किस्मत या खुशकिस्मत – संध्या त्रिपाठी   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : गूगल… प्लीज बताइए… विक्टिम कार्ड , सिंपैथी , त्रिया चरित्र किसे कहते हैं ,ओ के गूगल ….

    रूंधे गले से , आंखों में आंसू डबडबाए गूगल पर वॉइस रिकॉर्ड कर दीप्ति ने पूछा । आज दीप्ति बहुत परेशान थी । बात सुबह की ही  तो थी , रविवार की छुट्टी का दिन , बच्चे पति सब आराम से सोकर उठे ऊपर से पतिदेव अंकुर घर में लगे जाले साफ करने में व्यस्त हो गए ।

          दरअसल दीप्ति हार्ट की पेशेंट थी अतएव वो बहुत ज्यादा काम नहीं कर पाती थी  । दस बजने वाले थे दीप्ति ने बेटे से नाश्ते के विषय में पूछा … क्या खाएगा बेटा ?

      रोज के आपाधापी में नाश्ता के विकल्प का कोई स्थान ही नहीं होता था , इसलिए छुट्टी के दिन पसंद , ना पसंद पूछ कर ही दीप्ति नाश्ता बनाती थी । दीप्ति के पूछने पर बेटे ने कहा.. मम्मी आज मैं नाश्ता नहीं करूंगा , रात का भोजन भारी हो गया है । ठीक है बेटा… इकट्ठे खाना ही खाना… कहकर दीप्ति ने सोचा अब सिर्फ अंकुर और मुझे ही तो नाश्ता करना है पोहा ही बना लेती हूं जल्दी हो जाएगा और वो जल्दी से पोहा धोकर रख दी ।

    वैसे भी काम वाली सहायिका आ चुकी थी , सर पर सवार खड़ी थी … बार-बार पूछे जा रही थी.. हो गया आंटी रसोई खाली  , साफ कर लूं  ? अब दीप्ति कैसे बोलती ..छुट्टी के दिन थोड़ा देर हो ही जाता है ..पर उसके भी तो समय की कीमत है ना भाई ।

      अचानक अंकुर आकर बोले.. अरे दीप्ति अभी 11:00 बजने वाले हैं अब रहने दो नाश्ता बनाने को ..इकट्ठा खाना ही खाएंगे ।

       अरे , अब बोल रहे हैं अंकुर …जब मैंने पोहा भीगो कर सारी तैयारी कर ली ।  एक बार पहले नहीं बोल सकते थे …पसीने से लथपथ दीप्ति ने अंकुर से शिकायत भरे लहजे में कहा  ।

         वैसे भी दीप्ति की तबीयत ऑपरेशन के बाद से ठीक नहीं रहती थी घर के कामकाज किसी तरह धीरे-धीरे वो मैनेज कर लेती थी । 

         दीप्ति की बातें सुनते ही अंकुर को न जाने क्या हुआ वो एकदम से गुस्सा होते हुए कठोर लहजे में बोले… अच्छा तुम तो ऐसे बात कर रही हो जैसे मैं बैठकर आराम फरमा रहा हूं तुम्हें अपने अलावा किसी के काम से कभी संतुष्टि नहीं होती है , न जाने आज अचानक अंकुर इतना विफर क्यों पड़े ?

      दीप्ति सोची , शायद घर का काम कर रहे हैं तो इतना रौब मारना अपना अधिकार समझते हैं ।  पर घर का काम सिर्फ मेरे जिम्मे में क्यों  ? मैं बाहर नहीं जाती कमाने , तो क्या घर के कामों की सारी जिम्मेदारी मेरी ही रहेगी ….शायद मेरी  ” किस्मत ” ही ऐसी है । बात को शांत करने के उद्देश्य से दीप्ति ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा… असल में मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है अंकुर… उसने सोचा तबीयत की बात शायद अंकुर को समझ में आएगी , लेकिन अंकुर ने तो फौरन कहा तुम्हारा सिंपैथी कार्ड खेलना शुरू….

