगली बार समय देख कर आया करे,,पूरी नींद खराब कर दी,,,पूजा को उसकी पहली वर्षगांठ का तोहफा देने जब वह उनके कमरे की तरफ आई ,तब पूजा के मुंह से इस प्रकार के शब्द सुनकर मानो उन्हे बृजपात सा हो गया,,,

जिसे वो बेटी बेटी कहते कहते नही थकती थी,,,आज वही उनकी बेटियों को अपने ही  घर आने के लिए भी समय का नियम बता रही है,,,

सावित्री  जी गुस्से में अपने कमरे में चली आई,,

नासमझ है ,,अभी वो परिवार के महत्व को नही पहचानती,,,और फिर तुम ही तो कहती हो धीरे धीर सीख जायेंगी,,फिर अब गुस्सा करने से क्या फायदा,,,

सारी बात जानने के बाद अशोक जी ने सावित्री  जी को कहा,,

शायद गलती मेरी ही थी, सुमन  और ममता सही ही कह रही थी,,खैर शायद मेरी किस्मत में ही ऐसा लिखा था,,पूजा की  हरकत ने सावित्री  जी को अंदर तक  बहुत दुख पहुंचाया था,,

पूजा की शादी को तीन साल बीत चुके है,पर न तो वो अपने सास ससुर का खाना बनाती है,,और न ही घर के कुछ कामों में हिस्सा लेती है,,,

घर की बेटियों  के छुट्टियों में रहने आने पर भी ,,

उसका हर बार एक नया ही रूप निकल कर आता,,,

धीरे धीरे भाई की खुशी और घर की शांति  के लिए दोनो ही अपने ही घर आना कम कर देती है,,,

परिवार की बदनामी के डर से ,और अपने बेटे की चिंता में वो दोनो भी चुपचाप सब कुछ सहन करते रहते है,,,

सावित्री  जी बेचारी अपने मन की बात अपनी बेटियों से ही कर लेती,,

इधर पूजा ने  पूरे समय शशांक के कभी उसके बहनों को लेकर कभी सावित्री  जी के खिलाफ कान भरते रखना जारी ही रखा,,,

शशांक से अपने माता पिता का दुख नही देखा जाता ,,वही वह अपनी पत्नी को भी बहुत प्यार करता था,

पर जब थकाहरा इंसान रोज रोज घर आकर एक ही चीज सुनता है,,,तो उसका गुस्सा फूट ही जाता है,,,

एक दिन••••

मां,, मैं रोज रोज के क्लेश से तंग आ चुका हूं,,,पूजा आप लोगों के साथ रहना ही नही चाहती,,क्यों न आप दोनो घर के नीचे वाले हिस्से में रहने चले जाए,,और पूजा को ऊपर रहने दे, कम से कम घर में शांति तो रहेंगी,,,मैं आपका और पापा का अब और अपमान होते नही देख सकता ••••••वैसे भी पूजा की हरकतों की वजह से दीदियां भी अब घर नही आती है,,बेचारी इसमें उन दोनो का क्या दोष

आखिर उनसे उनका मायका क्यों छीना जाए•••••

अपने बेटे के मुंह से इस प्रकार के शब्द सुनकर उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ,,,ये वही बेटा है,,जिसके लिए उन्होंने न जाने कितने ही मंदिरो में माथा टेका था,,,



बहु तो चलो दूसरे घर से आई है,,पर बेटा तो अपना है,,,••••

नही ••नही मैं यह सब क्या सोचने लगी,शशांक ऐसा कुछ नही सोच सकता,मां होकर मुझे उसकी परिस्थितियों को समझना चाहिए,,,

अपने आप को संयम में रखते हुए ,,उन्होंने बोलना शुरू किया,,,

 

तुम बिलकुल सही कह रहे हो,,,,जानते हो तुम,,जब मेरी दो बेटियां हो गई थी,,तब डॉक्टर ने मुझे तीसरा बच्चा करने के लिए साफ मना कर दिया था,,तुम्हारे पिताजी तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे,,पर मैने ही जबरदस्ती की थी,,,पर इस दिन के लिए नही•••••

ये घर तुम्हारे पिताजी ने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया है,,,

न तो मैं नीचे वाली मंजिल पर रहने जा रही,और न ही तुम ऊपर ,,,बहुत हुआ ,,तुम दोनो अपना इंतजाम कही और कर लो,,,

दो महीने का अब मैं तुम्हे समय देती हूं,,ये लो ताला और चाबी ,,,जब जाओ तब मुझे सौंप कर जाना,,,

अपने बेटे के लिए हर समय जान हाजिर करने वाली सावित्री  जी इस प्रकार का भी कोई निर्णय ले लेंगी यह पूजा ने कभी सपने भी न सोचा था,,उसके सारे सपनो पर पानी जो फिर चुका था,,

थोड़ी ही देर में वह सावित्री  जी के पास माफी मांगने के लिए खड़ी थी,,

कभी कभी अत्यधिक मोह और मीठा भी अपनी ही बीमारी का कारण बन जाता है,,,और इस उम्र में अब हमसे ज्यादा झेला नही जाएंगा•••••तुम हमारे लिए पहले भी लाडली बहु थी,,और आगे भी रहोगी,,पर मैं तुम्हारी सास हूं,,तुम्हारे पति की मां,,,जो उसे जन्म देने के लिए अगर दुनिया से लड़कर कष्ट सहकर दुनिया में ला सकती है,,तो उसके बिना रह भी सकती है,,,आगे से कभी भी एक मां को कमजोर मत समझना,,,,

 मां का दिल था,,जल्दी ही पसीज गया,,पर अपने ही घर में अपने वर्चस्व के लिए फिर से ऐसा कोई निर्णय न लेना पड़े,,वह शशांक और पूजा को अपने से दूर ••••ऊपर वाली मंजिल ने रहने का आदेश दे देती है!!!!और बेटे के मोह से बंधे बंधन से मुक्ति पा लेती है।।।

 

नेहा गुप्ता

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