“कोई जरूरत नहीं” –  राम मोहन गुप्त

( बैरी पिया बड़ा रे बेदर्दी )

‘अब बस भी करो, सुबह से लेकर शाम तक एक ही रट लगाए रहती हो… अब मुझ से नहीं होता, किसी को लगा लो।’

कहते-कहते समीर, सुनैना पर बरस पड़ा और क्यों न बरसता आये दिन सुनैना की एक ही रट सुनते-सुनते थक जो गया था वह।

यूँ तो दोनों का जीवन बड़े मजे में बीत रहा था पर पिछले कुछ दिनों से, जबसे सुनैना मोनिषा के यहाँ से लौटी, घर के कामों विशेषकर खाना बनाने में रुचि नहीं लेती और किसी को इस काम के लिए रखने की ज़िद पर अड़ सी गई है। जबकि उसके हाँथों में कुछ ऐसा जादू है कि घर की रसोई में उसके द्वारा बनाया गया खाना जो भी खा लेता.. उंगलियाँ चाटता रह जाता।

समीर ने उसे पसंद भी किया था तो उसकी इसी खासियत के चलते। उसे आज भी याद है कि जब पहली बार वह अपने मित्र मनीष के यहाँ काम के सिलसिले में दो दिन को रुका था तो मनीष की चचेरी बहन सुनैना द्वारा बनाई गई डिशों ने, उसे दीवाना बना दिया और उसने मनीष से, सुनैना से शादी करने की इच्छा दर्शायी और फिर सुनैना के परिवार वालों की रजामंदी से शादी भी हो गई और दोनो पूरे आनंद से वैवाहिक जीवन बिता रहे थे कि आराम-तलब मोनिषा के लगाए इंजेक्शन ने उनकी खुशियों में विघ्न डालनी शुरू कर दी।

ऐसा नहीं कि समीर किसी को खाना बनाने के लिए लगा नहीं सकता था या फिर लगाना नहीं चाहता था, वह तो बस यही चाहता था कि सुनैना के हाथों और हुनर की धार कम न हो और यह बात वह कई बार उससे कहा भी चुका था, पर सुनैना थी कि मानती ही नहीं?


आज आख़िर तंग आकर उसने फैसला कर लिया कि सुनैना को समझा कर ही रहेगा। समीर ने अपने सोंचे-समझे प्लान के तहत एक खाना बनाने वाली को ढूँढ़ कर घर में लगा लिया जो (मोहिनी) देखने में जितनी खूबसूरत और बोलने में जितनी मीठी थी खाना बनाने और खिलाने में उतनी ही बोझिल। अब क्या था एक ओर किसी को भी खाने में स्वाद नहीं आ रहा था तो दूसरी ओर मोहिनी का समीर के इर्द-गिर्द मंडराना और समीर द्वारा भी उसे विशेष तवज्जो देना, बेस्वाद खाने की भी बढ़-चढ़ कर तारीफ करना, सुनैना को चुभने लगा। हद तो तब हो गई जब बिना माँगे ही मोहिनी के लिए समीर सूट ले आया और सुनैना से बगैर पूछे ही उसे दे दिया। 

फिर क्या था सुनैना और समीर की शायद पहली बार इतनी ‘तू-तू, मैं-मैं’ हुई जितनी कभी न हुई और अगले ही दिन मोहिनी की छुट्टी। पर यह क्या! अगले ही दिन दूसरी खाना बनाने वाली और वो भी मोहिनी से ज्यादा मनमोहिनी!

‘नहीं हमें ज़रूरत नहीं है किसी खाना बनाने वाली की, ले दे कर दो ही लोग तो हैं हम, तो क्या अपने लिए खाना भी नहीं बना सकती, जाओ हमें नहीं रखना है किसी को’ सुनते ही समीर खुशी से पागल हो उठा… आज फिर काफी दिनों बाद अपनी सुनैना के हाँथो की नई रेसिपी और स्वाद का आनन्द जो मिलने वाला था और उससे भी बढ़ कर वह खुशी, जो हमेशा से ही वह पाना चाहता था।

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