     बस अंकुर का इतना कहना ही काफी था ।  दीप्ति की आंखें भर आई… क्या कहा अंकुर  ? मैं सहानुभूति के लिए तबीयत का बहाना बना रही हूं …अब बहुत हो गया तुमने पहले भी त्रिया चरित्र , विक्टिम कार्ड जैसे ना जाने कितनी ऐसी बातें कही है , जिससे मुझे बहुत दुख पहुंचा है । खैर छोड़ो… अब मुझे तुमसे कुछ कहना ही नहीं है …कह कर दीप्ति ने नाश्ता बना कर डाइनिंग टेबल पर रख दिया ।

     और कमरे में आकर मोबाइल उठाया और अंकुर द्वारा कहे शब्दों के मायने ढूंढने में लग गई…

पारिवारिक घटनाओं के क्रम में ये घटना कोई बहुत बड़ी तो नहीं थी , पर अंकुर के कहे शब्द के मायने दुखी करने के लिए पर्याप्त थे । अंकुर जो वॉइस टाइपिंग के दौरान दीप्ति की बातें सुन लिया था उसने पास आकर बस इतना ही कहा …यदि गूगल बता पाए तो ये भी पूछ लेना दीप्ति …कि मैंने किस परिस्थिति में कैसे कहा था.. इतना कहकर अंकुर कमरे से बाहर निकल गया….

       जवाब में दीप्ति ने भी कहा.. यदि मैंने सिंपैथी के लिए बीमारी का बहाना बनाया तो तुमने भी परिस्थिति की आड़ लेकर अपने कहे शब्दों की रक्षा नहीं कर रहे हो अंकुर ?

     दीप्ति सोचने लगी वैसे तो अंकुर ऐसे है नहीं…. मेरा कितना ख्याल रखते हैं , ऑपरेशन के समय मेरी सबसे बड़ी ताकत अंकुर ही थे.. और सामान्य दिनचर्या में भी मेरा ध्यान तो रखते ही है , फिर ना जाने क्यों अंकुर के साथ बिताए वो सारे खूबसूरत पल याद आने लगे थे दीप्ति को । अरे ये सब मुझे क्यों याद आ रहा है क्या अंकुर ने जो कहा है वो सही है ?

   नहीं बिल्कुल नहीं … ” चाहे परिस्थिति जैसी भी हो …जो गलत है वो गलत है और गलत किसी भी परिस्थिति में सही नहीं हो सकता “।

   अपने ही अंतर्मन की द्वंद्विता से जूझती दीप्ति उठी… हाथ मूँह धोया और डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ी ..जहां अंकुर पहले से ही बैठकर पेपर पढ़ रहे थे । बिना कुछ बोले ही दीप्ति ने दो प्लेट में पोहा निकला और दोनों नाश्ता करने लगे । नाश्ता खत्म होने के बाद अंकुर ने बस एक ही बात बोली , भविष्य में ऐसे शब्दों का प्रयोग ना करने की कोशिश करूंगा ।

     और आज फिर तुम जीत गई दीप्ति …बात तूल देकर आगे ना बढ़ाकर , सामान्य तरीके से तुम्हारा डाइनिंग टेबल में आकर नाश्ता करना… बिन बोले ही  मुझे तुम्हारा बड़प्पन दिखाई दिया और मुझे  सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं ना कहीं मैं गलत हूं । 

देखो अंकुर…  बात जीत हार की नहीं है… तुमने अपनी गलती मान ली  ,वरना कुछ लोग तो… कहते कहते अचानक बात को दूसरी दिशा में ले जाते हुए दीप्ति ने आगे कहा …तुम ये सोचने की भूल कतई न करना कि मैंने अपनी किस्मत और नियति मानकर समझौता कर लिया है ।

  क्या है ना अंकुर हम जिंदगी में उन पहलू को ज्यादा अहमियत देते हैं जिससे हम दुखी होते हैं उसके बारे में ज्यादा सोचते हैं और खुशी के छोटे-छोटे पलों को , अवसरों को नजर अंदाज कर किस्मत का हवाला दे देते हैं ।

थोड़ी सी अपनी सोच में सकारात्मक परिवर्तन ला कर किस्मत को खुशकिस्मती में बदलना भी तो हमारा ही काम है ना !

       कोई भी मनुष्य सौ प्रतिशत परफेक्ट नहीं होता , कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां सभी में होती हैं तो मैंने अच्छाइयों को ध्यान में रखकर उससे ही खुश होकर तुम्हारी बुराइयों को नजरअंदाज किया है… जब अच्छाईयाँ  फलेंगी  फूलेंगी… तो बुराइयाँ अपने आप खत्म होती जाएगी ….और फिर तुमने आगे से ऐसे शब्दों को ना कहने का वचन भी तो दिया है ना अंकुर ।

      आज मेरी किस्मत खराब थी जो मेरे मुंह से ऐसे शब्द निकले , पर तुम्हारी सूझबूझ ने दिन खराब होने से बचा लिया… अंकुर आगे कुछ कहता ..दीप्ति ने तपाक से कहा …नहीं अंकुर सकारात्मक सोच रखो ….आज तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो तुमने अपने अंदर की एक कमी को और दूर कर दिया ।

   ( स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

 

   श्रीमती संध्या त्रिपाठी

     #किस्मत          

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!